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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वा अधिन ने अक्षरम अपना निजी हस्तलेख, अधिकारः अपना निजी कर्तव्य या राज्य स्वाधिकारात्प्रमत्तः मेघ० 1, स्वाधिकारभूमौ.- श० 7, अधिष्ठानम् हठयोग में माने हए छ चक्रो में से एक, अधीन (वि.) 1. अपने पर आश्रित, आत्मनिर्भर 2. स्वतंत्र 3. अपने वश में 4. अपनी निजी शक्ति में स्वाधीना वचनीय- / तापि हि वरं बद्धो न सेवाञ्जलिः मृच्छ० 3 / 11 कुशल (वि.) अपनी निजी शक्ति के आधार पर समृद्धिशाली स्वाधीनकुशलाः सिसिमन्तः --श. 4, पतिका, भर्तका वह पत्नी जिसका अपने पति पर पूरा नियन्त्रण हो, वह स्त्री: जिसका पति पत्नी के बस में हो-अथ सा निर्गता : बाधा राधा स्वाधीनभर्तका निजगाद रतिक्लान्तं कान्तं मण्डनवाञ्छया-गीत०१२, दे० सा० द०११२, तथा आगे,-अध्यायः 1. मन में पाठ करना, मन मन में इसके जप करना 2. वेदों का पढ़ना, वैदिक पाठ, अनुभूतिः (स्त्री०) आत्म अनुभव 2. आत्मज्ञान स्वानुभूत्येकसाराय नमः शांताय तेजसे-भर्त० 2 / 1, अन्तम् 1. मन,-भामि० 415, महावीर 717 2. कन्दरा, -अर्थः अपना निजी हित, स्वार्थ सर्वः स्वार्थ समीहते -शि० श६५ 2. अपना अर्थ भामि० 1279 (यहाँ दोनों अर्थ--अभिप्रेत हैं) अनुमानम् निजी अटकल, आगमनात्मक तर्क, अनुमानके दो मुख्य भेदों में से एक, (दूसरा है 'परार्थानुमान) पण्डित (वि.) 1. अपने निजी कार्यों में चतुर 2. अपना हितसाधन करने में विशेषज्ञ, पर, परायण (वि०) अपनी स्वार्थ सिद्धि करने पर तुला हुआ, स्वार्थी, विघात: अपने उद्देश्य की भग्नाशा, °सिद्धिः (स्त्री०) अपना निजी लक्ष्य पूरा करना, आयत्त (वि.) अपने अधीन, अपने पर आश्रित भर्तृ० 217 -इच्छा अपनी अभिलाषा, अपनी रुचि, मृत्युः भीष्म का विशेषण,-उदयः, किसी विशेष स्थान पर किसी स्वर्गीय पिड या दिव्य चिह्न का उदय होना, .. उपषिः अचल ग्रह, कम्पनः वापु, ह्वा, --कमिन् (वि.) स्वार्थी, कार्यम् अपना निजी कार्य या स्वार्थ,-गतम् (अव्य०) मन में अपने आपको, एक ओर (नाटयभाषा में), छन्द (वि.) 1. अपनी इच्छा रखने वाला, अनियंत्रित, स्वेच्छाचारी 2. जंगली, (...:) अपनी निजी इच्छा, छांट कल्पना या मर्जी, स्वतंत्रता, ( दम्) (अव्य०)। अपनी इच्छा या मर्जी के अनसार, स्वेच्छाचारिता के / साथ, स्वेच्छा से स्वच्छन्दं दलदरविन्द ते मरन्दं विन्दन्तो विदधतु गुजितं मिलिन्दा:-भामि० 15. ज (वि.) आरमजात, (--जः) 1. पुत्र, बाल 2. स्वेद, पसीना, (-अम्) रुधिर, -जन: 1. बंधु, रिश्तेदार-इतः प्रत्या- / देशात् स्वजनमनगन्तु व्यवसिता ... श० 618, पंच० 115 2. अपने निजी पुरुष, बंधुबांधव, अपनी गृहस्थी, तन्त्र (वि.) आत्माश्रित, अनियंत्रित, आत्मनिर्भर, स्वेच्छायुक्त, (त्रः) अन्धा पुरुष,---देश: अपना देश, जन्मभूमि, जः बन्धु अपने देश का आदमी, धर्मः 1. अपना धर्म 2. अपना निजी कर्तव्य, मन० 1188 -91 3. विशेषता, अपनी निजी संपनि, पक्षः अपना निजी दल, परमण्डलम् अपना और शत्रु का देश, प्रकाश (वि०) 1. स्वतः स्पष्ट 2. स्वतः चमकदार, --प्रयोगात् (अव्य०) अपने प्रयत्नों के द्वारा, ---भट्टः 1. अपना निजी योद्धा 2. शरीर रक्षक, --भावः 1. अपनी स्थिति 2. अन्तहित या मलगण, प्राकृतिक संविधान, अन्तर्जात या विशिष्ट स्वभाव, प्रकृति या स्वाव, जैसा कि 'स्वभावो दुरतिक्रमः' में, इसी प्रकार कुटिल', शुद्ध, मृदु- चपल" कठोर आदि, उक्तिः (स्त्री०) 1. स्वत: स्फूर्त प्रकटन 2. (अलं० में) एक अलंकार जिसमें किसी वस्तु का यथावत् या बिल्कुल मिलता-जुलता वर्णन होता है स्वभावोक्तिस्तु डिम्भादेः स्वक्रियारूपवर्णनम् ..काव्य० 10, या, नानावस्थ पदार्थानां रूपं साक्षाद्विवण्वती-काव्या० 218 एक सिद्धान्त (यह विश्व, मूलतत्त्वों की अपने अन्तर्जात गणों के अनुसार, प्राकृतिक तथा आवश्यक क्रिया का परिणाम है और उसी के द्वारा इसकी स्थिति है, इसमें परमात्मा की कोई निमित्तकारणता नहीं), सिद्धः (वि.) प्राकृतिक, स्वतःस्फूर्तः अन्तर्जात,-भः 1. ब्रह्मा का विशेषण 2. शिव का विशेषण 3. विष्ण का विशेषण, योनि (वि०) मातृपक्ष का संबंधी (पुं०, स्त्री०) उत्पत्तिस्थान, जो स्वयं अपना उत्पत्तिस्थान हो, (स्त्री०) कोई बहन या निकटसंबंध वाली कोई स्त्री, रस: 1. प्राकृतिक स्वाद 2. किसी का अपना (अमिश्रित) रस या काव्यगत रस, आत्मानंद,--राज (पुं०) परमात्मा, रूप (वि०) 1. समान, समरूप 2. सुन्दर, सुहावना, प्रिय 3. विद्वान, समझदार, (-पम्) 1. अपनी शक्ल या सूरत, प्राकृतिक स्थिति यो दशा 2. स्वाभाविक चरित्र या रूप, यथार्थ विधान 3. प्रकृति 4. विशिष्ट उद्देश्य 5. प्रकार, किस्म, जाति, °असिद्धिः (स्त्री०) तीन प्रकार के हेत्वाभासों में से एक, वश (वि.) 1. स्वनियंत्रित 2. स्वतन्त्र, . वासिनी विवाहित या अविवाहित स्त्री जो वयस्क होने पर भी अपने पिता के घर ही रहती रहे, -वृत्ति (वि.) स्वावलम्बी, अपने प्रयत्नों से ही जीवनयापन करने वाला, - संवत्त आत्मरक्षित, स्वरक्षित, संस्था अपने विचारों पर डटे रहना 2. आत्मस्थिरता 3. आत्मलीनता,-स्य (वि०) 1. अपने पर डटे रहना 2. स्वाश्रित, स्वावलम्बी, विश्वस्त, दृढ़, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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