SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२५ ) तल्ली [तत् लसति -तत्+लस् +3+की ] तरुणी, उन्माद-नृत्य या प्रचण्ड नाच-त्र्यम्बकानन्दि वस्ताण्डवं - जवान स्त्री। देवि भूयादभीष्ट्यै च हृष्ट्यै च न:-मा० ५।१३, १११ तष्ट (वि.) [तश्+क्त] 1. चीरा हुआ, काटा हुआ, ! 3. नृत्यकला 4. एक प्रकार का घास । सम-प्रियः तराशा हुआ, खण्ड-खण्ड किया हुआ 2. गढ़ा हुआ, शिव जी। दे० 'तक्ष्। तातः तिनोति विस्तारयति गोत्रादिकम्- तन्+क्त, दीर्घ तष्ट (पुं०) [तक्ष्+तृच ] 1. बढ़ई 2. विश्वकर्मा । 1. पिता,-मृष्यन्तु लवस्य बालिशतां तातपादा:-उत्तर० तस्करः [तद्++अच, सुट, दलोपः ] 1. चोर, लुटेरा ६, हा तातेति कन्दितमाकर्ण्य विषण्ण:-रघु० ९७५ --मा सञ्चर मनःपान्थ तत्रास्ते स्मरतस्करः-भर्तु ० 2. स्नेह दया या प्रेम को प्रकट करने वाला शब्द ११८६, मनु० ४११३५, ८१६७ 2. (समास के अन्त (प्रायः अपने से आयु में छोटों के प्रति, विद्यार्थियों के में), जघन्य, घृणित,-री कामुक स्त्री। प्रति या बच्चों के प्रति प्रयुक्त),-तात चन्द्रापीड-का०, तस्यु (वि.) [स्था+कु, द्वित्वम्] स्थावर, अचर, स्थिर । रक्षसा भक्षितस्तात तव तातो बनान्तरे-महा. ताक्षण्यः, साक्ष्णः [ तक्षन्+ण्य, तक्षन् + अण् ] बढ़ई का 3. सम्मान द्योतक शब्द (जो अपने से बड़े और श्रद्धेय व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त होता है) हेपिता हि बहवो ताच्छोलिकः [तच्छील+ठ ] विशेष प्रवृत्ति, आदत नरेश्वरास्तेन तात धनुषा धनुर्भूतः-रघु० १११४० या रुचि को प्रकट करने वाला प्रत्यय ।। तस्मान्मुच्ये यथा तात संविधान तथार्हसि-११७२। ताटङ्कः [ताड्यते, पुषो० डस्य टः, ताट् अङ्क ब० स०] सम-गु (वि०) पिता के अनुकूल,-(गः) तऊ । कान का आभूषण, बड़ी बाली। तातनः तात+त+3] खंजन पक्षी।। ताटस्थ्यम् [ तटस्थ+व्यञ ] 1. सामीप्य 2. उदासीनता, तातलः [ताप+ला+क पृषो० पस्य तः] 1. एक रोग अनवधानता, पक्षपातशून्यता-दे० 'तटस्थ' । 2. लोहे का डण्डा, या सलाख 3. पकाना, परिपक्व ताडः [तड्+घञ ] 1. प्रहार, ठोकर, चूंसा या थप्पड़ करना 4. गर्मी। 2. कोलाहल 3. पूला, गट्ठर 4. पहाड़। तातिः [ताय+क्तिच ] सन्तान,-तिः (स्त्री०) सातत्य, ताडका [तड्+णि+बुल+टाप् ] एक राक्षसी, सुकेतु उत्तराधिकार-जैसा कि 'अरिष्टताति या शिव की पुत्री, सुन्द की पत्नी और मारीच की माता ताति' में। अगस्त्य की समाधि भंग करने के कारण वह राक्षसी तात्कालिक (वि.) (स्त्री०-की) [तत्काल+ठ ] बना दी गई। जब उसने विश्वामित्र के यज्ञ में विघ्न __ 1. उसी समय में होने वाला 2. अव्यवहित ।। डाला तो राम के द्वारा वह मारी गई। राम पहले तात्पर्यम् [ तत्पर+ध्यञ्] 1. आशय, अर्थ, अभिप्राय तो स्त्री के लिए धनुष तानने के विरुद्ध थे, परन्तु ----अत्रेदं तात्पर्यम-आदि 2. प्रस्तुत योजना का ऋषि ने उनकी शंकाओं को दूर कर दिया था] दे० आशय-काव्य०२ 3. उद्देश्य, अभिप्रेत पदार्थ, किसी रघु० ११।१४-२०। पदार्थ का उल्लेख प्रयोजन इरादा (अधि० के साथ) ताउकेयः [ ताडका ढक] ताडका के पुत्र मारीच राक्षस -इह यथार्थकथने तात्पर्यम्-पा० १३१४३, भाष्य का विशेषण। 4. वक्ता का आशय (वाक्य में विशेष शब्दों के प्रयोताडङ्कः, ताडपत्रम् [तालम् अक्यते लक्ष्यते-अङक -+-घन गार्थ)-वक्तुरिच्छा तु तात्पर्य परिकीर्तितम-भाषा० लस्य इत्वम्, शक० पररूपम् --तालस्य पत्रमिव ८४, तात्पर्यानुपपत्तितः-८२। --प० त० लस्य ड: ] दे० 'ताटङ्क। तात्त्विक (वि.) [तत्त्व+ठक | यथार्थ, वास्तविक, परमाताडनम् [ तड्+णिच् + ल्युट ] मारना-पीटना, हण्टर वश्यक-कि चासीदमृतस्य भेदविगमः साचिस्मिते लगाना, बेत लगाना,-लालने बहवो दोषास्ताडने बहवो तात्त्विक:---भामि० २१८१, तात्त्विकः संबंध:---आदि । गुणाः ---चाण० १२, अवतंसोत्पलताडनानि वा --कु०.| RTRA तदात्मन -कु | तादात्म्यम् । तदात्मन्+ष्यत्र ] प्रकृति की अभिन्नता, ४१८, शृङ्गार० ९,-नी हण्टर। समरूपता, एकता नयनयोस्तादात्म्यमम्भोरुहाम्--- तडिः,-डी (स्त्री० [तड़+णिच-+ इन , ताडि+डीष ] भामि० २।८१, भगवत्यात्मनस्तादात्म्यम्-आदि । 1. एक प्रकार का ताड, 2. एक प्रकार का आभूषण । तादृक्ष (वि०) (स्त्री०-क्षी) तादृश, तादृश (वि.) ताउपमान (वि०)[ तड+णिच् +शान] पीटा जाता (स्त्री०-शी) वैसा, उस जैसा, उसकी भांति-ताद हुआ, प्रहार किया जाता हुआ,-नः (ढोल आदि) रगुणा--मनु० ९४२२, ३२, अमरु०४६, यादृशस्तादृशः वाद्ययन्त्र (जो किसी यष्टिका से बजाया जाय)। -कोई, जो कोई, सामान्य मनुष्य-उपदेशो न दातव्यो ताण्डवः, - वम् तण्ड -अण्1. नाच, नृत्य---मदताण्ड-1 यादशे तादृशे जने - पंच० ११३९० । वोत्सवान्ते-उत्तर० ३।१८ 2. विशेष कर शिव का ] तानः [ तन्+घञ 1 1, धागा, रेशा 2. (संगीत० में) For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy