________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३०७ ) में बन्द कर बेचना है 2. पंक्षियों के मांस का विक्रेता, | कौग्ज्यम् [कुब्ज---व्यञ] 1. टेढ़ापन, कुटिलता 2. कुबड़ाकसाई, शिकारचोर।
पन । कोटलिकः [कुटिलिकया हरति मृगान् अङ्गारान् वा-कुटि- कौमार (वि.) (स्त्री०-री) [कुमार+अण्] 1. तरुण, लिका+अण्] 1. शिकारी 2. लहार ।
यवा, कन्या, कुँवारी (स्त्री और पुरुष दोनों) कौमारः कौटिल्यम कुटिल-प्या] 1. टिलपना (शा० तथा पतिः, कौमारी भार्या 2. मद्, कोमल, रम् 1. बचपन
आलं०) 2. दुष्टता 3. बेईमानी, जालसाजी, ल्यः (पाँच वर्ष तक की अवस्था) कुंआरीपना (१६ वर्ष 'चाणक्य नीति' नामक नीतिशास्त्र का प्रख्यात प्रणेता की आयु तक) कुमारीपन--पिता रक्षति कौमारे भर्ता चाणक्य, चन्द्रगुप्त का मित्र और मन्त्रकार, मुद्राराक्षस रक्षति यौवने मनु० ९।३, देहिनोऽस्मिन् यथा देहे नाटक का एक महत्त्वपूर्ण पात्र कौटिल्यः कुटिलमतिः कौमारं यौवनं जरा भग० २११३ । सम.- भूत्यम् स एष येन क्रोधाग्नी प्रसभमदाहि नन्दवंशः ...-मुद्रा० बच्चों का पालनपोषण व चिकित्सा,-हर (वि.)
११७. स्पशति मां भृत्यभावेन कौटिल्यशिप्य:-मुद्रा० ७ । विवाह करने वाला, कन्या को पत्नी रूप में ग्रहण कौटुम्ब (वि.) (स्त्री०... बी) [कुटम्बं तद्भरणं भोजनमस्य करने वाला, य: कौमारहरः स एव हि वरः-काव्य १ । --- कुटम्ब+अण] किसी परिवार या गहस्थ के लिए कौमारकम् [कौमार+कन् बचपन, तारुण्य, किशोरावस्था आवश्यक, बम् पारिवारिक सम्बन्ध ।
.. कौमारकेऽपि गिरिवद्गुरुतां दधानः--उत्तर० ६॥ कौटुम्बिक (वि०) (स्त्री--की) | कुटुम्बे तद्भरणं प्रसृतः | १९। ....कूटम्ब+ठक | परिवार को बनाने वाला,-कः किसी कौमारिकः [कूमारी-ठक] वह पिता जिसकी सन्तान परिवार का पिता या स्वामी ।
लड़कियाँ ही हों। कोणपः कृणप- अण] पिशाच, राक्षस । सम० दन्तः | कौमारिकेयः (कुमारिका ढक्] अविवाहिता स्त्री का पूत्र । भीष्म का विशेषण ।
| कौमुदः [कुमुद -अण्] कार्तिक का महीना।। कौतुकम् [ कुतुक+अण् ] 1. इच्छा, कुतूहल, कामना | कौमुदी | कौमुद | डीप्] 1. चाँदनी-शशिना सह याति
2. उत्सुकता, आवेग, आतुरता 3. आश्चर्य जनक वस्तु कौमुदी कु० ४।३३, शशिनमपगतेयं कौमदी मेघ4. वैवाहिक कंगना-रघु० ८।१ 5. विवाह से पूर्व वैवा- मुक्तम् रघु० ६८५, (शब्द की व्यत्पत्ति--- को हिक कंगना बाँधने की प्रथा 6. पर्व, उत्सव 7. विशेष- मोदन्ते जना यस्यां तेनासौ कौमदी मता) 2. चाँदनी कर विवाह आदि शुभ उत्सव कु. ७।२५ 8. खुशी, का काम देने वाली कोई चीज अर्थात प्रसन्नता देने हर्प, आनन्द, प्रसन्नता . भर्त० ३.१४० 9. खेल, वाली तथा ठण्डक पहुँचाने वाली त्वमस्य लोकस्य च मनोविनोद 10. गीत, नत्य, तमाशा 11. हँसी, मजाक नेत्रकौमुदो कु० ५१७१, या कौमुदी नयनयोर्भवतः 12. बधाई, अभिवादन । सम० --आगारः, - रम् सुजन्मा मा० १२३४, तु० .. चंद्रिका 3. कार्तिक मास ...- गृहम आमोद-भवन कौतुकागारमागात् ...कु०७। की पूणिमा 4. अनाश्विन मास की पूणिमा 5. उत्सव ९४, -- क्रिया - मङ्गलम् 1. महान् उत्सव 2. विशेषतः 6. विशेषत: वह उत्सव जब घरों में, मन्दिरों में सर्वत्र विवाह-संस्कार रघु० १११५३, तोरण:-णम् उत्सव दीपावली होती है 7. (पुस्तकों के नामों के अन्त में)
के अवसरों पर बनाय गये मंगलसूचक विजय द्वार । व्याख्या, स्पष्टीकरण, प्रस्तुत विषय पर प्रकाश डालने कौतूहलम् (ल्यम्) कुतुहल+ अण, ष्यत्र वा] 1. इच्छा,
वाली . उदा०तकौमुदी, सांख्यतत्त्वकौमदी, सिद्धान्तजिज्ञासा, रुचि-विषयब्यावनकौतूहल: विक्रम० ११९,
कौमदी आदि। सम०-पतिः चन्द्रमा-वृक्षः दीवट। श० १ 2. उत्सुकता, उत्कण्ठा 3. कूतहलवर्धक, | कौमोदकी, कोमोदी कोः पृथिव्याः मोदकः =कुमोदक+ आश्चर्यजनक ।
अण+ डीप कुं पृथिवी मोदयति- कुमोद+अण्+ कौन्तिकः [कुन्तः प्रहणमस्य - ठा] भाला चलाने वाला, डीप विष्णु की गदा। नेजाबरदार।
कौरव (वि०) (स्त्री० वी) [ कुरु+अण् 1 कुरुओं से संबंध कौन्तेयः [कुन्त्याः अपन्यं ढक्| कुन्ती का पुत्र, युधिष्ठिर, भीम रखने वाला- क्षेत्र क्षत्रप्रधनपिशन कौरवं तद्भजेथाः और अर्जुन का विशेषण ।
-मेघ०४८,-व: 1. कुरु की सन्तान-मथ्नामि कौरवशतं कोप (वि०) (स्त्री० --पी) [कूप+अण] कुएँ से सम्बन्ध समरे न कोपात् - वेणी० १२१५ 2. कुरुओं का राजा।
रखने वाला या कुएँ से आता हुआ (जल आदि)। कौरव्यः [ कुरु---ण्य ] 1. कुरु की सन्तान-कौरव्यवंशदावेकौपीनम् [कप+खा। 1. योनि, उपस्थ 2. गुप्ताङ्ग, ऽस्मिन् क एष शलभायते---वेणी० १११९, २५, कौरव्ये
गुह्येन्द्रिय 3. लंगोटी -कौपीनं गतखण्डजर्जरतर कन्या कृतहस्तता पुनरियं देवे यथा सीरिणि–६।१२ 2. कुरुओं पुनस्तादृशी-भर्तृ० ३।१०१ 4. चिथड़ा 5. पाप, अनु- का शासक। चित कर्म।
| कौप्यः [ ग्रीक भाषा का शब्द ] वृश्चिक राशि ।
For Private and Personal Use Only