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( ४५७ )
दाहक ( वि० ) ( स्त्री० हिका ) [ दहू + ण्वुल् ] 1. जलाने | दिनम् [ द्युति तमः, दो (दी) + नक्, ह्रस्वः ] 1. दिन
वाला, सुलगाने वाला 2. आग लगाने वाला, दहनशील
3. दागने वाला, कः आग ।
( विप० रात्रि) - दिनान्ते निहितं तेजः सवित्रेव हुताशन: - रघु० ४१, यामिनयन्ति दिनानि च सुखदुःखवशीकृते मनसि - काव्य० १० दिनान्ते निलयाय गन्तुम्२१५ 2 दिन (रात्रि समेत २४ घण्टे का समय ) - दिने दिने सा परिवर्धमाना कु० १।२५, सप्त व्यतीयुस्त्रिगुणानि तस्य दिनानि - रघु २।२५ । सम ० - अण्डम्-अन्धकार, - अत्ययः - अन्तः, -अवसानम् सायंकाल, सूर्यास्त का समय - रघु० २।१५, ४५, अधीशः सूर्यः - अर्धः मध्याह्न, दोपहर, - आगमः, -आदिः, -आरम्भः, प्रभात, प्रातःकाल, - - ईशः, ईश्वर: सूर्य आत्मज: 1. शनि का विशेषण 2. कर्ण का विशेषण 3. सुग्रीव का विशेषण, --- करः -- कर्त-कृत् ( पुं०) सूरज-तुल्योद्योगस्तव दिनकृतश्चाधिकारी मतो नः-विक्रम ० २११, दिनकरकुलचन्द्र चन्द्रकेतो- उत्तर० ६८, रघु० ९।२३, - केशरः, -व: अंधेरा, -क्षयः सायंकाल, चर्या दैनिक व्यस्तता, प्रतिदिन का कार्यकलाप, - ज्योतिस् ( नपुं० ) धूप:, - दुःखितः चक्रवाक पक्षी, पः, पतिः, बन्धुः, - मणिः, -मयूखः, -रत्नम् सूर्य, मुखम् प्रातःकाल - रघु ० ९।२५, मूर्धन् ( पु० ) प्राची दिशा का पर्वत ( उदयाचल ) जिसके पीछे से सूर्य उदित होता हुआ माना जाता है, यौवनम् मध्याह्न, दोपहर ( दिन की जवानी ) ।
दानम् [दह + ल्युट् ] बाह्यम् [ दह + ण्यत् ] के योग्य |
fare: [ दिक् +कै+ क] बीस वर्ष का जवान हाथी, करभ । दिग्ध ( वि० ) [ दिह + क्त ] 1. सना हुआ, लिपा हुआ,
पोता हुआ - हस्तावसग्दिग्धमनु० ३।१३२, रघु० १६।१५, दिग्घोऽमृतेन च विषेण च पक्षमलाक्ष्या गाढ़ निखात इव मे हृदये कटाक्ष : मा० ११२९ 2. मिट्टी में सना हुआ, कलुषित 3. विषाक्त कु० ४४२५,
धः 1. तेल, मल्हम 2. चिकना पदार्थ, उबटन आदि 3. आग 4 जहर में बुझा तीर 5. कहानी ( वास्तविक हो या काल्पनिक)
दिण्डि, दिण्डिर: [ तिण्डि, हिडिर पृषो० साधुः ] एक प्रकार का वाद्ययंत्र ।
दित ( वि० ) [ दो + क्त, इत्वम् ] कटा हुआ, चीरा हुआ, फाड़ा हुआ, विभक्त ।
दितिः (स्त्री० ) [ दो + क्तिन् ]1. काटना, टुकड़े २ करना, विभक्त करना 2. उदारता 3. दक्ष की एक कन्या, कश्यप की पत्नी, राक्षसों और दैत्यों की माता । सम०जः, - तनयः पिशाच, राक्षस ।
1. जलाना, भस्म करना 2. दागता । 1. जलाने के योग्य 2. जल उठने
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दित्यः [ दिति + यत् ] राक्षस ।
farer [ दातुमिच्छा - दा + सन् + अ + टाप् ] देने की इच्छा - भामि० १।१२५ ।
दिदृक्षा [ द्रष्टुमिच्छा - दृश् + सन् + अ + टाप् ] देखने की इच्छा - एकस्थ सौंदर्यदिदृक्षयेव- कु० ११४९ । दिधिषुः [ दिघं धैर्यं स्यति सो + कु दिधिषुमात्मनः
इच्छति --- दिधिषु + क्यच् + क्विप् । पुनर्विवाहित स्त्री का दूसरा पति (स्त्री० ), अक्षतयोनि विधवा जिसका दूसरा विवाह हुआ हो ।
विधि (घी) षूः (स्त्री० ) [ दिधि + सो + कू पृषो० साधुः ] 1. दूसरी बार ब्याही हुई स्त्री 2. अविवाहित बड़ी बहन जिसकी छोटी बहन का विवाह हो गया हो - ज्येष्ठायां यद्यनूढायां कन्यायामुह्यतेऽनुजा, सा चाग्रे दिधिषूज्ञेया पूर्वा च दिधिषूः स्मृता । सम०- पतिः वह पुरुष जिसने अपने भाई की विधवा से मैथुन किया हो ( केवल वासना की तृप्ति के लिए न कि पवित्र कर्तव्य की दृष्टि से ) - भ्रातुर्यं तस्य भार्यायां योsनुरज्येत कामतः, धर्मेणापि नियुक्तायां स ज्ञेयो दिधिपूपतिः मनु० ३।१७३४ विधीर्षा [ घ् + सन् + अ + टाप् ] जीवित रखने की इच्छा, सहारा देने की इच्छा - दिक्कुञ्जराः कुरुत तत् त्रितय दिधीर्षां- बालरा० १।४८ ।
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दिनिका [ दिन + न् + टाप् ] दिन की मजदूरी । दिपिकः (g०) खेलने की गेंद । दिलीप: ( पु० ) एके सूर्यवंशी राजा, अंशुमान् का पुत्र,
भगीरथ का पिता । परन्तु कालिदास के अनुसार रघु का पिता ), [ कालिदास ने दिलीप को एक आदर्श राजा बताया है, उसकी पत्नी का नाम सुदक्षिणा था, जो सब प्रकार से अपने पति के अनुरुप थी। उनके कोई सन्तान न थी । फलतः वे अपने कुलगुरु वसिष्ठ के पास गये, गुरु ने उनको नंदिनी नाम की कामधेनु की सेवा करने के लिए कहा- उन्होंने २१ दिन तक गाय की सेवा की और २२वें दिन गौ ने उनपर कृपा की । फलतः उनके यहाँ एक यशस्वी बालक का जन्म हुआ जिसने बड़े होकर समस्त विश्व पर विजय प्राप्त की और फिर वही रघुवंश का प्रवर्तक बना ] दिव् i ( दिवा० पर० - दीव्यति, द्यूत या धून- इच्छा० दुधपति, दिदेविषति ) 1. चमकना, उज्ज्वल होना 2. फेंकना, ( अस्त्र की भाँति ) क्षपण करना- भट्टि० १७८७, ५८१ 3. जुआ खेलना, पांसे से खेलना ( 'पांसे' में कर्म० या करण०) - अक्षैरक्षान्वा दीव्यति -- सिद्धा०, वेणी० १।१३ 4. खेलना, क्रीडा करना 5. हँसी दिल्लगी करना, चुटकियों में उड़ा देना, खेल करना, मजाक करना ( कर्म० के साथ) 6. दाँव पर
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