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चमस् (पुं०) [चन्द्र + मि+असुन, मादेशः ] चाँद, -नक्षत्र | ताराग्रहसंकुलापि ज्योतिष्मती चन्द्रमसेव रात्रिः-- रघु० ६।२२ ।
wer [ चन्द्र + न् +टाप् ] 1. चांदनी, ज्योत्स्ना- इतः स्तुतिः का खलु चन्द्रिकाया यदब्धिमप्युत्तरलीकरोति - ने० ३।११६, रघु० १९ ३९, कामुकैः कुम्भीलकैश्च परिहर्तव्या चन्द्रिका - मालवि० ४ 2. ( समास के अन्त में ) विशदीकरण, प्रस्तुत विषय पर प्रकाश डालना । अलंकारचंद्रिका, काव्यचंद्रिका - तु० - कौमुदी 3. जगमगाहट 4. बड़ी इलायची 5. चन्द्रभागा नामक नदी 6. मल्लिका लता । सम० - अम्बुजम् चन्द्रोदय होने पर खिलने वाला कुमुद, - - ब्राथः चन्द्रकांतमणि, - पायिन् (पुं०) चकोर पक्षी ।
चलि: [ चन्द्र + इलच् ] 1. शिव का विशेषण । चप् i (स्वा० पर०--. चपति) सांत्वना देना, ढाढस देना । ii ( चुरा० उभ० चपयति - ते) पीसना, चूरा करना, मांडना । चपटः चपेटः
चपल (वि० ) [ चुप् + कल, उपघोकारस्याकारः ] 1. हिलनेडुलने वाला, कंपमान, थरथराने वाला – कुल्याम्भोभिः पवनचपलैः शाखिनो घौतमूला: - श० १११५, चपलायताक्षी-चौर० ८ 2. अस्थिर, चंचल, चलचित्त, दोलायमान - शा० २।११, चपलमति आदि 3. भंगुर, अनित्य, क्षणिक - नलिनीदलगतजलमतितरलं तद्वज्जीवितमतिशयचपलम् - मोह० ५ 4. फुर्तीला, चंचल, चुस्त- (गतम्) शैशवाच्चपलमप्यशोभते - का० १११८ 5. विचारशून्य, अविवेकी - तु० चापल, लः 1. मछली 2. पारा 3. चातक पक्षी 4. क्षय 5. सुगंध द्रव्य । चपला [ चपल + टापू] 1. बिजली-कुरवककुसुमं चपला
सुषमं रतिपतिमृगकानने- गीत० ७ 2. व्यभिचारिणी स्त्री 3. मदिरा 4. धन की देवी लक्ष्मी 5. जिह्वा । सम० - जनः चंचल तथा अस्थिरमन स्त्री । शि० ९।१६ ।
'चपेटः [चप् + इट् +अच्] 1 थप्पड़ 2. चाटा । चपेटा, चपेटिका [चपेट् + टाप्, चपेट + कन् + टाप्, इत्वम् ] चांटा - खण्डकोपाध्यायः शिष्याय चपेटिकां ददाति
महा० 1
चम् ( वा० पर० - चमति चान्त) 1. पीना, आचमन करना, चढ़ा जाना, चचाम मधु माध्वीकम् भट्टि० १४ । ९४ २. खाना, आ-, ( आ-चामति) 1. आचमन करना, एक सांस में पी जाना, चाटना नाचेमे हिममपि वारि वारणेन - कि० ७।३४, भामि० ४१३८, उत्तर० ४।१ 2. चाट लेना, पी जाना, सोख लेना -- आचामति स्वेदलवान्मुखे ते— रघु० १३।२०,
९।६८ ।
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चमत्करणम्, चमत्कारः, चमत्कृतिः (स्त्री० ) 1. विस्मय, आश्चर्य 2. खेल तमाशा 3. काव्य सौन्दर्य ( जिससे काव्यरस की अनुभूति होती है ) - चेतश्चमत्कृतिपदं कवितेव रम्या - भामि० ३।१, तदपेक्षया वाच्यस्यैव चमत्कारित्वात् -- काव्य ० १ ।
चमरः [ चम् + अरच् ] एक प्रकार का हरिण, रः, रम् चौरी (प्राय: चमर मृग की पूंछ से बनी ), री, चमर की मादा - यस्यार्थयुक्तं गिरिराजशब्दं कुर्वन्ति बालव्यजनैश्चमर्यः कु० १११, ४८, शि० ४६०, मेघ० ५३ । सम० - पुच्छम् चमर की पूंछ जो पंखे का काम देती है, (च्छः ) गिलहरी । चमरिकः [ चमर + ठन् ] कोविदार वृक्ष, कचनार
का पेड़ ।
चमसः
सम् [ चमत्यस्मिन् चम - असच् तारा०] सोमपान करने का लकड़ी का चमचे के आकार का यज्ञ पात्र, -- याज्ञ० १०१८३, ('चमली भी ) ।
चमूः (स्त्री० ) [ चम् + ऊ ] सेना - पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् - भग० ११३, वासवीनां चमूनाम् - मेघ० ४३, गजवती जवतीव्रह्या चमूः रघु० ९।१० 2. सेना का एक भाग जिसमें ७२९ हाथी, ७२९ रथ, २१८७ सवार तथा ३६४५ पदाति हों । सम० - चरः सैनिक, योद्धा, नाथः, पः, पतिः सेनापति, कमांडर, सेना नायक रघु० १३।७४, -- हरः शिव की उपाधि ।
चमूदः [ चम् + ऊर, उत्वम् ] एक प्रकार का हरिण चकासतं चारुचमूरुचर्मणा - शि० ११८ ।
चम्पू ( चुरा० उभ० - चम्पयति - ते ) जाना, चलनाफिरना ।
चम्पक: [ चम्प | बुल] 1. चम्पा नामक पौधा जिसके पीले,
सुगंधयुक्त फूल लगते हैं 2. एक प्रकार का सुगंध द्रव्य, ---कम् इस वृक्ष का फूल - अद्यापि तां कनकचम्पकदामगीरीम् - चौर० १ । 1. सम० – माला चम्पाकली, स्त्रियों का एक आभूषण जो गले में पहना जाता 2. चम्पा के फूलों की माला 3. एक प्रकार का छंद, दे ० परिशिष्ट, रम्भा केले की एक जाति । चम्पकालुः [ चम्पकेन पनसावयवविशेषेण अलति, चम्पक
+ अल् + उण् ] कटहल का पेड़ । चम्पकावती, चंपा, चंपावती [ चम्पक + मतुप् + ङीप्, वत्वं
दीर्घश्च, चम्प् + अ + टाप्, चम्पा + मतुप् + ङीप् वत्वं ] गंगा के किनारे एक प्राचीन नगर, अंगदेश की राजधानी, वर्तमान भागलपुर ।
चम्पालु – चम्पकालु |
चम्पूः (स्त्री० ) [ चम्पू + ऊ ] एक प्रकार का काव्य जो "गद्य और पद्य दोनों रचनाओं से युक्त होता है तथा जिसमें एक ही विषय की चर्चा होती है---गद्यपद्यमयं
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