________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बलिव्याकुला वा --मेघ० 85 5. दमकने वाला, इधर / 1. बाघ का पंजा 2. एक प्रकार का गन्धद्रव्य उधर हिलजुल करने वाला—उत्तर० 3 / 43 / 3. खरौंच, नखक्षत,--नायकः गीदड़। व्याकुलित (वि०) [ वि+आ+कुल+क्त ] विक्षुब्ध, | व्याजः [ व्यजति यथार्थव्यवहारात् अपगच्छति अनेन-वि हतबुद्धि, घबराया हुआ, उद्विग्न आदि / +अ+घन ] 1. धोखा, चाल, छल, जालसाजी व्याकूतिः (स्त्री०) [ विशिष्टा आकूति:-प्रा० स० ] जाल- 2. कला कौशल - अव्याज मनोहरं वपुः- श० 1118, साजी, छप्रवेश, धोखा / 'स्वाभाविक रूप से प्रिय' 3. बहाना, व्यपदेश, आभास व्याकृत (भू० क. कृ.) [वि+आ+कृक्ति ] - ध्यानव्याजमुपेत्य --नाग० 111, रघु० 4 / 25, 58, 1. विश्लिष्ट, वियुक्त 2. व्याख्यात, स्पष्ट किया गया 10 / 66, 11 / 66 4. युक्ति, चाल, कूटयुक्ति व्या3. विकृत, व्याकृष्ट, बिगाड़ा हुआ, विरूपित / जार्धसन्दर्शितमेखलानि-रघु० 13142 / सम०-उक्तिः व्याकृतिः (स्त्री०) [विआ--कृ+क्तिन् ] 1. विग्रह (स्त्री०) एक अलङ्कार जिसमें किसी कारण के 2. विश्लेषण, व्याख्या 3. रूप परिवर्तन, विकास स्पष्ट फल का जानबूझ कर कोई दूसरा कारण बताया 4. व्याकरण। जाता है, जहाँ वास्तविक भावना को कोई दूसरा व्याक्रोश (ष) (वि०) [वि+आ+श् ()+अच् ] कारण बताकर छिपा लिया जाता है--दे० काव्य० 1. फुलाया हुआ, प्रफुल्लित, पुष्पित, मुकुलित-व्या- 10 'व्याजोक्ति' के नीचे 2. परोक्ष सङ्केत, व्यंग्योक्ति, कोशकोकनदतां दधते नलिन्यः-शि० 4 / 46 2. विकसित --निन्दा छल या कपट से की गई निन्दा, - सुप्त -भर्तृ० 3 / 17 // (वि०) झूठमूठ सोया हुआ, - स्तुतिः (स्त्री०) अंग्रेजी व्याक्षेपः [वि+आ+क्षिप् ।-घा] 1. इधर उधर के 'आइरनी' (IFULN) से मिलता जुलता एक उछालना 2. अवरोध, रुकावट 3. विलम्ब -अव्या अलङ्कार जिसमें व्यक्त की गई प्रशंसा से निन्दा क्षेपो भविष्यन्त्याः कार्यसिद्धेहि लक्षणम् - रघु० तथा प्रत्यक्ष निन्दा से स्तुति उपलक्षित होती है-व्याज१०१६ 4. उलझन / स्तुतिमखे निन्दा स्तुतिर्वा रूढिरन्यथा--काव्य० 10 / व्याख्या [वि+आ+ख्या+अ+टाप् ] 1. वृत्तान्त, | व्याड: [वि+आ+अड्+अच्] 1. मांस भक्षी जानवर, वर्णन 2. स्पष्टीकरण, विवृति, टीका, भाष्य / जैसे कि चीता, शेर आदि 2. बदमाश, गुण्डा 3. साँप व्याख्यात [वि+आ+ख्या+क्त ] 1. कथित, वर्णित ___4. इन्द्र तु० 'व्याल' / 2. स्पष्टीकृत, विवृत, टीकायुक्त / व्याडिः (पुं०) एक प्रसिद्ध वैयाकरण / व्याख्यात् (पुं०) [वि+आख्या --तच | व्याख्याकार, | व्याप्त (भू० क० कृ०) [वि-+आ+दा+क] विवृत, भाष्यकार / फलाया गया, फुलाया गया। व्याल्यानम् [वि+आ+ख्या+ल्युट् ] 1. संसूचन, वर्णन | व्यात्युक्षी [वि+आ+ अति+-उक्ष् -।-णिच्+अ +ङीष्] 2. भाषण, वक्तृता 3. स्पष्टीकरण, विवृति, अर्थकरण, जलविहार, जलक्रीडा। टीका। | व्यादानम् [वि-आ-दा+ल्यट] खोलना, उद्घाटन / व्याघट्टनम् [ वि+आ+घट+ ल्युट ] 1. बिलोना, मथना | व्यादिशः विशेषेण आदिशति स्वे स्वे कर्मणि नियोजयति 2. रगड़ना, घर्षण / वि--आ+दिशक विष्णु का विशेषण / व्याघातः [वि+आ+हन+क्त ] 1. रगडना 2. थप्पड, | व्याधः [व्यध+ण] 1. शिकारी, बहेलिया (जाति से या प्रहार 3. विध्न, रुकावट 4. वचन विरोध 5. एक पेशे के कारण) 2. दुष्ट मनुष्य, अधम पुरुष / सम० अलंकार जिसमें परस्पर विरोधी फल एक ही कारण -भीतः हरिण / से उत्पन्न दिखाये जाते हैं, मम्मट इसकी परिभाषा | व्याधामः, व्याधावः [ व्याध- अम्-|-णिच् + अच् ] इन्द्र निम्नांकित करता है- तद्यथा साधितं केनाप्यपरेण का वच। तदन्यथा / तथैव यद्विधीयेत स व्याघात इति स्मृतः / / / | व्याधिः [वि+आ+घा+कि] 1. बीमारी, रोग, रुजा, काव्य० 10, उदा० दे० विद्ध० 12, या विरूपाक्ष अस्वस्थता (प्रायः शारीरिक-विप० 'आधि' अर्थात के नीचे दिया गया उद्धरण / मानसिक रोग दुःख, चिन्ता आदि)-रिपुरुन्नतधीरचेतसः व्याघ्रः [ व्याजिघ्रति-वि+आ+घ्रा+क] 1. बाघ, सततव्याधिरनीतिरस्तु ते शि० 1611 (यहाँ चीता 2. (समास के अन्त में) सर्वोत्तम, प्रमुख, मुख्य 'व्याधि' का अर्थ 'आधि से मुक्त' भी है) तु० आधि ---जैसा कि नरव्याघ्र या पुरुषव्याघ्र में 3. लालरंग 2. कोढ़। सम० कर (वि०) अस्वास्थ्यकर-प्रस्त का एरंड का पौधा,--श्री मादा चीता- व्याघीव (वि.) रोगाकान्त, बीमार / तिष्ठति जरा परितर्जयन्ती-भर्त० 33109 / सम० | व्याधित (वि.) [व्याधिः सजातोऽस्य इतन् / रोगा-अटः चातक पक्षी,-आस्यः बिलाव, नमः, सम् क्रान्त, बीमार / For Private and Personal Use Only