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( ४९७ ) धिप्सु (वि.) [ दम्भ-+ सन्+उ धोखा देने का इच्छुक, ।। समझदार, विद्वान् चतुर-धृतेश्च धीरः सदृशीळधत्त धोखा देने वाला-- भटि० ९।३३ ।
सः-रघु० ३।१०, ५।३८, १६।७४, उत्तर० ५।३१ धिन्व दे० धि।
8. गहरा, गंभीर, ऊँचा स्वर, खोखलास्वर स्वरेण धीघिषणः | धम् । क्यु, धिप आदेशः ] देवों के गुरु बृह- रेण निवर्तयन्निव- रघु० ३।४३, ५२, उत्तर० ६११७
स्थति का नाम,-- णम् निवासस्थान, आवास, घर, 9. आचरणशील, आचारवान् 10. (वायु आदि) --णा 1. भाषण, 2. स्तुति, सूक्त 3. बुद्धि, समझ मन्द, मदु, सुहावना, सुखकर-धीरसमीरे यमुनातीरे महावी० ६७ 4. पृथ्वी 5. प्याला, कटोरा ।।
वसति बने वनमाली-गीत०५ 11. सुस्त, आलसी धिष्ण्यः [धृष्|-य नि० ऋकारस्य इकार: 1 1. यज्ञाग्नि
12. साहसी 13. हेकड़,--र: 1. समुद्र 2. राजा बलि के लिए स्थान, हवनकुण्ड, अमीवेदि परितः कृतधि
का विशेषण,--रम् केसर, जाफरान,--रम् (अव्य०) एण्या-श० ४७ 2. असुरों के गुरु शुक्राचार्य का
साहसपूर्वक, दृढ़ता के साथ, अडिग होकर धीरज के नाम 3. शुक्र ग्रह शक्ति, सामर्थ्य,--ण्वम्
साथ-भत० २।३१, अमरु १११ सम०-उदात्तः 1. आसन, आवास, स्थान, जगह, घर-न भौमान्येव
अच्छे विचारों का शूरवीर व्यक्ति (काव्य नाटक में) धिष्ण्यानि हित्वा ज्योतिर्मयान्यपि-रघु० १५।३९,
नायक, -अविकत्थनः क्षमावानप्तिगम्भीरो महासत्त्वः, 2 केतु, उल्का 3. अग्नि 4. तारा, नक्षत्र।
स्थेयानिग ढमानो धीरोदात्तो दृढ़वतः कथित:--सा० धीः (स्त्री०) [ध्य +विवप, संप्रसारण ] 1. (क) बुद्धि,
द० ६६,--उद्धतः शूरवीर परन्तु अभिमानी (काव्यसमझ--धियः समग्रैः स गुणरुदारधीः-- रघु० २।३०
नाटक में) नायक ---मायापरः प्रचण्डश्चपलोऽहंकार-कृ० कुधी, सुधी आबि (ख) मन, दुष्टधी दुष्ट
दर्पभूयिष्ठः, आत्मश्लाघानिरतो धीरैर्धीरोद्धतः कथितः बुद्धि पाला--भग० २।५४, रघु० ३।३० 2. विचार
-सा० द. ६७,-चेतस् (वि०) दृढ़, अडिग, दृढ़ कल्पना, उत्प्रेक्षा, प्रत्यय ---न धिया पथि वर्तसे-कु०
मन बाला, साहसी,-प्रशान्तः (काव्य नाटक में) ६।२२ 3. विचार, आशय, प्रयोजन, नैसर्गिक प्रवृत्ति,
नायक जो शरवीर और शान्त व्यक्ति हो-सामान्यकि० ११३७ 4. भक्ति, प्रार्थना 5. यज्ञ । सम०
गुणभूयान् द्विजातिको धीरप्रशान्तः स्यात्-सा० द. ---इन्द्रियम् प्रत्यक्षज्ञान का अंग (ज्ञानेन्द्रिय), मनः
६९, --ललितः (काव्य नाटक में) नायक जो दृढ़ कर्णस्तथा नेत्रं रसना च त्वचा सह, नासिका चेति षट्
और शुरवीर होने के साथ-साथ क्रीडाप्रिय और तानि चीन्द्रियाणि प्रचक्षते, -गुणाः (व० व०)
असावधान हो ...निश्चितो मदरनिशं कलापरो धीरबौद्धिक गुण, (शुश्रुषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा,
ललित: स्यात् सा० द०६८, स्कन्धः भैसा । ऊहापोहार्थविज्ञान तत्त्वज्ञानं च धीगुणा:-काम- धीरता धिोर+तल+टाप्] । धैर्य, साहस, मनोबल न्दक),-पतिः (धियां पतिः) देवों के गुरु बृहस्पति ---विपत्तौ च महाँल्लोके धीरतामनगच्छति---हि.
-मन्त्रिन (पु०),- सचिवः 1. सलाहकार मंत्री ३४४ 2. ईर्ष्या का दमन 3. गंभीरता, शान्तचित्तता (विगः कर्मसचिव-कार्यान्वयोमंत्री) 2. बुद्धिमान् ---प्रत्यादेशान्न खल भवतो धीरतां कल्पयामि-मेघ. और दूरदर्शी सलाहकार,---शक्तिः (स्त्री०) बौद्धिक १४४, (दूसरे अर्थों के लिए दे० 'धैर्य')।
शक्ति,-सखः सलाहकार, परामर्शदाता, मंत्री। धोरा धीर+टाप] काव्य नाटक में वर्णित नायिका जो धीत (वि.) [धे-क्ति] 1. चला गया, पोया गया, दे० अपने पति या प्रेमी से ईर्ष्या रखती हुई भी, उसकी
उपस्थिति में अपनी बाह्य भावमुद्रा से अपना रोष भोति: (स्त्री०) [धे-न-क्तिन्] 1. पोना, चूसना, 2. प्यास। प्रकट नहीं होने देती. - रसमंजरी की उक्ति:--व्यङ्ग्यधीमत् (वि०) [धो--मतुप] बुदिमान, प्रतिभाशाली,
कोप प्रकाशिका धीरा--दे० सा० द०१०२-५, भी। विद्वान् (पं०) बृहस्पति का विशेषण।
सम-अधीरा काव्य नाटक में वर्णित नायिका जो घोर (वि०) धोरा+क] 1. यहादुर, उद्धत साहसी ।
अपने पति या प्रेमी से ईर्ष्या रखती हुई अपने रोष .... धोरोद्धता गति:-उत्तर०६।१९ 2. स्थिर, सुदढ़
को अभिव्यक्त भी कर देती है, और अपनी ईर्ष्या अटल, टिकाऊ, चलाऊ, स्थायो -रघु० २१६ 3. दृढ़
को छिपा भी लेती है-व्यङ्ग्याव्यङ्ग्यकोप प्रकाशिका मनस्क, र्यवान, स्वस्थचित्त, अडिग, दृढ़ निश्चय
घोरा-धीरा---रसमंजरी।। वाला,-.-धीरा र तरन्त्यापदं-का० १७५, विकारहेती
| धीलटिः,---टी (स्त्री०) [धी+लट्-+इन्, धीलटि+ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः -कु०
डी] पुत्री, बेटी। ११५२ 4. स्वस्थचिन, शान्त, सावधान 5. सीम्य, | धीवरः [दधाति मत्स्यान्.....धा--वरच] मछुवा-- मृगस्थिरबुद्धि, प्रशान्त, गम्भीर --- रघु० १८१४ 6. मज- | | मीनसज्जनानां तृणजलसंतोषविहितवृत्तीना, लुब्धकबूत, बलवान 7. बुद्धिमान्, दूरदर्शी, प्रतिभाशाली, धीवरपिशुना निष्कारणवैरिणो जगति-- भर्तृ० २०६१,
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