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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1338 ) विभिद् ( रुघा० उभ० ) अतिक्रमण करना, उल्लङ्घन | विमुज्य [ वियुज् + ल्यप् | वियुक्त होकर, पृथक् एक एक करना। करके व्यक्तिशः। विभेद: [विभिन्+घा] सिकुड़न, (भौंहे) सिकोड़ना। वियोजनम् [वियुज्+ल्युट् ] 1. वियोग 2. घटाना। विभी (वि.) निर्भय, निडर / वियोनिः भिन्न जाति की स्त्री-महा० 13 / 145 / 52 / विभीषणः एक राक्षस का नाम, रावण का भाई / वियोनि (वि.) [प्रा० ब०] 1 नीच कुल में उत्पन्न विभुता सर्वोपरि सत्ता, यश, कीर्ति / 2. भगरहित / विभुग्न (वि.) [वि+भुज+क्त] मुड़ा हुआ, झुका हुआ, | वियोनिजः पक्षी, परिंदा / दमन किया हुआ। विरजा एक नदी का नाम / विभावनम् [वि+भू+णि+ल्युट्] 1. विकास 2. प्ररक्षा | विरक्तप्रकृति (वि.) [ब० स०] जिसकी प्रजा उदासीन 3. दृष्टि, दर्शन / हो, निलिप्त हो। विभाव्य [विभू+णिच् + ण्यत्] चिन्तनीय, विचारणीय / | विरण्य (वि०) विस्तृत, विस्तारयुक्त, दूरतक फैला विभतिः[वि+भू+क्तिन्] 1. लक्ष्मी 2. योग्यताएं-क्षेत्रज्ञ | हुआ। "एता मनसो विभूती:- भाग० 511 / 12 / | विरथ्या 1. बुरा मार्ग 2. उपमार्ग, छोटी गलो / विभ्रंशः [वि+भ्रंश-धा] 1. अतिसार, बार-बार दस्त विरतप्रसंग: वह बात या विषय जिसकी चर्चा बन्द हो आना 2. उलटफेर, अस्तव्यस्तता। गई हो विमद्य (वि.) [प्रा० ब०] मद्यपान से मुक्त / विरलभक्ति (वि.) नीरस, उकता देने वाला। विमर्दनम् [वि+मृद्+ल्युट] 1. सुगन्ध, खुशबू 2. परि- | बिराज् [विराज्+क्विप्] ब्रह्माण्ड, विश्व। सम० घर्षण, चबाना, पीसना 3. संघर्ष। --सुतः (विराट्सुतः) स्वर्गीय पितरों की एक श्रेणी। विमषिन् (वि०) [विमृष् +णिनि] असहिष्णु, अनिच्छुक, | विरात्रः, त्रम् [प्रा० व०] रात का तीसरा पहरविमनस्क। शुश्राव ब्रह्मघोपांश्च विराय ब्रह्मरक्षसाम्-रा०५।२६ / विमात्रा (वि० मापतोल में बराबर। विरावण (वि०) [वि०+रु+णिच् + ल्युट] शोर. विमानः [वि+मा+ल्युट] 1. खुली पालकी 2. जहाज __गुल कराने वाला, हल्लागुल्ला मचवाने वाला। में रहने वाली किश्ती। सम० वाहः पालकी उठाने | विरिक्त (वि.) [वि+रिच्+क्त ] जिसे दस्त करा वाला। दिये गये हों, खाली कराया हुआ। विमार्गदृष्टि (वि०) बुरी राह पर आँख रखने वाला, विरिक्तिः [ विरिच+क्तिन् ] विरेचन, दस्त करवाना। __ बुरे रास्ते को देखने वाला। विरुज (स्त्री०)[वि+रु-विप ] दारुण पीडा। विमुक्ति (वि.) [वि+मुच् + क्त] आवेगरहित, शान्त- विरुज् (वि०) नोरोग, स्वस्थ / चित्त, निरपेक्ष / विरुद्धरूपकम एक अलङ्कार जहाँ उपमेय बिल्कूल समान विमुक्तमौनम् (अ०) मौनभंग करके। न हो। विमुक्तशाप (वि०) [प्रा० ब०] शाप के प्रभाव से | विरोधः [वि--रुध्-घा ] 1. वैपरीत्य, वाधा, विघ्न . मुक्त / 2. प्रतिवन्ध 3. शत्रुता 4. कलह 5. असहमति विमूढसंश (वि०) [ब० स०] घबराया हुआ, बेहोश। | 6. संकट। सम० आभासः वह अलंकार जहाँ विमुदात्मन् (वि०) [ब० स०] घबराया हुआ, बेहोश। विरोध प्रतीत होता हो. परन्तु वस्तुतः कोई विरोध विछित (वि०)[वि-+मर्छ--क्त ] 1. पूर्ण, सब मिला न हो,-उपमा वैपरीत्य पर आधारित उपमा, हुआ 2. जमा हुआ, मूर्छा में प्रस्त। --परिहारः 1. विरोध का दूर होना. सामंजस्य विमृशः [वि+मश्+अच् ] अनुचिन्तन, सोचविचार, स्थापित होना 2. प्रतीयमान विरोध की व्याख्या / -भाग० 4 / 22 / 21 / / दिरुलः एक प्रकार का साँप / विमोघ (वि.) विल्कुल फल रहित, निष्फल। विरूद्ध (वि०) [वि+रह+क्त ] (घाव) भरा हुआ, वियत्पताका [ष० त०] विजली। स्वस्थ 2. अंकुरित 3. चढ़ा हुआ। सम० बोध वियत्पयः [प० त०] अन्तरिक्ष / (वि०) जिसकी बुद्धि परिपक्व हो गई हो। वियतम् (अ०) अन्तराल पर अवकाश देकर / विरोचनम [वि+रुच् + युच् ] प्रकाश, चमक, दीप्ति / वियन्त (वि.) [वि-यम् + तृच ] चालकरहिन, जिसमें विरोचिष्णु (वि+रुच्-इष्णुच ] चमकीला. उज्ज्वल / चालक न हो। विलक्ष (वि.) [प्रा०व०]. जिसका कोई विशेष चिह्न वियुज् (रुधा. आ.) 1. (प्रतिज्ञा) भंग करना 2. लटना या लक्ष्य न हो 2. (पीर) जिसका निशाना चूक 3. घटाना। गया हो। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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