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( ४९८ ) ११८५,-रम् लोहा,-री 1. मछुवे की स्त्री छ वा ] 1. बोझा ढोने या सँभालने के योग्य 2. जोते 2. मछलियां रखने की टोकरी।
जाने के योग्य 3. महत्त्वपूर्ण कार्यों में नियक्त (णः, धु (स्वा० उभ०-धुनोति, धुनुते, धुत) दे० 'धू'।
-~यः) 1. बोझा ढोने वाला पश 2. आवश्यक कार्यों धुम् (म्वा० आ० धुक्षते, धुक्षित) 1. सुलगना 2. जीना | में नियुक्त 3. मुख्य, प्रधान, अग्रणी।
3. कष्ट भोगना--प्रेर० धुक्षयति-सुलगाना, | धर्य (वि.) [ धर+यत ] 1. बोडा सँभालने के योग्य प्रज्वलित करना, सम् --सुलगाना, उत्तेजित होना
2. महत्त्वपूर्ण कार्य सौगे जाने के योग्य 3. नोटी पर (आलं. भी) संदुधुक्षे तयोः कोपः-भट्टि०१४।१०९,
स्थित, मुख्य, प्रमख,-र्यः 1. बोझा ढोने का पश प्रेर० सुलगाना, प्रज्वलित करना, उत्तेजित करना
2. घोड़ा या बैल जो गाड़ी में जुता हुआ हो - नावि-निर्वाणभूयिष्ठमथास्य वीर्य संधुक्षवन्तीव वपुर्गुणेन
नीव्रजेत् धयः -- मन० ४।६७, यनेदं ध्रियते विश्व -~-कु. ३१५२।
धुयर्यानमिवाध्वनि-कु० ६७६, धुर्यान् विथामयति धुत (वि.) [धु+क्त] 1. हिला हुआ,---रघु० ११११६ -~-रघु० ११५४, ६१७८, १७।१२, 3. (उत्तरदायित्व 2. छोड़ा हुआ, परित्यक्त ।।
के) भार को संभालने वाला - रघु० ५।६६, 4. मुख्य धुनिः, --नी (स्त्री०) [धु+नि, धुनि + ङीष्] नदी, अग्रणी, प्रधान न हि सति कुलधयें सूर्यवंश्या ग्रहाय
दरिया-पुराणां संहतुः सुरधुनि कपर्दोऽधिरुरुहे-गंगा० -- रघु० ७७१ 5. मंत्री, महत्त्वपूर्ण कार्यों पर २२ । सम० -नायः समुद्र ।।
नियुक्त व्यक्ति । धुर [ घुर्व + क्विप् ] ( कर्तृ० ए० व०~-धः) 1. (शा०) धुस्तु (स्तू) रः [धु+उर्, स्तुद् ] धतूरे का पौधा ।
जुआ, न गर्दभा बाजिधुरं वहन्ति--मृच्छ० ४।१७. ध (तदा० पर०, म्वा०, स्वा०, क्रघा०, चुरा० --उभ० अत्रस्तुभियुक्तधुरं तुरङ्ग:---रघु० १४१४७, 2. जए । धुवति; धवति ---ते; धूनोति, धूनुते ; धुनाति, धुनीते का वह भाग जो कंधों पर रक्खा रहता है, 3. पहिए धनयति-ते) 1. हिलाना, क्षुब्ध करना, कंपाना की नाभि को धुरी के साथ स्थिर करने के लिए धरी
-- धुन्वन्ति पक्षपवन न नभो बलाका:--ऋतु०३।१२, के दोनों किनारों पर लगी कील 4. गाड़ी का बम
धुन्वन् कल्पद्रुमकिसलयानि–मेघ०६२, कु० ७१४९, 5. बोझा, भार (आलं. भी) उत्तरदायित्व, कर्तव्य,
रघु० ४।६७, भट्टि० ५।१०१, ९।७, १०१२२ 2. उतार कार्य-तेन धूर्जगतो गुर्वी सचिवेषु निचिक्षिपे-~रघु०
देना, हटाना, फेंक देना-स्रजमणि शिरस्यन्धः क्षिप्तां ११३४, २०७४, ३।३५, ६६, कु०६।३० आप्तरत्यन
धुनोत्यहिशङ्कया-श० ७१२४ 3. फूंक मार कर उड़ा वाप्तपौरुषफलैः कार्यस्यधरुज्झिता-मद्रा० ६।५, देना, नष्ट करना 4. सुलगाना, उत्तेजित करना (आगे ४।६, कि० ३।५०, १४१६ 6. प्रमुखतम या उच्चतम
को) पंखा करना --वायुना धूयमानो हि वनं दहति स्थान, हरावल, अग्रभाग, शिखर, सिर अपांसूलाना
पावकः---महा०, पवनधूत: अग्निः ऋतु० २६ धुरि कीर्तनीया-रघु० २१२, धुरि स्थिता त्वं पति
5. अशिष्ट व्यवहार करना, चोट पहुँचाना, क्षति पहुँदेवतानाम्, १४१७४, अविघ्नमस्तु ते स्थेयाः पितेव घरि
चाना-मा नधावीररि रणे-भदि० ९१५०, १५।६१ पुत्रिणाम्-१२९१, धुरि प्रतिष्ठापयितब्य एव-मालवि० 6. अपने ऊपर से उतार फेंकना, अपने आपको मुक्त १।१६, ५।१६, (धुरि सिरे पर रखना या आगे
करना---(सेवका:) आरोहन्ति शनै: पश्चाद्धन्वन्तमपि रखना -- श०७४) । सम-- गत (धूर्गत) (वि.) पार्थिवम्-पंच० ११३६, (कवि रहस्य के निम्नलिखित 1. रथ के बम पर खड़ा हुआ 2. सिर पर खड़ा हुआ श्लोक में इस घातु के विभिन्न गणों के रूप में दिए मुख्य, प्रधान, प्रमुख, --जटि: शिव का विशेषण,
गये हैं:-धनोति चम्पकवनानि धुनोत्यशोक चतं ---धर (पूर्धर, 'धुरंधर' भी) (वि०) 1. जआ
धुनाति धुवति स्फटितातिमुक्तम्, वायुर्विधनयति संभालने वाला 2. जोते जाने के योग्य 3. अच्छे गुणों
चम्पकपुष्परेणून् यत्कानने धवति चन्दनमंजरीश्च )। से युक्त या महत्त्वपूर्ण कर्तव्यों से लदा हुआ 4. मुख्य,
अव-हिलाना, इधर-उधर करना, कम्पाना, लहराना, प्रधान, अग्रगण्य प्रमुख, कुलधुरंधरो भव-विक्रम
----रेणुः पवनावधूत:---रघु० ७।४३, लोलावत५, (रः), 1. बोझा ढोने वाला जानवर 2. जिसके
श्चामरः --मेघ० ३५, कि० ६।३, शि० १३।३६ ऊपर किसी कार्य का भार हो 3. मुख्य, प्रधान, 2. उतार फेंकना, हटाना, पराभूत करना, राजसत्त्वअग्रणी,--वह (धुर्वह) (वि०) भार वहन करने मवधूय मातृकम् - रघु० १११९०, सुरवधूरवधूतभयाः वाला 2. काम का प्रबंधक, (ह:) बोझा ढोने वाला शरैः-९४१९, ३.६१, कि० ११४२ 3. अवहेलना पशु, इसी प्रकार 'धूवाद।
करना, अस्वीकृति करना, उपेक्षा करना, तिरस्कारधुरा (स्त्री०) बोझा, भार-रणधुरा वेणी० ३।५।। युक्त व्यवहार करना--चण्डी मामवधूय पादपतितं धुरीण, धुरीय (वि०) [ धुरं वहति, अर्हति वा, धुर्+ख, | -विक्रम ४॥३८, पादानतः कोपनयाऽवधूत:-कु०
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