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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ५१५ -- ( कभी-कभी बदलकर केवल 'पि' रह जाता है) 1. ! बांधना, कमर कसना, बंधन में डालना - अतिपिनद्धेन वल्कलेन - श० १, मंदारमाला हरिणा पिनद्धा श० ७२ 2 पहनना, कपड़े धारण करना - भट्टि० ३।४७ 3. ढकना, (लिफाफे में ) बंद करना - श० १११९, उद् बांधना, जकड़ना, गूंथना- रघु० १७/३०, १८/५०, परिघेरना, अन्तर्जटित करना, परिवृत्त करना - सजगति परिणद्धः शक्तिभिः शक्तिनाथः -- मा० ५/१, रघु० ६६४, मालवि० ५ १०, ऋतु० ६।२५, सम् - 1. कसना, बांधना, जकड़ना 2. वस्त्र पहनना, धारण करना, शस्त्रास्त्र से सुसज्जित होना, संवारना, लिबास पहनना - समनात्सीत्ततः सैन्यम् भट्टि० १५०१११२, १४७, १७१४ 4. ( किसी कार्य के लिए) अपने आपको तैयार करना, (आ० इस अर्थ में) युद्धाय संह्यते महा०, छेत्तुं वज्रमणी शिरीषकुसुमप्रांतेन संनह्यते भर्तृ० २२६, दे० 'संनद्ध' भी । नहि ( अव्य० ) निश्चय ही नहीं, निश्चित रूप से नहीं, किसी भी अवस्था में नहीं, बिल्कुल नहीं- आशंसा न हि नः प्रेते जीवेम दशमूर्धनि भट्टि० १९/५ । नहुषः [ नह + उषच् ] एक चन्द्रवंशी राजा ययाति का पिता, पुरुरवा का पोता और आयुस् का पुत्र, यह बहुत बुद्धिमान्, और बलवान राजा था। जब इन्द्र ने वृत्र को मार दिया, और उस ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त करने के लिए वह एक सरोवर में जा छिपा, तो उस समय नहुष राजा को इन्द्र के आसन पर बिठाया गया । वहाँ रहते हुए नहुष इंद्राणी के प्रेम को जीतने के विचार से सप्तर्षियों को पालकी में जोत कर उसके भवन की ओर चला। मार्ग में उसने सप्तर्षियों को 'सर्प' 'सर्प' (तेज़ चलो, तेज़ चलो) कह कर फुर्ती से चलने के लिए कहा । उस समय अगस्त्य मुनि ने नहुष को साँप बन जाने का शाप दिया । वह आकाश से इस पृथ्वी पर गिरा और तब तक इसी दुरवस्था में पड़ा रहा जब तक कि युधिष्ठिर ने आकर उद्धार न किया हो ) । ना [ नह+डा ] नहीं, न (न) । नाकः [ न कम् अकम् दुःखम्, तत् नास्ति अत्र इति नि० प्रकृतिभावः ] 1. स्वर्ग आनाकरथवर्त्मनाम् रत्रु० १५, १५/९६ 2. आकाश मंडल, ऊर्ध्वतर गगन, अन्तरिक्ष । सम० चरः 1. देव 2. उपदेवनाथः, -नायकः इन्द्र का विशेषण, वनिता अप्सरा सद् (पुं०) देव, भट्टि० १।४ । नाकिन (पुं० ) [ नाक + इनि ] देवता, सुर- शि० ११४५ । नाकुः [ नम् + उ नाक् आदेशः ] 1. वल्मीक 2. पहाड़ । माक्षेत्र (वि०) (स्त्री० त्री ) [ नक्षत्र + अण् ] तारा ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्बन्धी, नक्षत्रविषयक, -त्रम् २७ नक्षत्रों में से चन्द्रमा की गति के आधार पर गिना गया महीना, ६० घड़ी वाले तीस दिनों का एक मास- नाडीषष्ट्या तु नाक्षत्रमहोरात्रं प्रकीर्तितम् सूर्य० । नाक्षत्रिकः [ नक्षत्र + ठञ ] २७ दिनों का महीना (जिसमें प्रत्येक दिन चन्द्रमा की नक्षत्रान्तर्गति पर आधारित है ) । नागः [ नाम + अण् ] 1. सांप, विशेष कर काला साँप 2. एक काल्पनिक नागदैत्य जिसका मुख मनुष्य जैसा और पूंछ साँप जैसी होती है तथा जो पाताल में रहता है - भग० १०।२९, रघु० १५।८३ 3. हाथी - मेघ० ११, ३६, शि० ४।६३ विक्रम० ४।२५ 4. मगरमच्छ 5. क्रूर, अत्याचारी व्यक्ति 6. ( समास के अन्त में), गण्यमान्य और पूज्य व्यक्ति उदा० पुरुषनाग 7. बादल 8. खूंटी ( दीवार में गड़ी हुई). 9. नागकेसर, नागरमोथा 10. शरीरस्थ पाँच प्राणों में वह वायु जो डकार के द्वारा बाहर निकलती है 11. सात की संख्या-गम् 1. रांग 2. सीसा । सम० --अंगना 1. हथिनी 2. हाथी की सूंड - अंजना हथिनी, - अधिपः शेष का विशेषण, अंतकः, अरातिः, -अरि: 1. गरुड का विशेषण 2. मोर 3. सिंह, - अशनः 1. मोर- पंच० १।१५९२. गरुड का विशेपण, आननः गणेश का विशेषण, आह्नः हस्तिनापुर, इन्द्र: 1. भव्य या श्रेष्ठ हाथी - कु० १।३६ २. इन्द्र का हाथी ऐरावत 3. शेष का विशेषण, - ईश: 1. शेष की उपाधि 2. परिभाषेन्दुशेखर तथा कई अन्य पुस्तकों का प्रणेता 3 पतंजलि, उदरम् 1. लोहे का तवा (जो सैनिक छाती के बांधते हैं), वक्षस्त्राण 2. गर्भावस्था का एक रोग विशेष, गर्भोपद्रवभेद, केसरः सुगंधित फूलों का एक वृक्ष, गर्भम् सिन्दूर, चूडः शिव की उपाधि, जम् 1. सिदूर 2. रांग, जिह्निका मैनसिल, -- जीवनम् रांगा - दंतः, दंतक: 1. हाथी दांत 2. दीवार में लगी खूंटी या दीवारगीरी, दंती 1. एक प्रकार का सूरजमुखी फूल 2. वेश्या, नक्षक्षम्, -नायकम् आश्लेषा नक्षत्र, (कः ) सांपों का स्वामी, नासा हाथी की सूंड, निर्यूहः दीवार में लगी खूंटी या दीवारगीरी, पंचमी श्रावणशुक्ला पंचमी को मनाया जाने वाला उत्सव, पदः एक प्रकार का रतिबंध, - पाश: 1. युद्ध में शत्रुओं को फंसाने के लिए प्रयुक्त एक प्रकार का जादू का जाल 2. वरुण का शस्त्र या जाल, पुष्पः 1. चम्पक का पौधा 2. पुन्नाग वृक्ष, -- बंधक: हाथी पकड़ने वाला, बंधुः गूलर का पेड़, पीपल का पेड़ -- बल: भीम की उपाधि-- भूषणः शिव की उपाधि - मंडलिक: 1. सपेरा 2. सांप पकड़ने वाला, - मल्लः ऐरावत का विशेषण, - यष्टिः (स्त्री०) For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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