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( २१५ ) वेक्षणात-अधिकरणमाला 7. अभिव्यंजना की एक । उपायः [ उप-+-+धा ] 1. (क) साधन, तरकीब, रीति जिसमें अपने वास्तविक अर्थ को प्रकट करने के युक्ति--उपायं चिन्तयेत्प्राज्ञस्तथापायं च चिन्तयेत् अतिरिक्त न्यूनपद की पूर्ति भी अध्याहार द्वारा कर - पंच०११४०६, अमरु २१, मनु०७।१७७ ८४८, ली जाती है-स्वसिद्धये पराक्षेपः "उपादानम्-काव्य. (ख) पद्धति, रीति, कूटचाल 2. आरम्भ, उपक्रम २। सम-कारणम् भौतिक कारण-प्रकृति- 3. प्रयत्न, चेष्टा-भग० ६।३६, मनु० ९।२४८, १०१२ श्चोपादानकारणं च ब्रह्माप्युपगन्तव्यम्-शारी०,-लक्षणा 4. शत्रु पर विजय पाने का साधन (यह चार हैं
=अजहत्स्वार्था, दे० काव्य० २, सा० द०१४ भी। --सामन, समझौता-वार्ता, दानम्-रिश्वत, भेद-फूट उपाधिः [ उप+आ+घा--कि] 1. जालसाजी, धोखा,
डालना और दंड:-सजा देना (सीधा धावा बोलना), दाँव 2. प्रवंचना, (वेदान्त में) छद्मवेष धारण करना
कुछ लोग तीन और जोड़ देते हैं माया--धोखा, 3. विवेचक या विभेदक गण, विशेषण, विशेषता
उपेक्षा-दांव-पेच, अवहेलना, इंद्रजाल-जादू-टोना करना, -तदुपधावेव सङ्केतः-काव्य०२, यह चार प्रकार
इस प्रकार कुल संख्या सात हुई),-चतुर्थोपायसाध्ये तु का है-जाति, गुण क्रिया, तथा संज्ञा 4. पद, उपनाम
रिपो सान्त्वमपक्रिया--शि० २।५४, सामादीनामुपा(भट्टाचार्य, महामहोपाध्याय, पंडित आदि) 5. सीमा,
यानां चतुर्णामपि पण्डिता:-मन० ७१०९5. सम्मिलित (देश काल आदि की) अवस्था (बहुधा वेदान्तदर्शन में)
होना (गायन आदि में) 6. पहुँचना । सम-तुष्ट6. प्रयोजन, संयोग, अभिप्राय 7. (तर्क में) किसी
यम, शत्रु के विरुद्ध की जाने वाली चार तरकीबें--३० सामान्य बात का विशेष कारण 8. जो व्यक्ति अपने
ऊ०,- (वि०) तरकीब निकालने में चतूर-तुरीयः परिवार का भरण-पोषण करने में सावधान है। चौथी तरकीब अर्थात् दंड,--योगः साधन या युक्ति का उपाधिक (वि.) [ अत्या० स० । अधिक, अधिसंख्य, प्रयोग--मनु० ९।१०।। अतिरिक्त ।
उपायनम् / उप अय+ल्युट ] 1. निकट जाना पहुंचना उपाध्यायः [ उपेत्याधीयते अस्मात्-उप+अधि++ 2. शिष्य बनना 3. किसी धार्मिक संस्कार में व्यस्त रहना
घज | 1. अध्यापक, गुरु 2. विशेषतः अध्यात्मगुरु, 4. उपहार, भेंट-मालविकोपायनं प्रेषिता-मालवि० धर्मशिक्षक (उपशिक्षक---जो वेद के किसी भाग को १, तस्योपायनयोग्यानि वस्तूनि सरितां पतिः–कु. केवल पारिश्रमिक प्राप्त करने के लिए पढ़ाता है- २।३७, रघु० ४१७९। आचार्य से निम्न पदवी का) तु०-मनु० २११४१, उपारम्भः [ उप+आ+र+घा, नुम् ] आरंभ, उपएकदेशं तु वेदस्य वेदाङ्गान्यपि वा पुनः, योऽध्यापयति क्रम, शुरू। वृत्त्यर्थमुपाध्यायः स उच्यते। दे० 'अध्यापक' और | उपार्जनम्ना [ उप+अर्ज + ल्युट्, युच् वा ] कमाना, 'आचार्य' के नीचे भी.-या स्त्री-अध्यापिका, यी लाभ उठाना।। 1. अध्यापिका 2. गरुपत्नी।
उपार्थ (वि.) [ब० स०] थोड़े मूल्य का। उपाध्यायानी | उपाध्याय-+डीप, आनुक गुरुपत्नी।। उपालम्भः भनम् [ उप+आ+लभ -घ, नुम्, ल्युट् उपानह (स्त्री०) [ उप+नह+विवप् उपसर्गदीर्घः ।
बा] 1. दुर्वचन, उलाहना, निन्दा-अस्या महदुपालचप्पल, जूता--उपानद्गूढपादस्य सर्वा चर्मावतेत्र भुः
म्भनं गतोऽस्मि- श० ५, तवोपालम्भे पतिताऽस्मि-- हि० १११२२, मनु० ॥२४६, श्वा यदि क्रियते
मालवि० १, तुम्हारा उलाहना सिर-माथे पर राजा म कि नाश्नात्युपानहम्-हि० ३१५८ ।
2. विलंब करना, स्थगित करना। उपान्तः प्रा० स० ] 1. किनारी, छोर, गोट, पल्ला, सिरा उपावर्तनम् [ उप+आ+-वत् + ल्युट ] 1. वापिस आना
- उगान्तयोनिष्कुपितं विहङगैः-रघु० ७.५०, कु. या मड़ना, लौटना-त्वदुपावर्तनशङ्किमे मनः (करोति) ३१६९, ७।३२, अमरु २३, उत्तर० १२६ वल्कल' रघु० ८५३ 2. घूमना, चक्कर काटना --का० १०६ 2. आँख को कोर-रघु० ३।२६ 3. पहुँचना। 3. अव्यवहित सान्निध्य, पड़ोस--नयोरुपान्तस्थित सिद्ध- | उपाश्रयः [ उप+आ+श्रि । अच् ] 1. अवलंब, आथय, सैनिकम् --रघु० ३१५७, ७।२४, १६।२१, मेघ. २४ | सहारा-भर्त० २।४८ 2. पात्र, पाने वाला 3. भरोसा, 4. पार्श्वभाग, नितम्ब---मेघ० १८।
निर्भर रहना। उपान्तिक (वि.) [प्रा०स० निकटस्थ, समीपी, पडीसी, | उपासकः [ उप-+-आस-+ण्वल ] 1. सेवा में उपस्थित, - कम पड़ोस, सामीप्य ।
पूजा करने वाला 2. सेवक, अनुचर 3. शूद्र, निम्नउपान्त्य (वि०) [ उपान्त+यत् | अन्तिम से पूर्व का जाति का व्यक्ति ।
~~-उत्तमपदमुपान्त्यस्योपलक्षणार्थम्-सिद्धा०,-स्यः आँख ! उपासनम्ना [ उप+आस् ल्युट, युच् वा ] 1. सेवा, की कोर, त्यम् पड़ोस ।
हाजरी, सेवा में उपस्थित रहना 2. शीलं खलोपास
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