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( ३७३ ) काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते-सा० द० ५६९, उदा० । १२८९, मनु० ५।१५६, न चाप्याचरितः पूर्वरयं धर्मः भोजचंपू, नलचंपू और भारतचंपू आदि ।
--महा० 2. वर्ताव करना, व्यवहार करना, आचरण चय (भ्वा० आ० --चयते) किसी जगह जाना, हिलना
करना-पुत्रमिवाचरेत् शिष्यम्-सिद्धा०, पुर्व मित्रजुलना।
वदाचरेत् - चाण० ११ 3. घूमना, इधर-उधर फिरना चयः[ चि-अच ] 1. संघात, संग्रह, समुच्चय, ढेर, राशि
4. आश्रय लेना, अनुसरण करना-रघु० ४।४४, उद-, -चयस्त्विपामित्यवधारितं पुरा--शि० ११३, मदां।
1. ऊपर जाना, उठना, निकलना, आगे बढ़ना--शि० चयः ---उत्तर० २।९, मिट्टी का ढेर, कचानां चयः
१७५२, 2. उठना, प्रकट होना, (शब्द) निकलना ---भर्त० २५, बालों का मींडी (गुच्छा), इसी प्रकार ।
- ---उच्चचार निनदोऽम्भसि तस्याः . रघु०९।७३, १५॥ चमरीचयः-शि० ४।६० कुमुमचय तुपारचय आदि
४६, १६।८७, कोलाहलध्वनिरुदचरत् -- का० २७ 2. किसी भवन की नींव की मिटटी का टीला 3. किले
3. वोलना, उच्चारण करना --शब्द उच्चरित एव को खाई की मिटटी का टीला 4. दूर्गप्राचीर 5. किले मामगात्-रघु० १११७३ 4. मलोत्सर्ग करना, का द्वार 6. तिपाई, चौकी 7. भवनों का समूह, विशाल
पुरीपोत्सर्ग करना-तिरस्कृत्योच्चरेत्काष्ठलोष्टपत्रभवन 8. लकड़ियों का चट्टा।
तृणादिना -मनु०४।४९ 5. (आ० में प्रयोग) (क) चयनम् [चि- ल्युट्] 1. चुनना, वीनना (फूल आदि का)
उत्क्रमण करना, विचलित होना- भट्टि. ८५३१, 2. ढेर लगाना, चट्टा लगाना।
(ख) उठना, चढ़ना -नै० ५।४८, प्रेर० बुलवाना,
उच्चारण करवाना, उप-, 1. सेवा करना, हाजरी चर (भ्वा० पर०...चरति, चरित) 1. चलना, घमना, इधर
देना, सेवा में प्रस्तुत रहना-गिरिशमुपचचार प्रत्यहं सा उधर जाना, चक्कर काटना, भ्रमण करना--नष्टा
सुकेशी--कु० श६०, सममपचर भद्रे सुप्रियं चाप्रियं शङका हरिणशिशवा मन्दमन्दं चरन्ति-श० १२१५, (यहाँ 'चर' का अर्थ 'घास चरना' भी है)-इन्द्रियाणां
च-मृच्छ० ११३१, रघु० ५।६२, मनु० ३१९३
2. (रागी की) सेवा करना, चिकित्सा करना, परिहि चरताम्-भग० २०६७, कायश्चेहरातस्य रामस्येव
चर्या करना 3. व्यवहार करना 4. निकट जाना, दुस-, मनोरथाः-रघ० १२०५९, मनु० २।२३, ६६८, ८/२३६, ९।३०६, १०१५५ 2. अभ्यास करना, अनु-:
ठगना, धोखा देना, परि, --1. जाना, इधर उधर प्ठान करना, पर्यवेक्षण करना-चरतः किल दुश्चरं
घूमना 2. सेवा-शुश्रूपा करना, सेवा करना या सेवा में तपः --रघु० ८७९, याज्ञ० १६०, मनु० ३।३०,
उपस्थित रहना -मनु० २।२४३, भर्त० ३।४. 3. देख 3. करना, ब्यवहार करना, आचरण करना (प्रायः
भाल करना, परिचर्या करना,सेवा करना, प्र, -1. इधर 'अधि०' के साथ)-चरन्तीनां च कामत:-मनु० ५।९०
उधर चलना, ऐंठ कर चलना 2. फैलना, प्रचलित ९/२८७, आत्मवत्सर्वभूतेषु यश्चरेत् - महा०, तस्यां त्वं
होना, वर्तमान होना 3. (प्रथा का) प्रचलन होना साधु नाचरः --रघु० ११७६, (यहाँ पर धातु 'आचर'
4. कार्य आरंभ करना, मार्ग अपनाना, कार्य करने भी हो सकती है) 4. घास चरना--मुचिरं हि चरन्
लगना ...मनु० ९।२८४, (प्रेर०) इधर उधर फिराना, शस्यं-हि० ३।९ 5. खाना, उपभोग करना 6. काम
वि, -1. इधर उधर घूमना, भ्रमण करना,--रघु० में लगना, व्यस्त होना 7. जोना, चायने रहना, किसी
२२८, मेघ० ११५ 2. करना, अनुष्ठान करना, अभ्यास न किसी अवस्था में विद्यमान रहना। प्रेर०-चारयति
करना 3. कर्म करना, बर्ताव करना, व्यवहार करना, 1. चलाना, हिलाना-जुलाना 2. भेजना, निदेश देना, (प्रेर०) 1. सोचना, विचारना, मनन करता 2. चर्चा हिलाना 3. दूर करना 4. अनुष्ठान करना, अभ्याम करना, वादविवाद करना -रघु० १४१४६ 3. हिसाब कराना 5. संभोग कराना,---अति 1. अतिक्रमण करना लगाना, अनुमान लगाना, हिसाव में गिनना, विचार उल्लंघन करना, अवज्ञा करना 2. अत्याचार करना, करना--परेषामात्मनश्चैव यो विचार्य बलाबलम-पंच० अनु -, अनुकरण करना, अन्वा.....नकल करना, पीछे ३, सुविचार्य यत्कृतम् ----हि० १२२, व्यभि, --1. पथचलना, अप-, 1. अतिक्रमण करता, अत्याचार करना भ्रष्ट होना, विवलित होना 2. उल्लंघन करना, 2. अपज्ञा करना, अभि- 1. आराध करना, उल्लंबन विश्वास घात करना 3. कपटपूर्ण व्यवहार करना, करना 2. (पति के रूप में विश्वास खो देना, बोग्या सम् ---(आ. जब कि करण के साथ प्रयोग हो) देना-मनु० ५।१६२, ९।१०२ 3. जादू करना, मंत्र 1. चलना, घूमना, जाना, गुजरना, इधर उधर फिरना फूकना --तथैवाभिचरन्नपि ----याज्ञ० ११२९५, ३।२८९, ---यानः समचरन्तान्ये-भट्रि० ८१३२, क्वचित्पथा आ-, 1. कर्म करना, अभ्यास करना, करना, अनु- संचरते सुराणाम् --रघु० १३।१९, नै० ६/५७, संचप्ठान करता -..-तपस्विकन्यास्वपिनयमाचरति ...10 रतां धनानां कु०१६ 2. अभ्यास करना, अनुष्ठान ११२५, त्वं च तस्येष्टमाचरेः ---विक्रम० ५।२०, रघु० । करना 3. दे देना, हस्तांतरित होना । (प्रेर०) 1. इधर
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