________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1155 ) त्रस्तरः [ संस्+तरच, कित्वानलोप: ] पलंग या सोफ़ा, / खुतिः (स्त्री०) [स+क्तिन् ] 1. बहना, रिसना, अर्क (विश्राम करने के लिए) विछौना शिलातले त्रस्त- निकालना, टपकना, चना----कीटक्षतिगृतिभिरस्रमिरभास्तीयं निषसाद--का०, मनु० 2 / 204 / वोद्वमन्तः -मुद्रा० 6.13, पदं तुषारनुतिधौतरक्तम् साक् (अव्य०) [+डाक्] फुर्ती से, तेजी से। -कु. 15, रघु० 16 / 44, कि० 5 / 44, 16 // 2, सावः सि+घञ ] प्रवाह, बहाव, रिसना, बूंद बूंद | क्षीरस्रुतिसुरभयः (वाताः)-मेघ० 107 'रसप्रवहण टपकना / या स्राव 2. रसस्रवण, राल 3. धारा। स्रावक (वि.) (स्त्री०-विका) [+ण्वुल ] बहाने | नुवः,-वा [+क, स्त्रियां टाप् च ] 1. यज्ञ का चमचा वाला, उडेलने वाला, रिस कर बहने वाला,-कम् | 2. निर्झर, झरना या प्रपातिका / काली मिर्च / लेक (म्वा० आ०) जाना, गतिशील होना। त्रिभ् (भ्वा० पर० स्रेभति) चोट पहुँचाना, मार | स्त्र (भ्वा० पर० स्रायति) 1. उबालना 2. पसीना आना डालना। खिम्भ (म्वा० पर० सिम्भति) चोट पहुँचाना, मार | स्रोतम् [+तन् ] धारा, सरिता। दे० स्रोतस् / डालना। स्रोतस् (नपुं०) [ नु+तसि ] 1. (क) सरिता, धारा स्त्रिव् (दिवा० पर० स्त्रीव्यति, नुत) 1. जाना, 2. सूख प्रवाह, जलप्रवाह-पुरा यत्र स्रोत: पुलिनमधुना तत्र जाना। सरिताम्-उत्तर० 2 / 27, मनु० 3163 (ख) धार, स्नु (भ्वा० पर० स्रवति, सुत) 1. बहना, धारा निकलना, प्रवाहिणी,-नदत्याकाशगङ्गायाः स्रोतस्यद्दामदिग्गजे चना, रिसना, बंद बंद करके गिरना, टपकना न रघु० 1178, स्रोतसेवोह्यमानस्य प्रतीपतरणं हि हि निम्बात्स्रवेत्क्षौद्रम् राम० 2. उडेलना, डालना, तत्-विक्रम 2 / 5 2. सरिता, नदी, स्रोतसामस्मि बहने देना अलोठिष्ट च भूपृष्ठे शोणितं चाप्यसुस्रवत् जाह्नवी-भग० 10 // 31 3. लहर 4. जल 5. शरीरस्थ ---भट्टि० 15176, 17118 3. जाना, हिलना-डुलना पोषण नलिका 6. ज्ञानेन्द्रिय निगृह्य सर्वस्रोतांसि 4. चूना, खिसक जाना, छीजना, नष्ट होना, कुछ ... राम० 7. हाथी की संड। सम०--अम्जनम् फल न निकलना-स्रवतो ब्रह्म तस्यापि भिन्नभाण्डात्पयो (स्रोतोञ्जनम् ) सुरमा,-ईशः सागर,-रन्ध्रम हाथी. यथा भाग०, भट्टि० 6 / 18, मनु० 2074 5. इधर की सुंड का छिद्र, नथुना-स्रोतोरन्ध्रध्वनितसुभगं उधर फैलाना, सब दिशाओं में पहुँचाना, प्रकट हो दन्तिभिः पीयमानः-मेघ० 42, (दे० इस पर मल्लि.) जाना (भेद आदि)-प्रेर० (स्रावयति-ते) बहाना, ('श्रोतोरन्ध्र' भी पाठांतर), बहा नदी-स्रोतोवहां उडेलना, डालना, बखेरना (रक्त आदि) न गात्रा- पथि निकामजलामतीत्य जातः सखे प्रणयवान् मृगसावयेदमक- मनु० 4 / 169 (उपसर्गों से युक्त तृप्णिकायाम्-श०६।१५, कार्या सैकतलीनहसमिथुना हो जाने पर धातु के लगभग वही अर्थ स्रोतोवहा मालिनी-६।१६, रघु० 652 / रहते है)। स्रोतस्यः [स्रोतस्+यत् ] 1. शिव का नाम 2. चोर / नुघ्नः (प.) एक जनपद या जिले का नाम .. पन्थाः / स्रोतस्वती, स्रोतस्विनी [स्रोतस-+ मतु+(विनि) घुघ्नमुपतिष्ठते--सिद्धा०, (यह स्थान पाटलिपुत्र से +डीए, वत्वम् ] नदी। कुछ दूरी पर कम से कम एक दिन यात्रा पर स्थित | स्व (सार्व. वि.) [स्वन्+ड] 1. अपना, निजी, था) तु० न हि देवदत्तः सुध्ने संनिधीयमानस्तदहरेव (आत्मपरक सर्वनाम के रूप में प्रयुक्त)-स्वनियोगमपाटलिपुत्रे संनिधीयते युगपदनेकत्र वृत्तावनेकत्वप्रसङ्गात शून्यं कुरु----० 2, प्रजाः प्रजाः स्वा इव तन्त्रयित्वा --शारी०। 5 / 5, (इस अर्थ में प्रायः समास में प्रयुक्त-स्वपुत्र, खुघ्नो [नुघ्न+अ+कीप् ] सज्जी, रेह। स्वकलत्र, स्वद्रव्य) 2. अन्तर्जात, प्राकृतिक, अन्तहित, खुच् (स्त्री०) [+क्विप्, चिट् आगमः ] लकड़ी का | विशेप, अन्तर्जन्मा- सूर्यापाये न खल कमलं पुष्यति बना एक प्रकार का चमचा जिसके द्वारा यज्ञाग्नि में स्वामभिख्याम्-मेघ० 80, श० 1618, स तस्य घी की आहुति दी जाती हैं, सूवा (प्राय: हाक या स्वो भावः प्रकृतिनियतत्वादकृतकः--उत्तर० 6 / 14 खदिर के वृक्षों का बना हुआ)-रघु० 11025, मनु० / 3. अपनी जाति से संबंध रखने वालः, अपनी जाति 5 / 117, याज्ञ. 13183 / सम० . प्रणालिका, का-शूदैव भार्या शूद्रस्य सा च स्वा च विशः स्मृतेः चमचे की पनाली। -मनु० 3 / 13, ५।१०४,-स्व: 1. रिश्तेदार, बांधव जुत् (वि.) [स्रु+क्विप्, तुक् ] (प्रायः समास के अन्त --पंच० 2 / 96, मनु० 21109 2. आत्मा,-स्वः, में प्रयुक्त) बहने वाला, गिरने वाला, उडलने वाला --स्वम् दौलत, सम्पत्ति-जैसा कि 'निःस्व' में / -स्वरेण तस्याममतनुतेव-कू० 114,5, शि० 9168 / सम०-. अक्षपावः न्यायदर्शन पद्धति का अनुयायी, For Private and Personal Use Only