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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २१३ ष्टम् सति मुमुक्षुः - रघु० ८९४ 4. ग्रहण ग्रस्त 5. उपसर्गयुक्त (धातु) - क्रुधद्र होरुपसृष्टयोः कर्म - पा० १/४ ३८. ष्टः ग्रहण से ग्रस्त सूर्य या चन्द्रमा, मैथुन, संभोग । उपसेक:- उपसेचनं [ उप + सिच् + घञ, ल्युट् वा ] 1. उड़ेलना, छिड़कना सींचना 2. भीगना, रस, नी कड़छी या कटोरी जिससे उडेला जाय । उपसेवनम् सेवा [ उप + सेव् + ल्युट् अ + टाप् वा ] 1. पूजा करना, सम्मान करना, आराधना 2. उपासना - राज – मनु० ३/६४३ लिप्त होना विषय 4. काम लेना, (स्त्री का) उपभोग करना -परदार - मनु० ४।१३४ | उपस्करः [ उप+कृ+ अप्, सुट् ] 1. जो किसी दूसरी वस्तु को पूरा करने के काम आवे, संघटक, अवयव 2. (अंतः ) ( सरसों, मिर्च आदि) मसाला जो भोजन को स्वादिष्ट बनाये 3 सामान, उपवन्ध, उपांग, उपकरण - शि० १८।७२ 4. घर-गृहस्थी के काम की वस्तु (जैसे झाड़ू) याज्ञ० १/८३, २।१९३, मन० ३।६८, १२/६६,५१५० 5. आभूषण 6. निन्दा, बदनामी । उपस्करणम् [उप + कृ + ल्युट्, सुट् ] 1. वध करना, क्षत विक्षत करना 2. संचय 3. परिवर्तन, सुधार 4. अध्याहार, 5. बदनामी निन्दा | उपस्कारः [ उप + कृ + घञ सुट्] 1 अतिरिक्तक, परिशिष्ट, 2. अध्याहार - ( न्यून पद की पूर्ति ) साकांक्षमनुपस्कारं विष्वग्गतिनिराकुलम् कि० ११३८ 3. सुन्दर बनाना, सजाना, शोभायुक्त करना - उक्तमे वार्थं सोपस्कारमाह - रघु० ११।४७ पर मल्लि० 4. आभूषण 5. प्रहार 6. संचय । | उपस्कृत (भू० क० कृ० ) [ उप + कृ + + क्त, सुट् ] 1. तैयार किया हुआ 2. संचित 3. सजाया गया, अलंकृत किया गया 4. अध्याहृत 5. सुधारा गया । उपस्कृतिः (स्त्री० ) [ उप + कृ + क्तिन्, सुट् ] परिशिष्ट । उपस्तम्भः-भनम् | उप + स्तम्भ् + घञ्ञ, ल्युट् वा ] 1. टेक, सहारा 2. प्रोत्साहन, उकसाना, सहायता 3. आवार, नींव, प्रयोजन । उपस्तरणम् ['उप+स्नु--- ल्युट् ] 1. फैलाना, विछाना, बखेरना 2. चादर 3. विस्तरा 4. कोई बिछाई हुई ( चादर आदि ) -- अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा । उपस्त्री (स्त्री० ) [ प्रा० स०] रखेल | उपस्थ: [ उप + स्था + क] 1. गोद 2. ( शरीर का ) मध्य भाग, पेडू, स्थः स्थम् 1. ( स्त्री या पुरुष की ) जननेन्द्रिय, विशेषतः योनि स्नानं मोनोपवासेज्या स्वाध्यायोपस्थनिग्रहाः याज्ञ० ३।३१४ ( पुरुष का लिंग) स्थूलोपस्थस्थलीषु — भर्तृ० १।२० ( स्त्री की योनि ); हस्ती पायुरुपस्थश्च - याज्ञ० ३।९२ ( यहाँ यह शब्द दोनों - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थों में प्रयुक्त है) 2. गुदा 3. कूल्हा । सम० निग्रहः इन्द्रियदमन, संयम याज्ञ० ३/३१४, - बल:- पत्रः, पीपल का वृक्ष ( क्योंकि इसके पत्ते स्त्री-योनि के आकार के समरूप होते हैं) । उपस्थानम् [ उप + स्था + ल्युट् ] 1. उपस्थिति, सामीप्य 2. पहुँचना, आना, प्रकट होना, दर्शन देना 3. (क) पूजा करना, प्रार्थना, आराधना, उपासना -- सूर्योपस्थानात्प्रतिनिवृत्तं पुरूरवसं मामुपेत्य - विक्र० १, सूर्यस्योपस्थानं कुर्वः - विक्रम ० ४, याज्ञ० १२२ (ख) अभियादन, नमस्कार 4. आवास 5. देवालय, पुण्यस्थल, मन्दिर 6. स्मरण, प्रत्यास्मरण, स्मृति- - याज्ञ० ३। १६० । उपस्थापनम् [ उप + स्था + णिच् + ल्युट् ] 1. निकट रखना, तैयार होना 2. स्मृति को जगाना 3. परिचर्या, सेवा । उपस्थायकः [ उप + स्था + ण्वुल् ] सेवक । उपस्थितिः (स्त्री० ) [ उप + स्था + क्तिन्] 1 पास जाना 2. सामीप्य, विद्यमानता 3. अवाप्ति, प्राप्ति 4. सम्पन्न करना, कार्यान्वित करना 5. स्मरण, प्रत्यास्मरण 6. सेवा, परिचर्या । उपस्नेहः | उप + स्निह +घञ ] गीला होना । उपस्पर्शः-र्शनम् [ उप + स्पृश् + घञ, ल्युट् वा ] 1. स्पर्श करना, सम्पर्क 2. स्नान करना, संक्षालन, धोना 3. कुल्ला करना, आचमन करना, मार्जन करना, (अंगो पर जल के छींटे देना -- एक धार्मिक कृत्य ) । उपस्मृति: ( स्त्री० ) [ प्रा० स०] लघु धर्मशास्त्र या विधि ग्रन्थ ( यह संख्या में १८ हैं ) । उपस्रवणम् [ उप + स्रु + ल्युट् ] 1. रज का मासिक स्राव होना 2. बहाव । उपस्वत्वम् [ प्रा० स०] राजस्व, लाभ (जो भूमि अथवा पूँजी से प्राप्त हो) । उपस्वेद: [ उप + स्विद् + घञ ] गीलापन, पसीना । उपहत (भू० क० कृ० ) [ उप + न् + क्त ] 1. क्षतविक्षत, जिस पर आघात किया गया हो, क्षीण, पीडित, चोट लगा हुआ कु० ५।७६ 2. अभिभूत आबद्ध, आहत पराभूत दारिद्र्य, लोभ, दर्प, काम, शोक आदि 3. सर्वथा विनष्ट – कथमत्रापि देवेनोपहता वयम् - मुद्रा ० २, देवेनोपहतस्य बुद्धिरथवा पूर्व विपर्यस्यति मुद्रा० ६।८ 4. निदित, भर्त्सना किया गया, उपेक्षित 5. दूषित, कलुपित, अपवित्रीकृत - शारीरं - लैः सुराभिद्यैर्वा यदुपहतं तदत्यन्तोपहृतम् - विष्णु । सम० - आत्मन् क्षुब्धमना, उद्विग्नमना, दृश् (वि० ) चीवियाया हुआ, अंधा किया गया- कि० १२।१८, - घो ( वि०) मूढ़ | उपहतक (वि० ) [ उपहत + कन् । हतभाग्य, अभागा । उपहतिः (स्त्री० ) [ उप + न् + क्तिन् ] 1. प्रहार 2. वध, हत्या | For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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