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( २९८ )
सही, उचित, उपयुक्त 2. युक्तियुक्त, व्यवहार्य 3. जो राजभक्ति से पथभ्रष्ट किया जा सके, विश्वासघाती - राजत० ५।२४७, त्यम् 1. जो किया जाना चाहिए, कर्तव्य, कार्य - मनु० २।२३७७ ६७ 2. कार्य, व्यवसाय, करनी, कार्यभार - बन्धुकृत्यम् मेघ० ११४, अन्योन्यकृत्यैः -- श० ७ ३४ 3. प्रयोजन, उद्देश्य, लक्ष्य - कूजद्भिरापादितवं शकृत्यम् - रघु० २११२, कु० ४। १५ 4. मंशा, कारण, स्यः कर्मवाच्य के कुदन्त के संभावनार्थक प्रत्ययों का समूह - नामतः तव्य, अनीय य और एलिम, स्पा 1. कार्य, करनी 2. जादू 3. एक देवी जिसकी यज्ञादि के द्वारा पूजा इसलिए की जाती हैं कि विनाशकारी और जादू टोनों के कार्यों में सिद्धि प्राप्त हो ।
कृत्रिम (वि० ) [ कृत्या निर्मितम् - कृ + क्ति + मपू] 1. बनावटी, काल्पनिक, जो स्वतः स्फूर्त या मनमाना न हो, अजित 'मित्रम्, शत्रु: आदि, रघु० १३।७५, १४१३७ 2. गोद लिया हुआ (बच्चा) - दे० नी०, मः, पुत्रः नकली या गोद लिया हुआ पुत्र, हिन्दूधर्म में माने हुए १२ पुत्रों में से एक, गोद लिया हुआ ऐसा वयस्क पुत्र जिसके पिता की स्वीकृति गोद लेते समय न ली गई हो, तु० कृत्रिमः स्यात्स्वयं दत्तः -- याज्ञ० २११३१, तु० मनु० ९।१६९ से भी, मम् 1. एक प्रकार का नमक 2. एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य । सम०-धूपः, -धूपकः, एक प्रकार का सुगन्ध द्रव्य, धूप--पुत्रः दे० कृत्रिमः, - पुत्रकः गुड्डा, पुत्तलिका कु० १।२९, भूमिः (स्त्री) बनाया हुआ फर्श, वनम् वाटिका, उद्यान । prat (अव्य० ) एक प्रत्यय जो संख्यावाचक शब्दों के साथ 'तह' और 'गुणा' अर्थ को प्रकट करने के लिए जोड़ा जाता है--उदा० अष्टकृत्व:- आठगुणा, आठ तह का इसी प्रकार दश, पंच आदि ।
कृत्सम् [कृत्+स, कित्] 1. जल 2. समूह, त्सः पाप । कृत्स्न ( वि० ) [ कृत् + वस्न] सारे, सम्पूर्ण समस्त एक: कृत्स्नां नगरपरिघप्रांशुबाहुर्भुनक्ति श० २।१५ भग० ३।२९, मनु० १।१०५, ५।४२ । कृन्तत्रम् [कृत् + क्तून्, नुमागमः ] हल | कृन्तनम् [कृत् + ल्युट् ] काटना, काट कर फेंक देना, बिभक्त करना, फाड़ कर टुकड़े २ करना । .
कृपः [कृप + अच्] अश्वत्थामा का मामा (कृप और कृपी दोनों भाई बहन शरद्वत् ऋषि की सन्तान थे, इनकी माता जानपदी नाम की अप्सरा थी । कृप का पालन पोषण शन्तनु ने किया था । विद्या में बड़ा निपुण था, महाभारत के युद्ध में वह कौरव पक्ष की ओर से लड़ा और अन्त में मारा गया । पाण्डवों ने उसे शरण दी । वह सात चिरंजीवियों में से एक है) कृपण (वि० ) [ कृप - क्युन् न स्यणत्वम् ] 1. गरीब, दयनीय,
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अभागा, असहाय - राजन्नपत्यं रामस्ते पाल्याश्च कृपणाः प्रजाः - उत्तर० ४।२५ 2. विवेकशून्य, किसी कार्य को करने या विवेचन करने के अयोग्य अथवा अनिच्छुक, कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनेषु मेघ० ५, इसी प्रकार राजश्वर्य प्ररान गह्नाक्षेपकृपणः भर्तृ० ३।१७ ३. तोच, अधम, दुष्ट-भग० २१४९ मुद्रा० २। १८, भर्तृ० २।४९ 4. यूम, कंजूस, ण दुर्दशा, णः सूम, कृपणेन समो दाता भुवि कोऽपि न विद्यते, अनइन वितानि यः परेभ्यः प्रयच्छति व्यास | सम० धोः, बुद्धिः छोरी दिल का, नीच मन का, वत्सल (वि०) दीनदयालु |
कृपा [ ऋ + भिदा० अङ +टाप्, संप्र०, ] रहम, दयालुता, करुणा - चक्रवाकयोः पुरो वियुक्ते मिथुने कृपावती
कु० ५।२६, शा० ४।१९, सकृपम् कृपा करके । कृपाः [कृपां नुदति--नुद् | ड संज्ञायां णत्वम्- तारा०]
1. तलवार, स पातु वः कंसरिपोः कृपाण:- विक्रम ० १११, कृपणस्य कृपाणस्य च केवलमाकारतो भेदः -- सुभा० 2. चाकू ।
कृपाणिका ( कृपाण - कन् + टाप, इत्वम्] बछ, छुरी । कृपाणी [ कृपाण + ङीष् ] 1. कैच 2. बल । कृपालु (वि० ) [ कृपां लाति कृपा + ला आदाने मि० डु] दयालु, करुणापूर्ण, सदय ।
कृपी
[कृप । ङीष् ] कृप की बहन तथा द्रोण की पत्नी । सम० - पतिः द्रोण का विशेषण, - सुतः अश्वत्थामा का विशेषण | कृपीटम् [कृप् + कीटन् ] 1. तलझाड़ियाँ, जंगल की लकड़ी
2. वन, जलाने की लकड़ी 3. पानी 4. पेट | सभ० - पाल: 1. पतवार 2. समुद्र 3. वायु, हवा । सम० योनि अग्नि ।
कृति ( वि० ) [ क्रम्+इन्, अत इत्वम् संप्र० ] 1. कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त कृमिकुलचितम् भर्तृ २९ 2. कीड़े (रोग) 3. गधा 4. मकड़ी 5 लाख ( रंग ) 1 सम० ---कोश:, - कोप:, रेशम का कोया, उत्थम् मी कपड़ा, जम्, जग्धम् अगर की लकड़ी, जा लाख कीड़ों द्वारा उत्पादित लाल रंग, जलज, वारिरुहः घोंघा, सीपी में रहने वाला कीड़ा, पर्वतः शैलः बांबी, - फलः गूलर का पेड़ - शङ्खः शंख के भीतर रहने वाली मछली, शुक्तिः (स्त्री० ) 1. दोहरी पीठ वाला घोंघा 2. सीपी में रहने वाला कीड़ा 3. घोंघा । कृमिण, कृमिल ( वि० ) [ कृमि +न, ल वा णत्वम् ] कीड़ों से भरा हुआ, कीटयुक्त ।
कृमिला [ कृमि + ला + क +टाप्] बहुत सन्तान पैदा करने वाली स्त्री ।
कृश् ( दिवा० पर० - कृश्यति, कृश ) 1. दुर्बल या क्षीण होना 2. ( चन्द्रमा की भांति ) उतरोत्तर हास होना ( प्रेर०) दुर्बल करना ।
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