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( ४९६ )
14. यश, 15. रात 16. हल्दी 17. समानता, ।। आक्रमण करना, मुकाबला करना---भट्टि० १६।६७ 18. कान का अग्रभाग। सम० --अग्रम बाण का । 3. बहना, नदी की भांति प्रवाहित होना . धावत्यचौड़ा फलका,---अकुंरः 1. वर्षा की बँद 2. ओला भसि तैलवत् ---सुश्रु० 4. दौड़ना, उड़ जाना i (भ्वा० 3. (शत्रु का मुकाबला करने के लिए) सेना के आगे २ उभ०-- धावति-ते, धौत, धावित) 1. धोना, साफ बढ़ते जाना, -- अंगः तलवार,--अट: 1. चातक पक्षी करना, मांजना, निर्मल करना, रगड़ना... दधावाद्धि2. घोड़ा 3. बादल 4. मदमाता हाथी, ....अधिरूढ़ स्ततश्चक्षः सुग्रीवस्य विभीषणः, विदांचकार धौताक्षः (वि.) उच्चतम स्वर तक उठाया हुआ अवनिः स रिपंखे ननदं च - भट्रि. १४।५० श० ६।२५, (स्त्री०) हवा, अश्रु (नपुं०) अश्रु प्रवाह---अमरु ... शि० १७४८ 2. उज्ज्वल करना, चमकाना 3. किसी १०...आसारः भारी वर्षा, मूसलाधार वर्षा-- धारा- ।। व्यक्ति से टकराना (आ०) निस, धो डालना--- सारमहती वृष्टिर्बभूव-हि. ३, विक्रम ४११, निर्धात सति हरिचन्दने जलौघे:-शि०३१५१, निधीत--उष्ण (वि.) (गौ के स्तन से निकला हुआ) गरम दाना मलगंडभित्तिः रघु० ५।४३, ७० । (दूध), गृहम् स्नानागार जिसमें फौवारा लगा हो,
धावकः धा+ण्वुल ] 1. धोबी, 2. एक कवि (कहा घर जिसमें फौवारे से सुसज्जित स्नानागार हो
जाता है कि इसने श्रीहर्ष राजा के लिए रत्नावली की रघु० १६।४९. रत्त० १।१३, धरः 1. बादल
रचना की थी--श्रीहर्षादेविकादीनामिव यशः ---- 2. तलवार, ---निपातः, --पातः 1. बारिश का होना,
काव्य० १, अने० पा०-प्रथितयशसां धावकसौमिल्लबौछार का टपटप गिरना - मेघ०४८ 2. जल की
कविपुत्रादीनां प्रवन्धाननिक्रम्य -मालवि० १, अने. धारा सरिता,--यन्त्रम् फौवारा, झरना (पानी का)
पा० । अमरु ५९, रत्न०१११२,-वर्षः,-बम-सपातः लगातार । धावनम | धावल्यट] 1. दौड़ना, सरपट भागना घोर मसलाधार वृष्टि - रघु० ४।८२,-वाहिन ।
2. बहना, 3. आक्रमण करना 4. मांजना, पवित्र करना, (वि०) अनवरत, लगातार..-उत्तर० ४१२,--विषः
रगड़ना, बहा देना 5. किसी चीज से रगड़ना। टेढ़ी तलवार।
धावल्यम् [ धवल - प्यन ] 1. सफेदी 2. पांडुरता। धारिणी [धृ-णिनि + डीप्] पृथ्वी !
धि i (तुदा० पर०-- धिपति) संभालना, रखना, अधिधारिन (वि०) (स्त्री०-णी) [भ+-णिनि] 1. ले जाने
कार में करना, सम्-, मुलह करना --तु० संधा. वाला, वहन करने वाला, निबाहने वाला, सुरक्षित
(या धिन्व स्वा० पर० धिनोति) प्रसन्न करना, रखने वाला, रखने वाला, संभालने वाला, सहारा
खुश करना, संतुष्ट करना ....पश्यन्ती चात्मरूपं तदपि देने वाला-..-पादाम्भोरुहधारि-गीत० १२, कर आदि
विललितस्रग्धरेयं विनोति -गीत० १२, घिनोति 2. स्मृति में रखने वाला, धारणात्मक स्मरण शक्ति
नास्मान्जलजेन पूजा त्वयान्वहं तन्वि वितन्यमाना-नै० रखने वाला, अज्ञेभ्यो ग्रन्थिन: श्रेष्ठाः ग्रन्थिभ्यो
८।९७, उत्तर० ५।२७, कि० श२२। । धारिणो बराः मनु० १२।१०३ ।
धिः (समास के अन्त में प्रयुक्त) आधार, भंडार, आदाय धार्तराष्ट्रः [धृतराष्ट्र+अण्] 1. धृतराष्ट्रका पुत्र 2. एक
आदि --उदधि, इषधि, वारिधि, जलधि आदि । प्रकार का हंस जिसके पैर और चोंच काली होती
धिक (अव्य) [ धा+डिकन् । निन्दा, बुराई, विपाद की है-निष्पतन्ति धार्तराष्ट्राः कालवशान्मेदिनीपृष्ठे----
भावना को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक वेणी० ११६, (यहाँ शब्द उपर्य क्त दोनों अर्थों में
अव्यय ...(धिक्कार, फटे मह, शर्म, दुःख, तरस प्रयुक्त है) !
-- कर्म० साथ)---धिक तां च तं च मदन च इमां च धामिक (वि.) (स्त्री०-को) धर्म-ठक] 1. नेक,
मां--च, भर्तृ० २१२, विगिमां देहभृतामसारताम्-रघु० पुण्यात्मा, न्यायशील, सद्गुणसंपन्न 2. सत्याश्रित,
८।५० धिकतान् विकतान् धिगेतान् कथयति सततं न्याय्य, न्यायोचित 3. धर्म से युक्त !
कीर्तनस्थो मुदङ्गः, धिक सानुज कुरुपति धिगजात-- धामिणम् [र्मिन्- अण्] सद्गुणियों का समाज ।
शत्रु वेणी०३।११, कभी-कभी कर्त० संबो० और धाटघम् [धृष्ट-प्या] अहंकार, अविनय, औद्धत्य, संबं के साथ धिगर्थाः कष्टसंश्रयाः पंच० १. धिड - ढिठाई, अक्खड़पन !
मूर्व, धिगस्तु हृदयस्यास्य (धिकृ तिरस्कार करना) धाव (मा०पर-धावति, धावित) 1. दौड़ना, आगे अवज्ञा करना, रद्द करना, बुरा भला कहना) । सम०
बढ़ना - अद्यापि धावति मन: --चौर० ३६, धावन्त्यमी - कारः--क्रिया झिड़कना, फटकारना, तिरस्कार मृगजवाक्षमयेव रय्याः ----श० ११८, गच्छति पुरः करना, अवज्ञा करना, ---दण्डः डांटफटकार बताना, शारीरं धावति पश्चादसंस्तुतं चेतः १०३४, 2. किसी निदा मनु० ८।१२९,-पारुष्यम् अपशब्द, डांट की ओर दौड़ना, किसी के मुकाबले में आगे बढ़ना, फटकार, भर्त्सना।
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