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( ३७४ ) उघर भेजना, नेतृत्व करना, संचालन करना,-श०५।५ । -अनिः,-क्ष्माभूत (पु.) पश्चिमी पर्वत (सूर्य 2. फलाना, इधर उधर घुमाना 3. पहुँचाना, और चन्द्रमा इसके पीछे ही अस्त हो जाने वाले माने समाचार देना, दे देना, सौंप देना 4. चरने के लिए जाते हैं),--अवस्था अन्तिम दशा (बुढ़ापा),-काल: मुड़ना।
मृत्यु की घड़ी। घर (वि०) (स्त्री० ---री) [चर्+अच् ] 1. हिलने-जुलने | चरिः [ चर्+इन् ] जीव, जन्तु ।
वाला, जाने वाला, चलने वाला (समास के अन्त में) | चरित (भू० क. कृ.) [चर+क्त ] 1. घूमा हुआ या 2. कांपता हुआ, हिलता हुआ 3. जंगम दे० 'चराचर' फिरा हुआ, गया हुआ 2. अनुष्ठित, अभ्यस्त 3. अवाप्त
-मनु० ३।२०१, भग० १३।१५ 4. सजीव---मनु० 4. ज्ञात 5. प्रस्तुत,-तम् 1. जाना, हिलना-जुलना, ५।२९, ७।१५ 5. (प्रत्यय की भांति प्रयुक्त) पूर्व- मार्ग, कर्म करना, करना, अभ्यास, व्यवहार, कृत्य, कर्म कालीन, भूतपूर्व आढ्यचर जो पहले धनवान् था, --उदारचरिताना--हि. १७०, सर्व खलस्य चरितं इसी प्रकार देवदत्तचर, अध्यापकचर (भूतपूर्व अध्या- मशक: करोति- - १६८१ 3. जीवनी, आत्मजीवनी, पक),-र 1. दूत 2. खंजन पक्षी 3. जूआ खेलना साहसकथाएँ, इतिहास, कहानी-उत्तरं रामचरितं 4. कौड़ी 5. मंगलग्रह 6. मंगलवार। सम०--अचर तत्प्रणीतं प्रयुज्यते-उत्तर० १०२,इसीप्रकार 'दशकुमार(वि.) जंगम और स्थावर-चराचराणां भूतानां चरितम्' आदि । सम०-अर्थ (वि.)1. जिसने अपना कुक्षिराधारतां गतः--कु० ६।६७, २।५, भग० १११४३, अभीष्ट ध्येय पूरा कर लिया है, सफल --रामरावणयो(रम्) 1. सृष्टि की समस्त रचना, संसार-मनु० युद्धं चरितार्थमिवाभवत्-रघु० १२।८७, १०३६, ११५७, ६३, ३१७५, भग०.१११७, ९।१० 2. आकाश, २०१७, कि०१३।६२ 2. संतुष्ट, तृप्त 3. कार्यान्वित, अन्तरिक्ष,---द्रव्यम् जंगम वस्तु, मृतिः वह मूर्ति संपन्न । जिसका जलस या सवारी निकाली जाय ।
चरित्रम् [चर्+इत्र] 1. व्यवहार, आदत, चालचलन, चरकः [चर+कन् ] 1. दूत 2. रमता साधु, अवधूत । अभ्यास, कृत्य, कर्म 2. अनुष्ठान, पर्यवेक्षण 3. इतिहास, चरटः [चर्-+-अटच् ] खंजन पक्षी।
जीवनचरित, आत्मकथा, वृत्तांत, साहसकथा 4. प्रकृति, चरणः,-णम् [ चर् + ल्युट् ] 1. पैर---शिरसि चरण एष | स्वभाव 5. कर्तव्य, अनुमोदित नियमों का पालन
न्यस्यते वारयनम्-वेणी० ३।३८, जात्या काममवध्यो- -मनु० २२०, ९।७। ऽसि चरणं त्विदमुद्धतम्-३९ 2. सहारा, स्तंभ, थूणी चरिष्णु (वि०) [चर-+-इष्णुच् ] जंगम, सक्रिय, इधर 3. वृक्ष की जड़ 4. श्लोक की एक पंक्ति या पाद उधर घूमने वाला। 5. चौथाई 6. वेद की शाखा या सम्प्रदाय 7. वंश, चरुः [ चर+उन् ] उबले चावल, आदि से, देवताओं –णम् 1. हिलना-जुलना, भ्रमण करना, घूमना . तथा पितरों की सेवा में प्रस्तुत करने के लिए 2. अनुष्ठान, अभ्यास ---मनु० ६७५ 3. जीवनचर्या, तैयार की गई आहुति-रघु० १०१५२, ५४, ५६ । चालचलन, (नैतिक) व्यवहार 4. निष्पन्नता 5. खाना, सम०--स्थाली देवताओं तथा पितरों की सेवा में उपभोग करना । सम-अमृतम्,--उदकम् वह पानी प्रस्तुत करने के लिए चावलों को उबालने का बर्तन ।
चर्च i (चुरा० उभ०---चर्चयति-ते, चर्चित) पढ़ना, के पैर धोये जा चुके हैं,-- अरविंदम्,--कमलम्,
ध्यान पूर्वक पढ़ना, अनुशीलन करना, अध्ययन करना। -पद्मम् कमल जैसे पैर,-आयुधः मुर्गा,---आस्कन्दनम्
i (तुदा० पर०.-चर्चति, चचित) 1. गाली देना, पैरों के नीचे रौंदना, कुचलना, पद दलित करना धिक्कारना, निन्दा करना, बुराभला कहना, चर्चा ---प्रन्थि (पुं०)--पर्वन (नपुं०)टखना,-न्यासः पग,
करना, विचार करना। कदम, -पः वृक्ष,-पतनम् (दूसरे के चरणों में)गिरना, |
| चर्चनम् [चर्च + ल्युट] 1. अध्ययन, आवृत्ति, बार२ पढ़ना साष्टांग प्रणाम करना-अमरु १७, पतित (वि.) | 2. शरीर में उबटन लगाना। चरणों में दण्डवत प्रणाम करना-मेघ० १०५, चर्चरिका, चर्चरी [चर्चरी+कन्-+-टाप, ह्रस्वः, चर्च -शुश्रूषा, सेवा 1. दण्ड प्रणाम 2. सेवा, भक्ति। ।
+अरन्-+ोष्] 1. एक प्रकार का गान 2. (संगी० चरम (वि.) [चर+अमच ] 1. अन्तिम, अन्त्य, आखरी में) तालियां बजाना 3. विद्वानों का सस्वर पाठ
-चरमा क्रिया 'अन्त्येष्टिक्रिया या अन्त्येष्टि संस्कार'। 4. आमोद प्रमोद, हर्षध्वनि 5. उत्सव 6. खुशामद 2. पश्चवर्ती, बाद का-पृष्ठं तु चरम तनो:-अमर० 7. धुंघराले बाल। 3. (आय की दृष्टि से) बढ़ा 4. बिल्कुल बाहर का चर्चा, चचिका [चर्च् +-अङ+टाप, चर्चा+क+टाप, 5. पश्चिमी, पच्छमी 6. सबसे नीच, सबसे कम,-मम् इत्वम्] 1. आवृत्ति, स्वर पाठ, अध्ययन, बार२ पढ़ना (अव्य०) आखिरकार, अन्त में। सम०-अचलः। 2. बहस, पूछ-ताछ, अनुसंधान 3. विचार विमर्श
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