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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३३५ फिरना - गच्छतु आर्या पुनर्दर्शनाय - विक्रम० ५, ! -गच्छति पुरः शरीरं धावति पश्चादसंस्तुतं चेतः श० १।३४, क्वाधुना गम्यते -अब आप कहाँ जा रहे हैं ? 2. बिदा होना, चले जाना, दूर जाना, खाना होना, प्रस्थान करना -- उत्क्षिप्येनां ज्योतिरेकं जगाम श० ५।३० 3. जाना, पहुँचना, सहारा लेना, आ जाना, समीप आना - यदगम्योऽपि गम्यते पंच० १७, एनो गच्छति कर्तारम् मनु०८।१९, पाप पापी पर भंडलाता है -४११९, इसी प्रकार - धरण मूर्ध्ना गम् --- आदि 4. गुजरना, बीतना, ( समय का ) व्यतीत होना काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम् - हि० १११, गच्छता कालेन अनन्त: 5 अवस्था या दशा को प्राप्त होना, होना, अनुभव करना, भुगतना, भोगना ( प्रायः तान्त और त्वान्त संज्ञाओं के साथ अथवा कर्म की संज्ञा के साथ जुड़ता है ) गमिष्याम्युपहास्यतां रघु० ११३, पश्चादुमाख्यां सुमुखी जगाम - कु० ११२६, उमा नामवाली हुई, इसी प्रकार तृप्ति गच्छति तृप्त हो जाता है, विषाद गतः - - - उदास हो गया, कोपं न गच्छति क्रुद्ध नहीं होता है; आनुष्यं गतः तृण से मुक्त हो गया 6. सहवास करना, मैथुन करना - गुरोः सुता यो गच्छति पुमान्- पंच० २१०७, याज्ञ० ११८०, प्रेर०- 1. भिजवाना, पहुँचाना, (दशा को ) प्राप्त होना 2. उपयोग करना, ( समय की भांति ) बिताना 3. स्पष्ट करना, व्याख्या करना, विवरण देना 4. अर्थ बतलाना, संकेत करना, विचार व्यक्त करना - द्वौ नत्र प्रकृतार्थं गमयतः - 'दो नकार एक सकारात्मक अर्थ को प्रकट करते हैं' अति- दूर जाना, बीत जाना, अधि- 1. अभिग्रहण करना, अवाप्त करना, ले लेना-अधिगच्छति महिमानं चन्द्रोऽपि निशापरिगृहीतः - मालवि० १।१३, खनन्वार्यधिगच्छति मनु० २।२१८, ७३३ भग० २६४, रघु० २६६, ५१३४ 2. निष्पन्न करना, सुरक्षित करना, पूरा करना---अर्थं सप्रतिबंधं प्रभुरधिगन्तु सहायवानेव - मालवि० १।९ 3. समीप जाना, की ओर जाना, पहुँचना, पैठ रखना- गुणालयोऽप्यसन्मन्त्री नृपतिर्नाधिगम्यते पंच० १ ३८४ 4. जानना, सीखना, अध्ययन करना, समझना, तेभ्योऽधिगन्तुं निगमान्त विद्याम् उत्तर० २२३, कि० २१४१ मनु० ७ ३९, याज्ञ० १।९९ 5 विवाह करना, ( पति के रूप में) ग्रहण करना - मनु० ९१९१ अध्या, प्राप्त करना, होना, घटित होना, अनु 1. मिलना-जुलना, पीछे ! चलना, साथ चलना-ओदकान्तात् स्निग्धो जनोऽनुगन्तउप: श० ४, मार्ग मनुष्येश्वरवर्मपत्नी श्रुतेरिवार्थ स्मृतिरन्वगच्छत् रघु ) कि १.२ ११५: प्रच० २०७२ मनु० का ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर देना -- आस्फालितं यत्प्रमदाकरा मृदङ्गधीरध्वनिमन्वगच्छत् रघु० १६।१३, कि० ४१३६, अन्तर, बीच में जाना, सम्मिलित होना, अन्तहित होना, दे० अन्तर्गत अप, 1. दूर चले जाना, जुदा हो जाना, ( समय आदि की भांति ) बीत जाना - पंच० ३१८ 2. ओझल होना, अन्तर्धान होना, से चले जाना; अभि--, निकट जाना, समीप होना, दर्शन करना-एनमभिजग्मुर्ग हर्षयः रघु० १५/५९, कि० १०/२१, - मनुमेकाग्रमासीनमभिगम्य महर्षयः- मनु० १११ 2. मिलना, ( अकस्मात् या संयोग से) घटित होना 3. सहवास करन्म, मैथुन करना - याज्ञ० २।२०५, अभ्या - 1. समीप आना, पहुँचना, निकट आना--सर्वत्राभ्यागती गुरु: - हि० १।१०८ 2. प्राप्त करना, हासिल करना, अभ्युद्, 1. उठना, ऊपर जाना 2. की ओर जाना, मिलने के लिए आगे बढ़ना, अभ्युप, सहमत होना, स्वीकार करना, जिम्मेवारी लेना, मानना, मंजूर करना, अपनाना, अव , 1. जानना, सोखना, विचारना, समझना, विश्वास करना परस्तादवगम्यत एव - श० १, कथं शान्तनित्यभिहिते श्रान्त इत्यवगच्छति मूर्ख :- मृच्छ० १, भग० १०१४१, रघु० ८।८८, भट्टि० ५८१ 2. विचार करना, मानना, समझना ( प्रेर० ) वहन करना, प्रकट करना, संकेत करना, जाहिर करना, कहना भट्टि० १०/६२, आ-, 1. आना, पहुँचना 2. आ जाना, प्राप्त करना, (विशेष दशा को ) पहुँच जाना ( प्रेर0) 1. ले जाना, लाना, बहन करना-- आगमितापि विदूरम् गीत० १२ 2 सीखना, अध्ययन करना- रघु० १०/७१, 3. प्रतीक्षा करना (आ० ), उद् , उठना, ऊपर जाना - असह्य वातोद्गत रेणु मण्डला ऋतु० १।१० अ० पा० 2. अंकुर फूटना, दिखाई देना विक्रम ० ४।२३ 3. उदय होना, निकलना, पैदा होना, जन्म लेना इत्युद्गताः पौरवधूमुखेभ्यः शृण्वन् कथा :- रघु० ७।१६, अमरु ९१4. प्रसिद्ध या विख्यात होना- रघु० १८/२०, उप, 1. जाना, निकट जाना, प्राप्त करना, पहुँचना -- रघु० ६।८५ 2. पैठना, अन्दर घुसना शि० ९१३९ 3. अनुभव करना, भुगतना - तपो घोरमुपागमत् - रामा० 4. अवस्था को प्राप्त होना, प्राप्त करना, अभिग्रहण करना प्रतिकूलतामुपगते हि विधी - शि० ९ ६ तानप्रदायित्वमित्रोपगन्तुम्कु० ११८ 5. मान लेना, स्वीकृति देना, सहमत होना 6. संभोग के लिए स्त्री के निकट जाना सुप्तां मत्तां प्रमत्तां वा रहो यत्रोपगच्छति मनु० ३ ३४, ४१४०, उपा, 1. आ जाना, पहुँचना ( स्थान पर या व्यक्ति के पास ) 2. पहुँच जाना, अवस्था को चले जाना, प्राप्त करना तृप्तिमुपागतः, पञ्चत्वमुपागतः आदि होतात, प्राप्त करना-याज्ञ० ३।१४३, नि-, 1 पहुँच For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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