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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 725 ) समुदाय 11. धर्म के माने हए चार वर्गों में सर्वप्रथम वर्ण का, एक पुरोहित का नामान्तर, ब्रह्मा नामक ऋत्विज़ (पुरुष- ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न- ब्राह्मणोऽस्य का सहायक / / मुखमासीत् - ऋ० 10 // 90 / 12, मालवि० 1131, ब्राह्मणी [ब्राह्मण+ङीष् ] 1. ब्राह्मण जाति की स्त्री 96) ब्राह्मण---जन्मना जायते शूद्रः संस्कारैद्विज 2. ब्राह्मण की पत्नी 3. प्रतिभा (नीलकंठ के मताउच्यते, विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय उच्यते, नसार 'बद्धि') 4. एक प्रकार की छिपकली 5. एक या-जात्या कुलेन वृत्तेन स्वाध्यायेन तेन च, प्रकार की भिरड़ 6. एक प्रकार का घास / सम. एभिर्य क्तो हि यस्तिष्ठेन्नित्यं स द्विज उच्यते) 2. पूरो- ---गामिन् (पुं०) ब्राह्मण स्त्री का प्रेमी। हित, ब्रह्मज्ञानी या धर्मशास्त्री 3. अग्नि का विशेषण | ब्राह्मण्य (वि०) [ ब्राह्मण+ध्या वा यत् ] ब्राह्मण के 4. वेद का वह भाग जो विविध यज्ञों के विषय में योग्य,—यः शनिग्रह का विशेषण, --ज्यम् 1. ब्राह्मण मन्त्रों के विनियोग तथा विधियों का प्रतिपादन करता की पदवी या दर्जा, पौरोहित्य या याजकीय वृत्ति, है, साथ ही उनके मूल तथा विवरणात्मक व्याख्या -सत्यं शपे ब्राह्मण्येन-मृच्छ० 5, पंच० 1166, मनु० को तत्संबंधी निदर्शनों के साथ जो उपाख्यानों के 3317,7 / 42 2. ब्राह्मणों का समुदाय / रूप में विद्यमान हैं, प्रस्तुत करता है। वेद के मन्त्रभाग ब्राह्मी [ब्राह्म+डीप् ] 1. ब्रह्म की मतिमती शक्ति 2. वाणी से यह बिल्कुल पृथक है 5. वैदिक रचनाओं का समूह की देवी सरस्वती 3. वाणी 4. कहानी, कथा जिसमें ब्राह्मण भाग सम्मिलित है (वेद के मंत्रों की 5. धार्मिक प्रथा या रिवाज 6. रोहिणी नक्षत्र 7. दुर्गा भाँति अपौरुषेय या श्रुति माना जाता है) प्रत्येक वेद का नामान्तर 8. ब्राह्मविवाह की विधि से परिणीता का अपना पृथक्-पृथक ब्राह्मण है, ये हैं - ऋग्वेद के स्त्री 9. ब्राह्मण की पत्नी 10. एक प्रकार की बूटी ऐतरेय या आश्वलायन, और कौशीतकी या सांख्यायन 11. एक प्रकार का पीपल 12. नदी का नामान्तर / ब्राह्मण है, यजुर्वेद का शतपथ, सामवेद का पंचविंश, सम० --- कन्दः वाराही कंद,-पुत्रः ब्राह्मी का पुत्र-दे० षडर्विश तथा छ: और है, अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण ऊ०, मनु० 3 / 27,37 / / है)। सम०--अतिक्रमः ब्राह्मणों के प्रति सदोष या बाहम्य (वि.) (स्त्री०-हम्यी) [ब्रह्मन् व्य] 1. ब्रह्मा तिरस्कार सूचक व्यवहार, ब्राह्मणों का अनादर 'अर्थात् विधाता से संबंध रखने वाला 2. परमात्मा से ----ब्राह्मणातिक्रमत्यागो भवतामेव भूतये महावीर० संबद्ध 3. ब्राह्मणों से संबद्ध,--माघम् आश्चर्य, अचम्भा २।८०,-अपाश्रयः ब्राह्मणों की शरण में जाना, विस्मय / सम० महतं ब्राह्ममुहर्त,-हुतम् अतिथि"-अभ्युपपत्तिः (स्त्री०) ब्राह्मण की रक्षा या पालन- सत्कार दे० 'ब्रह्मयज्ञ'। पोषण, ब्राह्मण के प्रति प्रदर्शित कृपा - मनु० 9 / 87, (वि.) [+क] बनने वाला, बहाना करने वाला, --ध्नः ब्राह्मण की हत्या करने वाला,-जातम्,-जातिः अपने आपको उस नाम से पुकारने वाला जो उसका (स्त्री०) ब्राह्मण की जाति, जीविका ब्राह्मण के लिए वास्तविक नाम न हो, (समास के अन्त में) यथा विहित वृत्ति के साधन,-- द्रव्यम्,--स्वम् ब्राह्मण की ब्राह्मणब्रुव, क्षत्रियब्रुव में। संपत्ति, निन्दकः ब्राह्मणों की निन्दा करने वाला, बू (अदा० उभ० ब्रवीति-ब्रूते या आह) (आर्धधातुक -ब्रुवः जो ब्राह्मण होने का बहाना करता है, नाम लकारों में इस धातु में असाधारण परिवर्तन होता मात्र का ब्राह्मण जो ब्राह्मण जाति के विहित कर्तव्यों है, इसके रूप 'वच्' धातु से बनाये जाते हैं) 1. कहना का पालन नहीं करता है -- बहवो ब्राह्मणब्रुवा निवसन्ति बोलना, बात करना (द्विकर्मक धा०) तांब्या दश०, मनु० 785, 8 / 20,- भूयिष्ठ (वि०) जिसमें एवम् - मेघ० 104, रामं यथास्थितं सर्वं भ्राता ब्रते अधिकतर ब्राह्मण ही रहते हों, वधः ब्राह्मण की स्म विह्वल: .... भट्टि० 618, या माणवकं धर्म ब्रूते - हत्या, ब्रह्महत्या, संतर्पणम् ब्राह्मणों को खिलाना सिद्धा०, किं त्वां प्रतिब्रूमहे-भामि० 1146 2. कहना, या तृप्त करना। बोलना, संकेत करना (किसी व्यक्ति या वस्तु की ब्राह्मणकः [ ब्राह्मण+कन् ] 1. अयोग्य या नीच ब्राह्मण, ओर)-अहं तु शकुन्तलामधिकृत्य ब्रवीमि - श० नाम मात्र का ब्राह्मण 2. एक देश का नाम जहाँ 2, 3. घोषणा करना, प्रकथन करना, प्रकाशित करना, योद्धा ब्राह्मणों का वास हो। सिद्ध करना ... ब्रुवते हि फलेन साधको न तु कण्ठेन ब्राह्मणत्रा (अव्य०) [ब्राह्मण+त्राच् ] 1. ब्राह्मणों में निजोपयोगिताम् नै० 2 / 46, रत्न० 2 / 13 4. नाम 2. ब्राह्मण की पदवी को-जैसा कि 'ब्राह्मणात् भवति लेना, पुकारना, नाम रखना, - छंदसि दक्षा ये कवयधनम्' में। स्तन्मणिमध्यं ते ब्रुवते--श्रुत० 15 5. उत्तर देना ब्राह्मणाच्छंसिन् (पुं०)[ब्राह्मणे विहितानि शास्त्राणि शंसति / -ब्रूहि मे प्रश्नान्, अनु. कहना, बोलना, घोषणा द्वितीयाथे पंचम्युपसंख्यानम्-अलुक् स०, शंस्-+ इनि ] | करना, निस्,-व्याख्या करना, व्युत्पत्ति बतलाना, 2, 3. पोजह तु शकत किसी व्यक्ति For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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