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( ४२४ ) (पक्ष) के विपरीत हो 6. कामना, इच्छा 7. कारण,। -शुद्धे तु दर्पणतले सुलभावकाशा-श० ७३२, प्रयोजन। सम०--विद्या न्यायशास्त्र ।
नभस्तलम् 2. हाथ की हथेली--रघु० ६।१८ 3. पेर तर्ककः [तक +ण्वुल ] 1. वादी, पूछताछ करने वाला, प्रार्थी का तला 4. बाहू 5. थप्पड़ 6. नीचपन, पद का घटि2. तर्कशास्त्री।
यापन 7. निम्न भाग, नीचे का भाग, आधार, पैर, तर्कुः (i० स्त्री०) [ कृत् +उ नि.] तकवा, लोहे की पेंदी-रेवारोघसि वेतसीतरुतले चेतः समुत्कण्ठते
तकलो जिस पर सूत लिपटता जाता है-तर्कुः कर्तन- -काव्य० १ 8. (अतः) वृक्ष या किसी दूसरी वस्तु साधनम्। सम०-पिण्डः --पीठीः चीचली (तकुवे. की नीचे की भूमि, किसी भी वस्तु से प्राप्त शरण के किनारे पर लिपटा हुआ सूत का गोला।
-फणी मयूरस्य तले निषीदति-ऋतु० १११३ 9. छिद्र, तर्भुः [=तरक्षुः पृषो०] लकड़बग्घा, बिज्जू ।
गढ़ा,-ल: 1. तलवार की मठ 2. तालवृक्ष,-लम् तयः [तक्ष+ज्यत्] यवक्षार, जवाखार; शोरा।
1. तालाब 2. जङ्गल, वन 3. कारण, मूल, प्रयोजन तर्ज (भ्वा० पर०, चुरा० आ० प्रायः पर० भी)-तर्जति, 4. बायीं बाहु पर पहना जाने वाला चमड़े का फीता
तर्जयति-ते, तर्जित) 1. धमकाना, धुड़कना, उसना (इसी अर्थ में तला' भी) । सम०-अवगुलिः (स्त्री०) --सखीमगुल्या तर्जयति-श०१, अहितानलिनोदत- पर की उंगली,-अतलम् सात अधोलोकों में चौथा, स्तर्जयन्निव केतुभिः- रघु० ४।२८, १११७८, १२।४१, -ईक्षणः सूअर,—उदा नदी,-घातः थप्पड़, ताल: भट्टि० १४१८० 2. झिड़कना, बुरा-भला कहना, निन्दा एक प्रकार का वाद्ययन्त्र,-त्रम्,-त्राणम्,-वाणरम् करना, कलंक लगाना-भट्टि ६॥३, ८१०१, धनुंधर का चमड़े का दस्ताना,-प्रहारः थप्पड़,-सारकम् १७.१०३ 3. खिल्ली उड़ाना, अपहास करना।
अधोबन्धन, तङ्ग। तर्जनम्,-ना [त+ल्युट्] 1. धमकाना, डराना 2. निन्दा तलकम् तिल+कन् बड़ा तालाब । करना-रघु० १९।१७, कु० ६।४५ ।
सलतः (अव्य.) [तल+तसिल] पेंदी से। तर्जनी [तर्जन+ङीप्] अंगूठे के पास वाली अंगुली। सलाची तल +अ+क्विप्+डीप चटाई। तर्णः, तर्णकः [ तृण् + अच्, तर्ण+कन् ] बछड़ा-शि० |
तलिका तल+ठन तंग, अधोबन्धन । १२।४१।
सलितम् [तल्+क्त] तला हुआ माँस ।। तणिः [त+नि] 1. बेड़ा 2. सूर्य ।
तलिन (वि०) [तल+इनन्] 1. पतला, दुर्बल, कृश 2. थोड़ा तद् (भ्वा० पर० तर्दति) 1. क्षति पहुँचाना, चोट पहुँचाना कम 3. स्पष्ट, स्वच्छ 4. निम्न भाग में या निचली
2. मार डालना, काट डालना-भट्टि० १४।१०८, जगह पर स्थित 5. पृथक्,-नम् बिस्तरा, गद्दीदार __ 'तद्' भी दे।
लम्बी चौकी। तर्पणम् [तृप+ल्युट्] 1. प्रसन्न करना, तृप्त करना 2. तृप्ति | तलिमम् तल+इमन्] 1. फ़र्श लगी हुई भूमि, खड्जा
प्रसन्नता 3. (प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले) । 2. बिस्तरा, खटिया, सोफ़ा 3. चंदोवा 4. बड़ी तलवार पाँच यज्ञों में से एक, पितयज्ञ (दिवंगत पूर्वजों के । या चाकू। पितरों के निमित्त जल-तर्पण) 4. समिधा, (यज्ञीय | तलुनः [तल+उनन् हवा। अग्नि के लिए इंधन)। सम०- इच्छु: भीष्म का | तल्कम् [तल+कन्] जङ्गल।। विशेषण ।
तल्पः,-ल्पम् | तल+पक ] 1. गद्देदार लम्बी चौकी, तर्मन (नपुं०) [त+मनिन्] यज्ञीय स्तंभ का शिखर । बिस्तरा, सोफ़ा-सपदि विगतनिद्रस्तल्पमुज्झांचकार तर्षः [तृष् +घञ] 1. प्यास 2. कामना, इच्छा 3. समुद्र ।
-रघु० ५।७५, 'बिस्तरा छोड़ा उठा 2. (आलं.) 4. नाव 5. सूर्य।
पली (जैसा कि 'गुरुतल्पगः' में) 3. गाड़ी में बैठने का तर्षणम् [तृष् + ल्युट् | प्यास, पिपासा ।
स्थान 4. ऊपर की मजिल, बुर्ज, कंगूरा, अटारी। तषित, तवुल (वि०) [तर्ष+ इतच्, तृष् + उलच्] 1. प्यासा | तल्पकः [तल्प+कन (नोकर आदि) जिसका कार्य बिस्तरे 2. अभिलाषी, इच्छुक ।।
बिछाने या तैयार करने का है। तहि (अव्य०) त+हिल] 1. उस समय, तब 2. उस तल्लजः [तत्+लज् + अच्] 1. श्रेष्ठता, सर्वोत्तमता, प्रस
विषय में, यदा-तहि 'जब-तब यदि-तहि 'अगर-तो' नता 2. (समास के अन्त में) श्रेष्ठ (इस अर्थ में यह शब्द कर्थ-तहि तो फिर किस प्रकार।
सदैव पुं० होता है । समास के पूर्व पद का चाहे कोई तलः,-लम् [तल-अच्] 1. सतह ----भुवस्तलमिव व्योम | लिंग हो),--गोतल्लजः श्रेष्ठ गाय, इसी प्रकार 'कुमारी 'कुर्वन् व्योमेव भूतलम्-रघु० ४।२९, (कभी कभी तल्लजः' श्रेष्ठ कन्या। अर्थों में बहुत परिवर्तन न कर, समास के अन्त में तल्लिका तस्मिन् लीयते--तत् |-लो+3+कन्, इत्वम्] प्रयोग)-महीतलम् भूमि की सतह अर्थात् पृथ्वी । ताली, कुंजी।
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