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। ३७१ ) चन्द (भ्वा० पर०-चन्दति, चन्दित) 1. चमकना, प्रसन्न । १२४ (त:,-तम्) रात को खिलने वाला श्वेत कुमुद होना, खुश होना।
(तम) चन्दन की लकड़ी--कला चन्द्रमा की रेखा चन्दः [ चन्द +-णि --अच् ] 1. चन्द्रमा, कपूर।।
--राहोश्चन्द्रकलामिवाननचरी देवात्समासाद्य मे-मा० चन्दनः, -नम् [ चन्द्-+-णिच् + ल्युट ] चंदन (चंदन का
५।२८,--कान्ता 1. रात 2. चांदनी,--कान्तिः चांदनी वृक्ष, इसकी लकड़ी या इससे तैयार किया गया कोई (नपुं०) चांदी,-क्षयः चांद्रमास का अंतिम दिन स्निग्ध पदार्थ–सुगंध और शीतलता की दृष्टि से (अमावस्या) या नूतनचन्द्रदिवस जब कि चन्द्रमा अत्युत्तम समझा जाता है)। अनलायागुरुचन्दनधसे
दिखाई नहीं देता,-गहम कर्कराशि, राशिचक्र में चौथी ..--रघु०८७१ मणिप्रकाराः सरसं च चंदनं गचौ प्रिये राशि, गोलः चन्द्रलोक, चन्द्रमंडल,-गोलिका चाँदनी, यांन्ति जनस्य सेव्यताम् ऋतु० ११२, एवं च भापते
---ग्रहणम् चन्द्रमा का राहुग्रस्त होना,-चञ्चला छोटी लोकश्चन्दनं किल शीतलम, पुत्रगात्रस्य संस्पर्शश्चन्द- मछली,-चूडः -चूडामणिः । मौलिः,--शेखरः शिव नादतिरिच्यते-पंच० ५।२०, बिना मलय मन्यत्र चंदनं
के विशेषण -रहस्युपालभ्यत चन्द्रशेखरः--कु० ५।५८, न प्ररोहति -११४१। सम०- अचल:-अद्रिः --गिरिः,
८६, रयु० ६॥३४,-दाराः (पु०, ब० ब०) 'चन्द्रमा मलय पर्वत, उदकम् चन्दन का पानी, पुष्पम् लौंग,
की पत्नियां' २७ नक्षत्र (पुराणों को दष्टि से यह दक्ष -सारः अत्यंत श्रेष्ठ चंदन की लकड़ी।
की पुत्रियाँ थी और चन्द्रमा को ब्याही गई थीं), चन्दिरः [चन्द+किरच ] 1. हाथी 2. चन्द्रमा --अपि -द्युतिः चन्दन की लकड़ी (स्त्री०) चांदनी,-नामन
च मानसमम्बनिधिर्यशो विमलशारदचन्दिरचन्द्रिका (५०) कपूर, पादः चन्द्रकिरण-----मेघ० ७०, मा० --भामि० ११११३, मुकुन्दमखचन्दिरे चिरमिदं चको
३।१२, -प्रभा चन्द्रमा का प्रकाश, -- बाला 1. बड़ी रायताम्--४।१।
इलायची 2. चांदनी, बिदुः अनुस्वार (0) का चिह्न चन्द्रः [चन्द्+णिन्+रक] 1. चन्द्रमा, यथा प्रह्लाद
-- भस्मन (नपु०) कपूर, --भागा दक्षिणभारत की नाच्चन्द्रः-रघु० ४।१२, हृतचन्द्रा तमसेव कौमुदी
एक नदी, -भासः तलवार दे० चंद्रहास,--भूति नपुं०)
चाँदी, मणिः चन्द्रकांत मणि,-रेखा,-लेखा चन्द्रमा -----८१३७, न हि संहरते ज्योत्स्ना चन्द्रश्चाण्डालवेश्मनि
की कला, रेणुः साहित्यचार-लोक: चंद्रसंसार ---हि० १।६१, मुखं, वदन' आदि; पर्याप्तचन्द्रेव
---लोहकम, -लौहम,---लोहकम चाँदी,-वंशः राजाओं शरतत्रियामा-कु०७।२६ (पौराणिकवन के लिए दे० सोम) 2. चन्द्र ग्रह 3. कपूर ---विलेपनस्याधिकचन्द्र
का चन्द्रवंग, भारत के राजवंशों में दूसरी बड़ी पंक्ति, भागताविभावनाच्चापललाप पाण्डुताम्--नै० ११५१
.- बदन (वि०) चन्द्रमा जैसे मुख वाला,-व्रतम् एक 4. मयूर पंखों में 'आँख' का चिह्न 5. जल 6. सोना
प्रकार की प्रतिज्ञा या तपस्या-चांद्रायण,-शाला (जब 'चन्द्र' शब्द समाप के अन्त में प्रयक्त होता है:
1. चीत्रारा (घर में सबसे ऊपर की मंजिल का कमरा)
..रघु० १३१४० 2. चाँदनी,- शालिका चौबारा, तो इसका अर्थ होता है श्रेष्ठ, प्रमुख, श्रीमान् यथा पुरुपचन्द्रः, “मनुष्यों में चन्द्रमा” अर्थात् एक श्रेष्ठ या
. शिला चंद्रकांतमणि भट्रि० १११५,--संज्ञः महानुभाव व्यक्ति), द्रा 1. इलायची 2. खला कमरा
कपूर, संभवः बुध (वा) छोटी इलायची,--सालो(जिम पर केवल छन हो हो) । सम० अंशः चन्द्रमा
क्यम् चांद्र स्वर्ग की प्राप्ति,--हन (नपुं०) राहु का को किरण, ...अर्थः आधा चन्द्रमा, चडामणिः, मौलि:
विशेपण, हासः 1. चमकीली तलवार 2. रावण की 'शेखरः शिव के विशेषण, आतपः 1. चाँदनी 2. चंदोत्रा
तलवार-हे पाणयः किमिति वाञ्छथ चन्द्रहासम् 3. प्रशस्त कक्ष (जिसको केवल छत ही हो),-आत्मजः,
-वालरा० ११५६, ६१ 3. केरल का, एक राजा, ...--औरस:--जः--जातः,--तनयः-नन्दनः,--पुत्रः बुध
सुधार्मिक का पुत्र (यह मूलनक्षत्र में पैदा हुआ था, ग्रह, ---आनन (वि.) चन्द्रमा जैसे मुख वाला (नः)
और इसके बायें पैर में छ: अंगुलियाँ थी, इसी कारण कार्तिकेय का विशेषण,-आपीडः गिव का विशेषण,
इसका पिता शत्रुओं द्वारा मारा गया और यह अनाथ - आभासः ‘झुठा चंद्रमा' वास्तविक चन्द्रमा से मिलती
और दरिद्र हो गया। बहुत प्रयत्न करने के पश्चात् जुलती आकाश में दिखाई देने वाली आकृति,-आह्वयः
उसका राज्य उसे फिर मिल गया। जिस समय
अश्वमेव के घोड़े के साथ घूमते हुए कृष्ण और अर्जुन कपुर,-इष्टा कमल का पौधा, कमलों का समह, गत को कुमदिनो का खिलना, उदयः चन्द्रमा का उगना,
दक्षिण में आये तो इसने उनसे मित्रता कर ली)। - उपलः चन्द्रकांतमणिा-कान्तः चंद्रकांतमणि ( चन्द्रमा चन्द्रक: [चन्द्र+कन्] 1. चाँद 2. मोर के पंखों में आँख के प्रभाव से कहते है इस मणि से रस झरता है) ___ का चिह्न 3. नाखून 4. चन्द्रमा के आकार का वृत्त -- द्रवति च हिमरश्मावुद्गते चन्द्रकान्तः-उतर०
(पानी में तेल की बूंद गिरने से बन जाता है)। ६।१२, शि० ४।५८, अमरु ५७, भर्तृ० ११२१, मा० । चन्द्रकिन् (पं.) [चन्द्रक-इनि] मोर,-शि० ३।४९ ।
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