________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १२० ) समश्नीयात्--मनु० ६।१९, ११।२१९, 2. स्वाद | अशास्त्र (वि०) [न० ब०] जो धर्मशास्त्र के अनुकूल न लेना, अनुभव लेना, रस लेना-यथा फलं समश्नाति हो, पाखंड। सम-विहित,-सिद्ध जो धर्मशास्त्र –महा।
से अनुमोदित न हो। अशकुन:-नम् [न० त०] अशुभ या बुरा शकुन । अशास्त्रीय (वि.) [न० त०] शास्त्रविरुद्ध, विधि-विरुद्ध, अशक्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. कमजोरी, शक्तिहीनता | अनैतिक।
2. अयोग्यता, अक्षमता,-श्रमेण तदशक्या वा न गुणा- | अशित (भू० क० कृ०) [अश्+क्त] 1. खाया हुआ, तृप्त नामियत्तया----रघु० १०॥३२
2. उपभुक्त। अशक्य (वि.) [न० त०] असंभव, अव्यवहार्य। अशितनवीन (वि.) [अशितास्तृप्ताः गावोऽत्र] वह स्थान अशङ्क, अशङ्कित (वि.) [न० ब०, न० त०] 1. निर्भय जहाँ पहले मवेशी चरा करते थे, पशओं के चरने का
निश्शंक- प्रविशत्यशङ्कः ---हि० १६८१, 2. सुरक्षित, स्थान । दे० "आशितङ्गवीन"। सन्देह रहित ।
अशित्रः [अश्+इत्र] 1. चोर 2. चावल की आहुति । अशनम् अश् + ल्युट] 1. व्याप्ति, प्रवेशन 2. खाना, अशिरः [अश्+इरच] 1. आग 2. सूर्य 3. वायु 4 पिशाच,
खिलाना 3. स्वाद लेना, रस लेना 4. आहार-अशनं --रम् हीरा। घात्रा मरुत्कल्पितं व्यालानाम् –भर्तृ० ३।१०, | अशिरस् (वि०) [न० ब०] बिना सिर का-(पुं०) बिना (बहुधा विशेषण (बहुव्रीहि) समास के अन्त में 'खाने सिर का शरीर, कबंध, धड़, तना। वाला' 'जिसका भोजन है...') फलमूलाशन, हुताशन. | अशिव (वि.) [न० ब० ] 1. अशुभ, अमंगलकारी पवनाशन आदि ।
-अशिवा दिशि दीप्तायां शिवास्तत्र भयावहाः (रुरुदुः) अशना—[अशन मिच्छति:—अशन--क्य+क्विप्] खाने |
रामा० 2. अभागा, बदकिस्मत,--वम् 1. दुर्भाग्य, की इच्छा, भूख ।
बदकिस्मती 2. उपद्रव । सम०-आचार: 1. अनुअशनाया [अश नमिच्छति-अशन+क्यच... स्त्रियां भावे चित व्यवहार, आचरण की अशिष्टता 2. दुराचरण ।
अ] भूख, च्युताशनायः फलवद्विभूत्या-भट्टि० ३।४०. | अशिष्ट (वि.) [न० त०] 1. शिष्टतारहित, उजडू, 2.
अन्नाद्वाऽशनाया निवर्तते पानात्पिपासा-शत०। असंस्कृत, असभ्य, अयोग्य 3. नास्तिक, भक्तिशून्य 4. अशनायित, अशनायुक (वि.) [अशन + क्यच् (ना. जो किसी प्रामाणिक ग्रन्थ द्वारा सम्मत न हो 5 जो घा०)+क्त, पक्षे उकन] भूखा ।
किसी प्रामाणिक शास्त्र द्वारा विहित न हो। अशनिः (पु० स्त्री०) [अश्नुते संहति ---अश् + अनि] 1. | अशीत (वि.) [न० त०] जो ठंडा न हो, गर्म । सम०
इन्द्र का वज्र, शक्रस्य महाशनिध्वजम्-- रघु० ३।५६ | - करः,-रश्मिः सूर्य । 2. बिजली की चमक-अनुवनमशनिर्गतः -सिद्धा०, | अशीतिः (स्त्री० [निपातोऽयम् अस्सी (यह शब्द सदैव अशनिः कल्पित एव वेधसा रघु० ८।४७, अशनेर- स्त्रीलिंग एक व० में प्रयुक्त होता है चाहे इसका मतस्य चोभयोर्वशिनश्चांबुधराश्च योनयः--कू० । विशेष्य कुछ ही हो)। ४।४३, 3. फेंक कर मारेजाने वाला अस्त्र 4. अस्त्र को अशीर्षक (वि०)=दे० अशिरस् । नोक–निः (पु०) 1. इन्द, 2. अग्नि 3. बिजली से | अशचि (वि.)नि० ब०] 1. जो साफ न हो, गंदा, मलिन, पैदा हुई आग |
अपवित्र, सोऽशुचिः सर्वकर्मसू,-विलाप या मातम के अशब्द (वि.) [न० ब०] जो शब्दों में न कहा गया हो
अवसर पर 2. काला,-चिः (स्त्री०) न० त०] -किमर्थमशब्दं रुद्यते-का०६०, जो सुनाई न दे,-उदम्
1. अपवित्रता 2. अधः पतन । 1. अव्यक्त अर्थात् ब्रह्म 2. (सां० द० में) प्रधान या| अशुद्ध (वि० ) [न० त०] 1. अपवित्र 2. अशुद्ध, प्रकृति का आरम्भिक अणु - ईक्षते शब्दम्-शारी० गलत। १।१।
अशुद्धि (वि०) [न० ब०] 1. अपवित्र, मलिन 2. दुष्ट, अशरण (वि०) [न० ब०] असहाय, परित्यक्त, शरणरहित -डि: (स्त्री०) [न० त०] अपवित्रता, मलिनता ।
- बलवदशरणोऽस्मि-श० ६, इसी प्रकार अशरण्य'। | अशुभ (वि.) [न० ब०] 1. अमंगलकारी 2. अपवित्र, अशरीर (वि.) [न ब०] शरीररहित, बिना शरीर का मलिन (विप० शुभ) 3. अभागा, बदकिस्मत,--भम्
--र: 1. परमात्मा, ब्रह्म, 2. कामदेव, प्रेम का देवता 1. अमंगलता, 2. पाप 3. दुर्भाग्य, विपत्ति-नाथे 3. संन्यासी जिसने अपने सांसारिक संबंध त्याग कुतस्त्वय्यशुभं प्रजानाम्--रघु० ५।१३, । सम० दिये है।
उदयः अशुभ शकुन। अशरीरिन् (वि०) न० त०] शरीररहित, अपार्थिव, | अशन्य (वि.) [न० त०] 1. जो रिक्त या शून्य न हो 2.
स्वर्गीय (प्राय: वाणी, वाक आदि शब्दों के साथ)। । “परिचर्या किया गया, पूरा किया गया, निष्पादित
For Private and Personal Use Only