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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्र--,कहना बोलना, बात करना-भट्टि० 8185, -प्रत्यब्रवीच्चनम् --रघु० 2 / 42 वि-, 1. कहना, प्रति--, उत्तर में बोलना, उत्तर या जबाब देना बोलना-2. गलत कहना, मिथ्या बतलाना। | ब्लेकम् (नपुं०) फंदा, जाल, पाश / भः [भा+ड] 1. शुक्र ग्रह का नामान्तर 2. भ्रम, भ्रान्ति, / -पूर्बकम् (अव्य) भक्तिपूर्वक, सम्मानपूर्वक,--भाज आभास, भम् 1. तारा 2. नक्षत्र 3. ग्रह 4. राशि (वि.) 1. धर्मनिष्ठ, श्रद्धालु 2. दृढ़ अनुराग रखने 5. सत्ताइस की संख्या 6. मधुमक्खी। सम-ईनः, वाला, निष्ठावान्, श्रद्धाल,-मार्गः भक्ति की रीति ---ईशः सूर्य,-गणः,-- वर्ग: 1. तारापुंज, नक्षत्रपुंज अर्थात परमात्मा की उपासना (शाश्वत शान्ति और 2. राशिचक्र 3. ग्रहों का राशिचक्र में भ्रमण,-गोल: मोक्ष प्राप्ति की रीति 'भक्ति या उपासना' ही समझी तारामंडल, ---- चक्रम् - मण्डलम् राशिचक्र, - पतिः जाती है),... योगः सानुराग निष्ठा, श्रद्धापूर्वक उपा. चन्द्रमा,--सूचकः ज्योतिषी। सना, वादः अनुराग का विश्वास। भषिकका [?] शौंगुर / | भक्तिमत् (वि.) [ भक्ति+मतुप ] 1. उपासक, श्रद्धालु भक्त (भ० क० कृ०) [भज-+क्त] 1. विभक्त, नियती- 2. निष्ठावान्, स्वामिभक्त, अनुरागी। कृत निदिष्ट 2 विभाजित 3. सेवित, पजित 4. व्यस्त.. भक्तिल (वि.) [भक्ति+ला+क] स्वामिभक्त, दत्तचित्त 5. अनुरक्त, संलग्न, श्रद्धाल, निष्ठावान विश्वासपात्र (जैसे कि घोड़ा)। -भग० 9 / 34 6. प्रसाधित, (भोजन आदि) पक्व, | भक्ष (चुरा० उभ०-भक्षयति-ते, भक्षित) 1. खाना, दे० भज, ----क्तः पूजक, आराधक, उपासक, पुजारी निगलना--यथामिषं जले मत्स्यभक्ष्यते श्वापदैर्भुवि या दास, स्वामिभक्त नोकर-भक्तोऽसि मे सखा चेति --पंच०१ 2. उपयोग में लाना, उपभोग करना ----भग० 4 / 3, 9 / 31, १२३,--क्तम् 1. हिस्सा, 3. बर्बाद करना, नष्ट करना 4. काटना / भाग 2. भोजन-भर्तृ 0 3 / 74 3. उबाला हुआ चावल, भक्षः [ भक्ष +घञ ] 1. खाना 2. भोजन / भात -- उत्तर० 4.1 4. पानी में डाल कर पकाया भक्षक (वि.) (स्त्री-क्षिका) [ भक्ष+ण्वुल ] 1. खाने हआ कोई भी अन्न / सम०-अभिलाषः भोजन की वाला, निर्वाह करने वाला 2. पेट्र, भोजनभट्ट / इच्छा, भूख,- उपसाधकः रसोइया,-कंसः भोजन की | भक्षण (वि.) (स्त्री०-जी) [भक्ष् + ल्युट] खाने वाला, थाली....करः नाना प्रकार के गंध द्रव्यों से तैयार की निगलने वाला,-णम् खाना, खिलाना, जीविका गई घप,--कारः रसोइया,-छन्दम भूख,-वासः भोजन चलाना। मात्र पर दूसरों की सेवा करने वाला नौकर, जिसे भक्ष्य (वि.) [ भक्ष + ण्यत् ] खाने के योग्य, भोजन के सेवा के बदले केवल भोजन ही मिलता है-मन० लायक,-क्ष्यम कोई भी भोज्य पदार्थ, खाद्य पदार्थ, ८१४१५,---द्वेषः भोजन से अरुचि, मंदाग्नि,---मण्डः आहार, (आलं भी)--भक्ष्यभक्षकयोः प्रीतिविपत्ते रेव भात का मांड,-रोचन (वि.) भुख को उत्तेजित कारणम् हि० 1155, मनु० 11113 / सम० -- कारः करने वाला, वत्सल (वि.) अपने पूजक और भक्तों ('भक्ष्यकारः' भी) पाचक, रसोइयाँ। के प्रति कृपाल,-शाला 1. श्रोत-कक्ष (प्रार्थियों की | भगः [ भज+घ] 1. सूर्य के बारह रूपों में एक, सूर्य बात सुनने का कमरा) 2. भोजन-गृह / / 2. चन्द्रमा 3. शिव का रूप 4. अच्छी किस्मत, भाग्य, भक्तिः (स्त्री०) [भज+क्तिन्] 1. वियोजन, पृथक्करण, सुखद नियति, प्रसन्नता आस्ते भग आसीनस्य-ऐ० विभाजन 2. प्रभाग, अंश, हिस्सा 3. उपासना, अनु- ब्रा०, भगमिन्द्रश्च वायश्च भगं सप्तर्षयो ददुः--- याज्ञ० रक्ति, सेवा, स्वामिभक्ति-कु०७।३७, रघु० 2 / 63, श२८२ 5. सम्पन्नता, समद्धि 6. मर्यादा, श्रेष्ठता मुद्रा० 1115 4. सम्मान, सेवा, पूजा, श्रद्धा 5. विन्यास, 7. प्रसिद्धि, कीर्ति 8. लावण्य, सौन्दर्य 9. उत्कर्ष, व्यवस्था-रघु० 5 / 74 6. सजावट, अलंकार, श्रृंगार श्रेष्ठता 10. प्रेम, स्नेह 11. प्रेममय रंगरेलियाँ, केलि, --आबद्धमुक्ताफलभक्तिचित्रे-कु०७।१०,९४, रघु० आमोद 12. स्त्री की योनि-याज्ञ० 3388, मनु० 13259, 75, 15 / 30 7. विशेषण | सम-नम्र 9 / 237 13. सद्गुण, नैतिकता, धर्म की भावना (वि.) विनम्र अभिवादन करने वाला,-पूर्वम्, 14. प्रयत्न, चेष्टा i5. इच्छा का अभाव, सांसारिक For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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