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- भानु: सूर्य -- ईश्वरः शिव का एकरूप, मुंडा दुर्गा का ही एक रूप (चामुंडा ), मृगः जंगली जानवर - विक्रम (वि०) तीक्ष्ण शक्ति का, अपनी शक्ति में भीषण ।
चण्डा, डो ( स्त्री० ) 1. दुर्गा का विशेषण 2. आवेशयुक्त, या कोधी स्त्री-चण्डी चण्डं हन्तुमभ्युद्यता माम्मालवि० ३।२१, चंण्डी मामवधूय पादपतितं जातानुतापेव सा - विक्रम ०४।२८, रघु०१२१५, मेघ० १०५ । सम० - ईश्वरः, पतिः शिव का विशेषण -- पुण्यं यायास्त्रिभुवनगुरोर्घाम चण्डीश्वरस्य – मेघ० ३३ । चण्डातः [ चण्ड-+- अत् + अण् ] सुगंधयुक्त करवीर । चंण्डकः, -कम् [ चण्ड + अत् + ण्वुल् ] लहंगा, साया । चण्डाल ( वि० ) [ चण्ड् + आलच् ] दुष्कर्मा, क्रूर कर्मा, तु० कर्मचांडाल, लः 1. अत्यंत नीच और घृणित वर्णसंकर जाति जिसकी उत्पत्ति शूद्र पिता व ब्राह्मण माता से हुई मानी जाती है 2. इस जाति का पुरुष, जातिबहिष्कृत --- चण्डालः किमयं द्विजातिरथवा भर्तृ० ३५६, मनु० ५।१३१, १०।१२, १६, ११।१७५ । सम० - वल्लकी चंडाल की वीणा, एक सामान्य या देहाती वीणा ।
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austfont [ चण्डाल --- ठन् +टाप् ] चण्डाल की वीणा । चण्डिका [ चण्डी+कन्+टाप्, ह्रस्वः ] दुर्गा देवी । arosa (पुं० ) [ चण्ड + इमनिच् ] 1. आवेश, उग्रता, तीक्ष्णता, क्रोध, 2. गर्मी, ताप । चण्डिल: [ चंडु + इलच् ] नाई । चतुर (सं० वि० ) [ चत् + उरन् ] ( नित्य बहुवचनांत, पुं० चत्वारः, स्त्री० चतस्रः, नपुं० चत्वारि ) चार - चत्वारो वयमृत्विजः – वेणी० ११२२, चतस्रोऽवस्था बाल्यं कौमारं यौवनं वार्धकं चेति, चत्वारि शृङ्गा त्रयोऽस्य पादाः आदि-शेषान् मासान् गमय चतुरो लोचने मीलयित्वा मेघ० ११०, समास में चतुर् कार् विसर्ग बन जाता है और विसर्ग कई स्थानों पर स् या में परिणत हो जाता है अथवा अपरिवर्तित रहता है । सम० अंश: चतुर्थ भाग, अङ्ग ( वि०) चार सदस्यीय, चार दल युक्त, (-गम्) 1. हाथी, रथ, घोड़े और पदाति इन चार अंगों से सुसज्जित सेना - एको हि खंजनवरो नलिनीदलस्थो दृष्टः करोति चतुरङ्गनलाविपत्यम् - श्रृंगार० ४, चतुरङ्गवलो राजा जगतीं वशमानयेत्, अहं पञ्चाङ्गबलवानाकाशं वशमानयेसुभा० 2. एक प्रकार की शतरंज, अन्त ( वि० ) चारों ओर सीमायुक्त - भूत्वा चिराय चतुरन्त महीसपत्नीश० ४ १९, अन्ता पृथ्वी, अशीत (वि०) चौरासियाँ,
-अशोति (वि० [स्त्री०) चौरासी, अश्र, अत्र (वि० ) ( अश्रि-त्रि के स्थान पर) 1. चार किनारों वाला, चतुष्कोण - रघु० ६।१० 2. सममित, नियमित
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या सुन्दर, सुडौल - बभूव तस्याश्चतुरस्रशोभि वपुः -कु० ११३२, ( श्र:, त्रः ) वर्गाकार, अहम् चार दिन का समय - आननः ब्रह्मा का विशेषण- इतरतातापशतानि यथेच्छया वितर तानि सहे चतुरानन- उद्भट, --- आश्रमं ब्राह्मण के धार्मिक जीवन की चार अवस्थाएँ, उत्तर (वि०) चार बढ़ा कर, कर्ण (चतुकर्ण) (वि०) केवल दो व्यक्तियों द्वारा ही सुना गया, कोण ( चतुष्कोण) (वि०) वर्ग, चार कोनों वाला, (ण) वर्ग, चतुर्भुज, चार पार्श्व वाली आकृति
गति: 1. परमात्मा 2. कछुवा, गुण (वि०) चारगुणा, चौहरा, चौलड़ा, चत्वारिंशत् ( चतुश्चत्वारिशत्) (वि०) चवालीस, रिंश चवालिसव, णवत (चतुर्णवत) (वि०) चौरानवेवाँ या चौरानवे जोड़ कर - चतुर्णवतं शतम् - एक सौ चौरानवे, दंतः इन्द्र के हाथी ऐरावत का विशेषण, वश (वि०) चौदहवाँ ---दशन् (वि०) चौदह रत्नानि ( ब० व०) समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप समुद्र से प्राप्त १४ रत्न ( इनके नाम निम्नांकित मंगलाष्टक में गिनाये गये हैं: लक्ष्मी: कौस्तुभपारिजात कसुरा धन्वन्तरिश्चन्द्रमा गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवाङ्गनाः, अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधनुः शङ्खोऽमृतं चाम्बुधे रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्युः सदा मङ्गलम्, विद्या: ( ब० To) चौदह विद्याएँ (वे यह हैं:- षडंगमिश्रिता वेदा धर्मशास्त्रं पुराणकम्, मीमांसा तर्कमपि च एता विद्याश्चतुर्दश), दशी चांद्रपक्ष का चौदहवाँ दिन, विशन् सामूहिक रूप से चारों दिशाएँ, दिशम् (अव्य ० ) चारों दिशाओं में, सब दिशाओं में, दोल, लम् राजकीय पालकी, द्वारम् 1. चारों दिशाओं में चार द्वारों वाला मकान 2. सामूहिक रूप से चारों द्वार,
नवति (वि०-स्त्री०) चौरानवे, पञ्च ( वि० ) ( चतुः पंच या चतुष्पंच) चार या पांच, पञ्चाशत् ( स्त्री० ) ( चतुःपञ्चाशत्, चतुष्पञ्चाशत् ) चव्वन - पथः (चतुः पथः, चतुष्पथः ) ( थम् भी) वह स्थान जहाँ चार सड़कें मिलें, चौराहा, मनु० ४।३९ ९।२६४, (थ) ब्राह्मण, पद ( वि० ) ( चतुष्पदः ) 1. चार पैरों वाला 2. चार अंगों वाला (दः) चौपाया ( दी ) चार चरण का श्लोक - पद्यं चतुष्पदी तच्च वृत्तं जातिरिति द्विधा - छं० १, पाठी (चतुष्पाठी) ब्राह्मणों का विद्यालय जिसमें चारों वेदों का पठनपाठन होता हो । - पाणि: ( चतुष्पाणिः ) विष्णु का विशेषण, पाद्द ( चतुष्पाद्-द) (वि०) 1, चौपाया 2. पाँच सदस्यीय या पाँच भागों वाला, (पुं०) 1. चौपाया 2. ( विधि में ) न्यायांग की एक कार्यविधि (अभियोगों की जाँच पड़ताल ) जिसमें चार प्रकार की प्रक्रियाएँ हों अर्थात् तर्क, पक्षसमर्थन
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