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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३३६ ) जाना, प्राप्त करना, अभिग्रहण करना, हासिल करना - यत्र दुःखान्तं च निगच्छति - भग० १८/३६, ९/३१ 2. ज्ञान प्राप्त करना, सीखना, निस् (निर्) --, 1. बाहर जाना, जुदा होना- प्रकाश निर्गतः श० ४, हुतवहपरिखेदादाशु निर्गत्य कक्षात् - ऋतु० १।२७, मनु० ९१८३, श० ६।३, अमरु ६१ 2. हटाना, जैसा कि - 'निर्गतविशङ्कः' में 3. ( किसी रोग से चिकित्सा द्वारा ) मुक्त होना परा- 1. वापिस आना, तदयं परागत एवास्मि - उत्तर० ५ 2. घेरना, लपेटना, व्याप्त करना- स्फुटपरागपरागतपङ्कजम् - शि० ६२, परि- 1. जाना, चक्कर लगाना, तं हयं तत्र परिगम्य- रामा०, यथा हि मेरुः सूर्येण नित्यशः परिगम्यते - महा० 2. घेरना, शि० ९२६, भट्टि० १० १, सेनापरिगत आदि 3. सर्वत्र फैलना, सब दिशाओं में व्याप्त होना 4 प्राप्त करना - वृषलताम् -- आदि 5. जानना, समझना, सीखना रघु० ७।१७१ 6. मरना, ( इस संसार से ) चले जाना - वयं येभ्यो जाताश्चिरपरिगता एव खलु ते भर्त० ३१३८ 7 प्रभावित करना, ग्रस्त करना, जैसा कि - क्षुधया परिगत: --- में, पर्या, 1. निकट जाना, की ओर जाना 2. पूरा करना, समाप्त करना 3. जीतना, अभिभूत करना, प्रति--, 1. वापिस जाना 2. बढ़ना, की ओर जाना प्रत्या--, वापिस आना, लौट आना प्रत्युद् ---, ( सत्कार करने के लिए) आगे जाना, बढ़ना या मिलना - प्रत्युज्जगामा तिथिमातिथेयः -- रघु० ५/२, प्रत्युद्गच्छति मूर्छति स्थिरतमः पुजे निकुञ्ज प्रियः गीत० ११, भामि० ३।३, वि-, ( समय आदि का ) 1. बीत जाना, - सन्ध्ययापि सपदि व्यगमि-शि० ९।१७ 2. ओझल होना, अन्तर्धान होना- सलज्जाया लज्जापि व्यपगमदिव दूरं मृगदृशः- गीत० ११, भग० ११ १, मनु०३/२, ५९, ( प्रेर०) व्यतीत करना, बिताना -- विगमयत्यन्ति एव क्षपाः श० ६।५, विनिस्-, 1. बाहर जाना 2. अन्तर्धान होना, ओझल होना विप्र अलग होना सम्--, ( आ० में प्रयुक्त) 1. मिल जाना, इकट्ठे चलना, मिलना, मुकाबला करना -- अक्षधूर्तेः समगंसि दश०, एते भगवत्यौ कलिन्दकन्यामन्दाकिन्यौ संगच्छेते - अनघं ० ७ 2. सहवास करना, संभोग करना - भार्या च परसंगता - पंच० १।२०८, मनु० ८ ३७८, ( प्रेर० ) इकट्ठा करना, मिलाना या एकत्र करना - रघु० ७।१७. समधि-, 1. निकट पहुंचना 2. अध्ययन करना 3. प्राप्त करना, अभिग्रहण करना यत्ते समधिगच्छन्ति यस्यैते तस्य तद्धनम् - मनु० ८।४१६, समय पूरी तरह से जान लेना, समुपा, 1. पास पहुँचना 2. आ पड़ना । गम ( वि० ) [ गम् + अप् ) ( समास के अन्त में) जाने वाला, हिलने-जुलने वाला, पास जान वाला, पहुँचाने Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला, प्राप्त करने वाला, हासिल करने वाला आदि खगम, तुरोगम, हृदयंगम आदि मः 1. जाना, हिलना-जुलना 2. प्रयाण करना - अश्वस्यै कागमः 3. आक्रमणकारी का कूच करना 4. सड़क 5. अविचारिता, विचारशून्यता 6. ऊपरीपन, अटकलपच्चू निरीक्षण 7. स्त्री-संभोग, सहवास -- गुर्वङ्गनागमः- मनु० ११५५, याज्ञ० २।२९३ 8. पासे आदि का खेल । सम० आगमः आना-जाना । गमक ( वि० ) ( स्त्री०-मिका ) [ गम् + ण्वुल् ] 1. संके तक, सुझाव देने वाला, प्रणाम, अनुक्रमणी - तदेव गमकं पाण्डित्य वैदग्ध्ययो: मा० १७ 2 विश्वासोत्पादक । गमनम् [ गम् + ल्युट् ] 1. जाना, गति, चाल -- श्रोणीभारादलसगमना मेघ० ८२, इसी प्रकार गजेन्द्रगमने श्रृंगार० ७ 2 जाना, गति ( वैशेषिक इसे पाँच कमों में से एक कर्म समझते हैं ) 3. निकट पहुँचना, पहुँचना 4. अभियान 5. अनुभव करना, भुगतना 6. प्राप्त करना, पहुँचना 7. सहवास । गमिन् ( वि० ) | गम | इनि । जाने के विचार वाला जैसा कि 'ग्रामगमी' (पुं०) यात्री । गमनीय, गम्य (सं० कृ० ) [ गम् + अनीयर्, यत् वा | 1. सुगम, --. उपागम्य विकारस्य गमनीयास्मि संवृत्ता० १ 2. सुबोध, आसानी से समझ में आने योग्य 3. अभिप्रेत, निहित, अर्थयुक्त 4. उपयुक्त, वाञ्छित, योग्य - याज्ञ० १०६४ 5. सहवास के योग्य, दुर्जनगम्या नार्य:- पंच० १ २७८, अभिकामां स्त्रियं यश्च गम्यां रहसि याचितः, नोपैति - महा० 6. ( औषधि आदि से) उपचार योग्य-न गम्यो मन्त्राणाम् भर्तृ० ११८९ । गम्भारिका, गम्भारी [गम् + विच्गम्, तं रामं निम्नर्गात बिभर्ति - गम् + भृ + ल् + टाप्, इत्वम्, गम् भृ + अण् ङीष् ] एक वृक्ष का नाम । गम्भीर (वि० ) [ गंभीर ] रघु० ११३६, मेघ० ६४, ६६,--र: 1. कमल 2. जंबीर, नींबू । सम० – वेदिन् (वि०) (हाथी की भांति) दुर्दान्त, अड़ियल । गम्भीरा, गम्भीरका [गम्भीर + टापू, गम्भीर+कन् + टापु, इत्वम् ] एक नदी का नाम गम्भीरायाः पयसि - मेघ० ४० । गय: 1. गया प्रदेश तथा उसके आस पास रहने वाले लोग 2. एक राक्षस का नाम, या बिहार में एक नगर जो एक तीर्थ स्थान है । गर ( वि० ) ( स्त्री० री) [ गीर्यते गृ+ अच् ] निगलने वाला, रः 1. पेय, शरबत 2. बीमारी, रोग 3. निगलना ('गरा' का भी यही अर्थ है. रः रम् 1. ज़हर 2. विषनाशक औषधि, रम् छिड़कना, तर For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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