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प्रत्युक्ति, निर्णय, बाहुः विष्णु की उपाधि (हु-नपु०)। संन्यास,---- भाज (वि०) अपनी प्रजा से आय का वर्ग,-भद्रम् चारों पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ काम तथा । चतुर्थाश ग्रहण करने वाला, राजा, (अर्थ संकट के मोक्ष) की समष्टि, ---भागः चौथाभाग चौथाई, - भुज अवसर पर ही चतुर्थांश लेना विहित है अन्यथा प्रच(वि.) 1. चतुष्कोण 2. चार भुजाओं वाला-भग० लित केवल छठा भाग है)। ११३४६, (०) विष्णु की उपाधि --रघु० १६॥३, चतुर्थक (वि०) [चतुर्थ+कन् ] चौथा,- कः चौथेया (नपुं०) वर्ग,---मासम् चातुर्मास्य, चौमासा (आषाढ | ज्वर (जो हर चार दिन के बाद आता है) चौथिया। सुदी एकादशी से कार्तिक सुदी दशमी तक),-मुख | चतुर्थी [चतुर्थ+ङीप् ] 1. चांद्र पक्ष का चौथा दिन (वि०) चार मुंह वाला (ख:) ब्रह्मा का विशेषण 2. (व्या० में) संप्रदान कारक। सम०- कर्मन् त्वत्तः सर्व चतुर्मुखात्-रघु० १०॥२२, (खम्) (नपुं०) विवाह के चौथे दिन किया जाने वाला 1. चार मुंह-कु० २१७ 2. चार द्वार वाला मकान, संस्कार।
-युगम् चार युगों की समष्टि, रात्रम् (चतूरात्रम् चतुर्धा--(अव्य.) [ चतुर्+धा] चार प्रकार से, चार रात्रियों का समूह,-- वक्त्रः ब्रह्मा का विशेषण, चारगुणा। -वर्गः मानव जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ चतुष्क (वि०) [चतुरवयवं चत्वारोऽवयवा यस्य वा कन् ] काम और मोक्ष) का समूह-रघु० १०।२२,--वर्णः 1. चार से युक्त 2, चार बढ़ा कर-द्विकं त्रिकं चतुष्क हिन्दुओं की चार श्रेणियाँ या जातियाँ अर्थात् ब्राह्मण, च पञ्चकं च शतं समम् .. मनु०८।१४२ (अर्थात १०२, क्षत्रिय वैश्य और शूद्र-चतुर्वर्णमयो लोकः-- रघु० १०३, १०४, या १०५ या दो से पाँच प्रतिशत का १०।२२,-बर्षिका चार वर्ष की आय की गाय,--विश ब्याज),--कम् 1. चार का समूह 2. चौराहा 3. चौकोर (वि.) 1. चौबीस 2. चौबीस जोड़कर जैसे कि आंगन 4. चार स्तंभों पर अवस्थित भवन, कमरा या चतुर्विशशतम्--१२४),--विशति (वि. या स्त्री०) सुकक्ष- कु०५।६९, ७१९,--- एकी 1. एक चौकोर बड़ा चौबीस,--विशतिक (वि०) २४ से युक्त,-विद्य तालाब 2. मच्छरदानी, मसहरी।। (वि.) जिसने चारों वेदों का अध्ययन किया है | चतुष्टय (वि.) (स्त्री०-यी) [ चत्वारोऽवयवा विधा-विध (वि०) चार प्रकार का, चौतही, वेद अस्य तयप् ] चारगुणा, चार से युक्त----पुराणस्य कवे(वि.) चारों वेदों से परिचित (दः) परमात्मा, स्तस्य चतुर्मखरामीरिता, प्रवृत्तिरासीच्छब्दानां चरि- म्यूहः विष्णु का नाम (हम्) आयुर्वेद विज्ञान तार्था चतुष्टयी। कु० २।१७,...- यम् चार का समूह ---शालम् (चतुः शालम्, चतुश्शालम्, चतुः शाली, ___... एकैकमप्यनर्थाय किम यत्र चतुष्टयम् -- हि०प्र०११, चतुश्शाली) चार मकानों का व.., चारों ओर चार कु०७।६२, मासचतुष्टयस्य भोजनम्-हि०१ 2. वर्ग । भवनों से घिरा हुआ चतुष्कोण, षष्टि (वि० या चत्वरम् [चत् -वरच ] 1. चौकोर जगह या आंगन स्त्री०) चौंसठ कला (ब० व०) चौंसठ कलाएँ, 2. चौराहा (जहाँ कई सड़कें मिलें)–स खल श्रेष्ठि---सप्तति (वि० या स्त्री०) चौहत्तर,- हायन,... " चत्वरे निवसति -- मच्छ०२ 3. यज्ञ के लिए तैयार (वि.) चार वर्ष की आय का (इस शब्द का स्त्री- की गई समतल भूमि। लिङ्गरूप आकारान्त है यदि निर्जीव पदार्थों का ही चत्वारिंशत् (स्त्री०)[ चत्वारो दशतः परिमाणमस्य-ब० उल्लेख है; और यदि सजीव जन्तुओं से अभिप्राय है। स०, नि० ] चालीस।। तो यह सब 'ईकारान्त' बन जाता है),--होत्रकम् | चत्वाल: [चत+वाला 11. यज्ञाग्नि रखने के लिए या चारों ऋत्विजों (पुरोहितों) का समूह ।
आहुति देने के लिए भूमि खोद कर बनाया गया हवनचतुर (वि०) [चत्+उरच ] 1. होशियार, कुशल, कुंड 2. कुशघास 3. गर्भाशय ।
मेधावी, तीक्ष्णबुद्धि-सर्वात्मना इतिकथाचतुरेव दूती चद् (भ्वा० उभ०--चदति-ते) कहना, प्रार्थना करना। ---मुद्रा० ३।९ अमरु १५।४४, मृगया जहार चतुरेव | चदिरः [चद ---किरच, नि० ] 1. चन्द्रमा 2. कपूर 3. हाथी कामिनी-रघु० ९।६९, १८।१५ 2. फुर्तीला, द्रुत
4. साँप । गामी या तेज 3. मनोज्ञ, सुन्दर, प्रिय, रुचिकर --न
चन (अव्य०) नहीं, न केवल, भी नहीं (अकेला कभी पुनरेति गतं चतुरं वयः--रघु० २।४७, कु. ११४७,
प्रयुक्त नहीं होता, बल्कि सर्वनाम 'किम्' तथा इससे ३१५, ५।४९,—रम् 1. होशियारी, मेधाविता
व्युत्पन्न शब्दों (कद्, कथम् , क्व, कदा, कुतः आदि) के 2. हस्तिशाला।
साथ प्रयुक्त होकर अनिश्चयात्मक अर्थ को व्यक्त चतुर्थ (वि.) (स्त्री०---थी) [चतुर्णां पूरणः डट् थुक करता है--दे० 'किम्' के नी०) [ कई विद्वान् 'चन'
च] चौथा,-र्थम् चौथाई, चौथा भाग । सम० को पृथक् शब्द न मान कर केबल (च) और (न) -आश्रमः ब्राह्मण के धार्मिक जीवन की चौथी अवस्था का संयोग मानते हैं।
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