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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवन् (सं० वि०)[नु-+कनिन् बॉ० गुणः] (नित्यबहु०) । 1. अन्तर्धान करना 2. नष्ट करना, हटा देना, मिटा नौ-नवति नवाधिका----रघु० ३।६९, दे० नीचे देना, भगा देना, उड़ा देना, प्र-, (प्रणश्यति) दिए गये समस्त शब्द (आरंभ में प्रयक्त होनेपर 'नवन्' वि-, ध्वस्त होना, मरना-भट्टि० ३।१४, भग० के 'न्' का लोप हो जाता है)। सम०-अशीतिः ८।२०। (स्त्री०) नवासी,—अचिस् (पुं०), दीधितिः मंगल- नश् (स्त्री०) नश:, नशनम् [नश् ।-क्विप, क, ल्युट् ग्रह, कृरवस् (अव्य०) नौ गुणा,-ग्रहाः (पुं०,ब०व०) वा ] नाश, ध्वंस हानि, अन्तर्धान। नौ ग्रह, दे० 'ग्रह' के अन्तर्गत, चत्वारिंश (वि०) - नश्वर (वि०) (स्त्री०-री) [ नश्+क्वख ] 1. नष्ट उनचासवाँ,... चत्वारिंशत् (स्त्री०) उनचास, होने वाला, क्षणस्थायी, क्षणभंगर, अनित्य, अस्थायी -छिद्रम्,-द्वारम् शरीर (नौ दरवाजो वाला, दे० -निखिलं जगदेव नश्वरम्--रस० 2. विनाशकारी, 'ख'),-त्रिंश (वि०) उतालीसवां,-त्रिंशत् (स्त्रिी०) उत्पातकारी। उतालीस-वश (वि०) उन्नीसवाँ, -दशन् (ब०व०) नष्ट (भ० क० कृ०) [नश+क्त ] 1. खोया हुआ, उन्नीस,---नवतिः (स्त्री०) निन्यानवे,....निधिः (पुं०, .. अनहित, लुप्त, अदृश्य 2. मृत, ध्वस्त, उच्छिन्न 3. ब०व०) कुबेर के नौ खजाने-अर्थात्-- महापद्मश्च भ्रष्ट, क्षीण 4. भागा हुआ 5. वंचित, मुक्त (समास पद्मश्च शंखो मकरकच्छपौ, मकूदकूदनीलश्च खर्वश्च निध में) । सम० -अर्थ (वि०) निर्धनीकृत (जिसका धन योनव,--पंचाश (वि.) उनसठवा-पंचाशत् (स्त्री०) नष्ट हो गया हो),--आतंकम् (अव्य०) निश्चितता उनसठ,रत्नम् 1. नौ अमूल्य रत्न-अर्थात्-मुक्ता के साथ, निर्भय होकर-नष्टातंक हरिणशिशवो मंदमाणिक्यवैदूर्यगोमेदान् वनविद्रमौ, पद्मरागं मरकत मंदं चरन्ति-श० ११३, अने० पा०,-आत्मन् नीलं चेति यथाक्रमम् 2. राजा विक्रमादित्य के (वि.) ज्ञान से वंचित, बेहोश,--आप्तिसूत्रम् लूट दरबार के नौ कवि, कविरत्न-धन्वंतरिक्षपणकामर का माल, लूट-खसोट, ----आशंक (वि०) निडर, सुरसिहशंकु बेतालभट्ट घटकपरकालिदासाः ख्यातो वराह- क्षित, भयरहित, इंदुकला पूर्णिमा का दिन,-इंन्द्रिय मिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नव (वि०) इन्द्रियरहित, चेतन, चेष्ट,---संज्ञ (वि०) विक्रमस्य, रसाः (पु०, ब०व०) काव्य के नौ रस, जिसकी चेतना जाती रही है, अचेतन, बेहोश, मछित, दे० 'अष्ट रस' और 'रस',-रात्रम् 1. नौ दिन का —चेष्टता विश्वविनाश । समय 2. आश्विन मास के प्रथम नौ दिन जो दुर्गा नस् (स्त्री०) [ नस् ---क्विप् (दूसरी विभक्ति के द्वि० पूजा के दिन मान जाते है,-- विश (वि०) उतीसवाँ, व० के पश्चात 'नासिका' के स्थान में होने वाला ---विशतिः (स्त्री०) उतीस, -विध (वि.) नौ तरह आदेश) नाक, नासिका । सम०-क्षुद्र (वि०) छोटी का, नौ प्रकार का,—-शतम् 1. एक सौ नौ 2. नौ नाक वाला। सो, --पष्टि: (स्त्री०) उनहत्तर,--सप्ततिः उनासी। नस्तस् (अव्य०) [नस् तसिल ] नाक से....-याज... नवधा (अव्य०) [ नवधा ] नौ प्रकार से, नौगणा।। ३।१२७। नवम (वि०) (स्त्री०-मी) [ नवन+डट, डट्स्थाने नसा [ नस्+टाप् ] नाक, नासिका। मट ] नवां-मी चान्द्रमास के पक्ष का नवाँ दिन । नस्तः[ नस+क्त ] नाक,---स्तम् नस्य, सँघनी---स्ता नवशः (अब्ब०) [ नवन+शस ] नौ नौ करके । . नाक के नथुने में किया गया छिद्र । सम०-ऊतः नवीन, नव्य (वि.) [ नव+ख, यत् वा ] 1. नया, नकेल द्वारा चलाया गया बल । ताजा, हाल का 2. आधुनिक । नस्तित (वि०) [ नस्त+इतच ] नाथा हुआ (नाक में नश (दिवा० पर०--नश्यति, नष्ट, प्रेर०–नाशयति रस्सी डालकर)। -इच्छा० निर्मक्षति, निनशिषति) 1. खोया जाना, | नस्य (वि.) [ नासिक-यत् नसादेशः ] अनुनासिक, अन्तर्धान होना, लुप्त होना, अदृश्य होना -ध्रुवाणि --स्यम् 1. नाक का बाल 2. सुंघनी,-स्या 1. नाक तस्य नश्यंति --हि० १, तथा सीमा न नश्यति--मनु० 2. पशु के नाक में से निकली हई रस्सी, नकेल ८।२४७, याज्ञ० २१५८, -क्षणनष्टदृष्टतिमिरम् -शि०१२।१०। मृच्छ १ ५।४ 2. नष्ट होना, ध्वस्त होना, मरना, नह (दिवा० उभ०--नाति--ते, नद्ध, इच्छा० निनत्सति बर्बाद होना-जीवनाशं ननाश च--भट्टि० १४।३१, -ते) बांधना, बंधनयुक्त करना, ऊपर से चारो मनु०८।१६ ७१४०, मुद्रा० ७८ 3. भाग जाना, उड़ ओर से या एक जगह बांधना, कमर कराना-शैलेयजाना, बच निकलना नश्यति वन्दानि ददर्श कपीद्रः नद्धानि शिलातला नि . कु. १५६, रघु० ४।५७, --भट्टि० १०॥१२, नंशुश्चित्राः निशाचरा:-१४१११२, १६।४१ 2. पहनना, वस्त्र धारण करना, सुसज्जित रत्न० २१३ 4. भग्नाश होना, असफल होना--प्रेर० करना (आ०), प्रेर०-पहनना, अप-खोलना अपि For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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