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4. शरीर में उबटन का लेप करना-अङ्गचर्चामरचयम् । विधि 4. अभ्यास, अनुष्ठान, पालन-मनु० १११११, ...का१५७, श्रीखण्डचर्चाविषम् --गीत०९।
व्रतचर्या, तपश्चर्या 5. सब प्रकार के रीति-रिवाज व चचिक्यम् [चर्चिका+यत्] 1. शरीर में लेप (मालिश) संस्कारों का नियमित अनुष्ठान 6. खाना 7. प्रथा, ____ करना 2. उबटन ।
रिवाज--मनु०६।३२।। चचित (भ० क. कृ.) चर्च+क्त] 1. मालिश किया चर्व (भ्वा० पर--चुरा० उभ०---चर्वति, चर्वयति-ते,
हुआ, लेप किया हुआ, सुगंधित, सुवासित आदि चवित) 1. चबाना, कुतरना, खाना, कोपल चरना, --- चन्दनचचितनीलकलेवरपीतवसनवनमाली ---गीत. काटना-लागलं गाढतरं चवितुमारब्धवान्- पंच ४, १, ऋतु० १२१ 2. चर्चा किया गया, विचार किया यस्यैतच्च न कुक्कुरैरहरहर्जङघान्तरं चय॑ते-मच्छ. गया, खोज किया गया ।
२।११ 2. चूस लेना 3. स्वाद लेना, चखना। चर्पटः [चूप-+-अटन् चपेड़, थप्पड़ तु० 'चपेट' ।
चर्वणम,–णा [चर्व + ल्युट, स्त्रियां टाप्] 1. चबाना, चर्पटी [चर्पट+डोष्] चपाती, बिस्कुट ।
खाना 2. आचमन करना 3. (आलं.) चखना, स्वाद चर्भटः [चर्+क्विप्, भट्+अच्, ततः कर्म० स०] एक
लेना, आनन्द लेना--प्रमाणं चर्वणवात्र स्वाभिने प्रकार की ककड़ी।
विदुषां मतम्--सा० द० ५७, (टी० चर्वणा आस्वादनं चर्भटी [चर्भट--डोष] 1. हर्ष का कोलाहल 2. ककड़ी।
तच्च स्वादः काव्यार्थसंभेदादात्मानन्दसमुद्भव इत्युक्तचर्मम् [चर्मन् +अच्, टिलोपः] ढाल ।
प्रकारम् ), इसी प्रकार 'निष्पत्त्या चर्वणस्यास्य चर्मण्वती [चर्मन+मतुप+ङीष, मस्य वः] गंगा में जाकर निष्पत्तिरुपचारतः' ५८ ।
मिलने वाली एक नदो, वर्तमान चम्बल नदी। चर्वा [चर्व + अङ] तमाचा, थप्पड़ का प्रहार (चर्वन् (पुं०) चर्मन् (नपुं०) चर्+मनिन्] 1. (शरीर की) त्वचा भी)।
2. चमड़ा, खाल-मनु० २।४१, १७४ 3. त्वगिन्द्रिय | चवित (भ० क० कृ०) चिर्व+क्त] 1. चबाया गया, 4. हाल-शि० १८।२१। सम-अम्भस् (नपुं०) काटा हुआ, खाया हुआ 2. चखा गया। सम० लसीका, अवकर्तनम् चमड़े का काम करना, ---चर्वणम् (शा०) चबाये हुए को चबाना, (आलं.) .... अवतिन,-अयकर्त (पुं) मोची,---कारः, -... कारिन पुनरुक्ति, निरर्थक आवृति, --पात्रम् पीकदान ।। (पं०) मोची, चमड़ा कमाने या रंगने वाला,-कीलः,
चल (भ्वा० पर०-चलति, (विरल प्रयोग-चलते) —कीलम् मस्सा, अधिमांस,—चित्रकम् सफ़ेद कोढ़,
चलित) 1. हिलाना, कांपना, धड़कना, थरथराना, .-जम् 1. बाल 2. रुधिर, तरङ्गः झुर्रा, दण्डः, स्पंदित होना,-छिन्नाश्चेलुः क्षणं भुजा:-भट्टि -नालिका हण्टर,-मः,-वृक्षः भूर्ज नाम का पेड़,
१४।४०, सपक्षोतिरिवाचालीत्-१५।२४, ६१८४ -पट्टिका चमड़े का चौरस टुकड़ा जिस पर पासे डाल
2. (क) जाना, चलते रहना, सैर करना, स्पंदित होना, कर खेला जाय, -पत्रा चमगादड़, छोटा घरों में पाया
हिलना-जुलना (एक स्थान से) ---पदात्पदमपि चलितुं जाने वाला चमगादड़,-पादुका चमड़े का जूता,--प्रभे
न शक्नोति ---पंच० ४, चलत्येकेन पादेन तिष्ठत्येकेन दिका मोची की रांपी,--प्रसेवकः, -प्रसेविका धौंकनी,
बुद्धिमान् .. चाण० ३२, चचाल बाला स्तनभिन्नवल्कला -बन्धः चमड़े का फ़ोता,---मुण्डा दुर्गा का विशेषण,
-कु० ५।८४, मृच्छ० ११५६ । (ख) (अपने मार्ग -यष्टिः (स्त्री०) हंटर, --वसनः 'चर्मावृत्त' शिव,
पर) आगे बढ़ना, बिदा होना, कूच करना, चल देना वाद्यम् ढोल, तबला,--संभवा बड़ी इलायची,-सारः -चेलश्चीरपरिग्रहा:-कु०६९३ 3. ग्रस्त होना, सबाघ लसिका, रक्तोदक।
होना, घबड़ाया हुआ या अव्यवस्थितचित्त होना, क्षुब्ध चर्ममय (वि.) [चर्मन+मयट] चमड़े का, चमड़े का बना
होना, व्याकुल होना -- मुनेरपि यतस्तस्य दर्शनाच्चलते हआ।
मन:-पंच० ११४०, लोभेन बुद्धिश्चलति-हि० १११४० चर्मरू,-चारः [चर्मन्-- राकु, चर्मन+ +-अण्]
4. विचलित होना या भटकना (अपा० के साथ) मोची, चमार, चमड़ा रंगने वाला।
-चलति नयान्न जिगीषतां हि चेत:-कि०१०।२९,अलग चर्मिक (वि०) [चर्मन् +ठन ढाल से सुसज्जित । होना, छोड़ देना-मनु० ७।१५, याज्ञ० ११३६०, चमिन् (वि०) (स्त्री . ---णी) [चर्मन् + इनि, टिलोपः] (प्रेर०)- च (चा) लयति, च (चा) लित
1. ढाल से सुसज्जित 2. चमड़े का, (पुं०) 1. ढाल- 1. हिलाना-जुलाना डुलाना, हरकत देना 2. दूर करना धारी सैनिक 2. केला 3. भूर्ज वृक्ष।
हटाना, निकाल देना 3. दूर ले जाना 4. आनन्द लेना चर्या चर्यत्+टाप् 1. इधर-उधर जाना, हिलना- पालना-पोसना (केवल....चालयति), उद्-~1. चल
जुलना, इधर-उधर सैर करना 2. मार्ग, जाल (जैसा देना, प्रस्थान करना,--स्थितः स्थितामुच्चलितः कि 'राहुचर्या' में) 3. व्यवहार, चालचलन, आचरण- प्रयाताम्- रघु० २६, उच्चचाल बलभित्सखो वशी
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