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उपहत्या [ प्रा० स०] आँखों का चौंधियाना।
का उपक्रम - तु. उपाकर्मन,-वेदोपाकरणाख्यं कर्म उपहरणम् [ उप++ल्युट ] 1. निकट लाना, जाकर करिष्ये-श्रावणी मंत्र।
लाना 2. ग्रहण करना, पकड़ना 3. देवता आदि को | उपाकर्मन् (नपुं०) [ उप+आ+-+मनिन् ] 1. तैयारी, भेंट प्रस्तुत करना 4. बलिपशु देना 5. भोजन आरंभ, उपक्रम 2. वर्षारंभ के पश्चात् वेदपाठ के परोसना या बाँटना।
उपक्रम से पूर्व किया जाने वाला अनुष्ठान (तु. उपहसित (भू. क. कृ.) [ उप-+हस्+क्त ] मजाक श्रावणी) याज्ञ०१२१४२, मनु० ४१११९ ।
उड़ाया गया, भर्त्सना किया गया,-तम् व्यंग्यपूर्ण उपाकृत (भू० क. कृ०) [ उप+आ+ +क्त] अट्टहास, हंसी उड़ाना।
__1. निकट लाया हुआ 2. यज्ञ में बलि दिया गया उपहस्तिका [ उपहस्त+क+टाप, इत्वम् ] पान-दान, ___3. आरब्ध, उपक्रांत। -उपहस्तिकायास्ताम्बूलं कर्पूरसहितमुधुत्य-- दश० उपाक्षम् (अव्य०) [अव्य. स०] आंखों के सामने, अपने
समक्ष । उपहारः [ उप+ह । घा] 1. आहुति 2. भेंट, उपहार | उपाख्यानम्-नकम् [ उप+आ+ख्या+ल्युट् पक्षे कन् च ]
-रघु० ४१८४ 3. वलि-पशु, यज्ञ, देवता का नजराना छोटी कथा, गल्प या आख्यायिका-उपाख्यानविना -रघु० १६॥३९ 4. सम्मान-सुचक भेंट, अपने तावद् भारतं प्रोच्यते बुधैः- महा०। बड़ों को उपहार देना 5. सम्मान 6. शांति के मूल्य उपागमः उप+आ-गम+अप] 1. निकट जाना, पहुंचना स्वरूप क्षति पूरक उपहार-हि० ४।११० 7. अभ्या
2. घटित होना 3. प्रतिज्ञा, करार 4. स्वीकृति । गतों में परोसा गया भोजन ।
उपागम् [प्रा० स०] 1. चोटी या किनारे के निकट का उपहारिन् (वि०) [ उपहार+णिनि ] देने वाला, उपहार भाग 2. गौण अंग। प्रस्तुत करने वाला, लाने वाला।
उपाग्रहणम् [ उप+आ+ग्रह.+ ल्युट ] दीक्षित होकर उपहालकः [? ] कुन्तल देश का नाम ।
वेदाध्ययन करना। उपहासः [उप+हस्+घा ] 1. मजाक उड़ाना, हंसी- उपाङ्गम [प्रा० स०] 1. उपभाग, उपशीर्षक 2. कोई छोटा
दिल्लगी-रघु० १२॥३७ व्यंग्यपूर्ण अट्टहास 3. हंसी अंग या अवयव 3. परिशिष्ट का पूरक 4. घटिया मज़ाक, खेलकूद । सम० - आस्पबम् ... पात्रम् उपहास प्रकार का अतिरिक्त कार्य 5. विज्ञान का गौण भाग की सामग्री, भांड, उपहास्य ।
-वेदांगों के परिशिष्ट स्वरूप लिखा गया अन्य समूह उपहासक (वि०) [उप+हस्+ण्वुल ] हंसी-मजाक (ये चार हैं -- पुराणन्यायमीमांसाधर्मशास्त्राणि) ।
उड़ाने वाला,---कः विदूषक, दिल्लगी बाज़। | उपचारः [ उप+आ—चर+घञ्] 1. (वाक्य में शब्द उपहास्य (वि०, सं० कृ०) [उप+हस्+ण्यत्] मजाकिया का) स्थान 2. कार्यविधि ।
-तां गम् या या-हंसी मजाक की वस्तु बनना, उपाजे (अव्य०) (केवल 'कृ' धातु के साथ प्रयोग) ठिठोलिया-गमिष्याम्युपहास्यताम् रघु० ११३ ।
--सहारा देना---उपार्जकृत्य या कृत्वा-सहारा देकर उपहित (वि.) [उप+घा+क्त ] रक्खा गया, दे० उप- -पा० ११४१७३ सिद्धा० । पूर्वक 'धा'।
| उपाञ्जनम् [उप+अ +ल्यूट]- मलना, लीपना (गोबर उपहूतिः (स्त्री०) [ उप+ह्वे+क्तिन् ] बुलावा, आह्वान, आदि से) पोतना (सफेदी, चूना आदि)-मनु० ५।१०५, निमंत्रण,-शि० १४॥३० ।
१२२।१२४, मठादेः (सुधागोमयादिना संमार्जनानुउपहारः [ उप+-+ध] एकान्त या अकेला स्थान, लेपनम्-मेधातिथि)। निजी जगह---उपह्वरे पुनरित्यशिक्षयं घनमित्रम् उपात्ययः [ उप+अति+5+अच् ] उल्लंघन करना, --दश० ५४ 2. सामीप्य ।
(प्रचलित प्रथा से) विचलन । उपहानम् [ उप+हे+ल्युट्] 1. बुलाना, निमंत्रित , उपादानम् [ उप+आ+दा+ल्यट] 1. लेना, प्राप्त
करना 2. प्रार्थना मंत्रों के साथ आवाहन करना। करना, अभिग्रहण करना, अवाप्त करना--विश्रब्धं उपांश (अव्य०) [उपगता अंशवो यत्र ] 1. मन्द स्वर ब्राह्मणः शूद्रात् द्रव्योपादानमाचरेत्-मनु० ८।४१७,
से, कानाफूसी 2. चुपके से, गप्तरूप से-परिचेतमपांश- विद्या-का० ७५ 2. उल्लेख, वर्णन 3. समावेश, धारणाम-रषु० ८।१८-शुः मन्द स्वर में की गई मिलाना 4. सांसारिक पदार्थों से अपनी ज्ञानेन्द्रियों व प्रार्थना, मंत्रों का जप करना तु०, मनु० २१८५।
मन को हटाना 5. कारण, प्रयोजन, प्राकृतिक या उपाकरणम् [ उप+आ+ +ल्युट ] 1. आरंभ करने के तात्कालिक कारण-पाटवोपादानो भ्रमः--उत्तर०
लिए निमंत्रण, निकट लाना 2. तैयारी, आरम्भ, उप- ३, अने० पा० 6. सामग्री जिनसे कोई वस्तु बने, क्रम 3. प्रारंभिक अनुष्ठान करने के पश्चात् वेद-पाठ । भौतिक कारण-निमित्तमेव ब्रह्म स्यादुपादानं च
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