________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 957 ) विशेषः-भर्त० 3150 3. विशिष्टतायुक्त अन्तर, श्लोकों का समूह जो व्याकरण की दृष्टि से एक ही अनोखा चिल्ल, विशेष गुण, विशे षता, वैशिष्ट्य,प्रायः वाक्य बनता है द्वाम्यां युग्ममिति प्रोक्तं त्रिमिः समास में प्रयुक्त तथा विशिष्ट' और अजीब' शब्दों श्लोकविशेषकम्, कलापकं चतुभिः स्यात्तदूर्ध्व कुलकं से अनूदित - श०६।६ 4. अच्छा मोड़, रोग में मोड़, स्मतम् / अर्थात् अपेक्षाकृत अच्छा परिवर्तन --अस्ति मे विशेषः / विशेषण (वि०) [वि+शिष- ल्युटु ] गुणवाचक, - णम् ----- श० 3, 'अब अपेक्षाकृत अच्छा है' 5. अवयव, 1. विभेदन, विवेचन 1. प्रभेदन, अन्तर 3. वह शब्द अंग पुपोष लावण्यमयान् विशेषान् - कु० 125 जो किसी दूसरे शब्द की विशेषता प्रकट करता है, 6. जाति, प्रकार, प्रभेद, भेद, ढंग (प्रायः समास के अंत गुणवाचक शब्द, गुण, विशेषता, (विप० विशेष्य), में)-भूतविशेषः उत्तर० 4, परिमलविशेषान् पंच० (विशेषण तीन प्रकार का बताया जाता है ---व्यावर्तक, 1, कदलोविशेषाः कु० 1136 7. विविध उद्देश्य, विधेय और हेतुगर्भ) 4. प्रभेदक लक्षण या चिह्न, नाना प्रकार के विवरण (ब०व०) --मेघ० 58, 5. जाति, प्रकार। 64 8. उत्तमता, श्रेष्ठता, भेद, प्रायः समास के | विशेषतस् (अव्य०) [विशेष-तस् ] विशेष रूप से, अन्त में, उत्तम, पूज्य, प्रमुख, उत्कृष्ट . अनुभाव- खास तौर से। विशेषात्तु रधु० 1137, वविशेषेण कु० 531, विशेषित (भू० क० कृ०) [वि+शिष्-+ णिच्+क्त ] रघु० 2 / 7, 6 / 5, कि० 9 / 58, इसी प्रकार आकृति ___ 1. विलक्षण 2. परिभाषित, जिसके विवरण बता दिये विशेषाः 'उत्तम रूप' अतिथिविशेष: 'पूज्य अतिथि' ! गए हों 3. विशेषण के द्वारा जिसकी भिन्नता दर्शा दी आदि 9. अनोखा विशेषण, नौ द्रव्यों में से प्रत्येक की | गई हो 4. श्रेष्ठ, बढ़िया। शाश्वत विभेदक प्रकृति 10. (तकं० में) वैयक्तिकता विशेष्य (वि०) [वि+शिष्+ण्यत् ] 1. विलक्षण होने (विप० सामान्य) अनठापन 11. प्रवर्ग, वर्ग के योग्य 2. मुख्य, बढ़िया, -ध्यम् वह शब्द जिसे 12. मस्तक पर चन्दन या केसर का तिलक 13. वह विशेषण के द्वारा सीमित कर दिया गया हो, वह शब्द जो किसी अन्य शब्द के अर्थ को सीमित कर पदार्थ जो किसी दूसरे शब्द द्वारा परिभाषित, या देता है, दे० विशेषण 14. ब्रह्मांड का नाम 15. (अलं० / विशिष्ट कर दिया गया हो, संज्ञाशब्द,-- विशेष्यं में) एक अलंकार का नाम जिसके तीन भेद बताये नाभिधा गच्छेत्क्षीणशक्तिविशेषणे ---काव्य० 2 / गये हैं, मम्मट ने इसकी परिभाषा यह दी है:-विना विशोक (वि०)[विगतः शोको यस्य प्रा० ब०] शोक प्रसिबमाघारमाधेयस्य व्यवस्थितिः, एकात्मा युगपद से मुक्त, प्रसन्न, -क: अशोक वृक्ष, का शोक से वृत्तिरेकस्यानेकगोचरा। अन्यत्प्रकुर्वतः कार्यमशक्या- छुटकारा। न्यस्य वस्तुनः, तथैव करणं चेति विशेषस्त्रिविधः | विशोधनम् [वि+शुध+ल्युट् ] 1. शुद्ध करना, स्वच्छ स्मृतः काव्य० 10 / सम०--अतिवेशः विशेष करना (आलं० से)-राज्यकंटक विशोधनोद्यतः --- अतिरिक्त नियम, विशेष विस्तारित प्रयोग,---उक्तिः विक्रम० 5.1 2. पवित्रीकरण, निष्पाप या दोषरहित (स्त्री०) एक अलंकार जिसमें कारण के विद्यमान | होना 3. प्रायश्चित्त, परिशोधन / रहते हुए भी कार्य का होना नहीं पाया जाता | विशोध्य (वि.) [ विशघ---ण्यत् ] पवित्र किये जाने ... विशेषोक्तिरखंडेषु कारणेष फलावचः काव्य. / के योग्य, निर्मल या शुद्ध किये जाने के योग्य / 10, उदा० हृदि स्नेहक्षयो नाभूत्स्मरदीपे ज्वलत्यपि, विशोषणम् | वि+शुष्+ल्युट ] सुखाना, शुष्कीकरण / ज्ञ, विद् (वि०) 1. भेदों को जानने वाला, विपणनम्, विश्राणनम् | वि+श्रण + ल्युट्, पक्षे णिच् ] गुणवोपविबेचक, पारखी 2. विद्वान, बुद्धिमान् भर्त० / प्रदान करना, समर्पण करना, अनुदान, उपहार, दान२२३, लक्षणम्,-लिंगम् विशेष या लक्षणदर्शी चिह्न, विश्राणनाच्चान्यपयस्विनीनाम् / रघु० 2 / 54 / -- वचनम् वि पाठ या विधि,-विधिः,-शा स्त्रम् विभब्ध (भ० क.कृ) (विसब्ध भी) [वि+धम्भ+ विशेष नियम। क्त] 1. बन्द किया गया, विश्वास किया गया, सौंपा विशेषक (वि०) [वि-|-शिष+ण्वल ] प्रभेदक, कः, गया 2. विस्वस्त, निडर, भरोसा करने वाला - मुद्रा० .. कम् 1. एक प्रभेदक विशिष्टता या लक्षण विशेषण 3 / 3 3. विश्वसनीय, भरोसे का 4. निश्चल, सौम्य, 2. चन्दन या केसर का माथे पर लगा तिलक शान्त, निश्चिन्त 5. दृढ़, स्थिर 6. नम्र, विनीत 7. ----मालवि० 3.5 3. रंगीन उबटन तथा अन्य सुगंधित अत्यधिक, बहुत ज्यादह,- धम् (अव्य०) विश्वासपदार्थो से मुख या शरीर पर रेखांकन करना-स्वेदोदगमः पूर्वक, निर्भीकता के साथ, बिना डर व संकोच के . . किंपुरुषांगनानां च पदम् पत्रविशेषकेषु-कु० 3 / 33, विश्रब्धं क्रियतां वराहततिभि: मस्ताक्षतिः पल्वले रघु० . 9 / 29, शि० 3163, 10 / 14, कम् सीन | ..-श०१६ / For Private and Personal Use Only