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( ५२४ ) निघातिः (स्त्री०) [ नि+हन्+इञ, कुत्वम् ] लोहे सहज, अन्तर्भव, जन्मजात 2. अपना, स्वकीय, आत्मीय की गदा।
अपने दल का या अपने देश का--निज बपुः पुनरनयनिघुष्टकम् [नि+घुष्+क्त ] ध्वनि, शब्द ।
निजां रुचिम् ---शि० १७१४, रघु० ३३१५, १८, निघ्न (वि.) [नि हिन्+क] 1. आश्रित, अनुसेवी, मन० २।५० 3. विशिष्ट 4. निरन्तर रहने वाला,
आज्ञाकारी (नौकर की भांति), तथापि निघ्न नप चिरस्थायी। तावकीनैः प्रह वीकृतं मे हृदयं गणौधः-कि०३।१३, निज् ( अदा० आ०—निक्ते ) धोना, प्र-, धोना निघ्नस्य में भर्तृनिदेशरौक्ष्यं देवि क्षमस्वेति बभूवः | प्रणिक्ते । नम्रः-रघु० १४१५८ 2. शिक्ष्य, विधेय 3. पराश्रित निटलम् ('निटिल' भी लिखा जाता है) [नि+टल+ (अर्थात् विशेष्य के लिंगादि का अनुसरण करने के अच् ] मस्तक, निटिलतटचुबित-दश० ४, १५ । वाला-इति विशेष्यनिघ्नवर्गः 4. (संख्या वाचक सम-अक्ष: शिव का नाम । शब्द के पश्चात्) गुणित ।
निडीनम [ मीचैः डीनं पतनमस्ति ] पक्षियों का नीचे की निचयः [नि+चि+अच् ] 1. संग्रह, ढेर, समुच्चय !
! ओर उड़ना, या झपट्टा मारना, दे० 'डीन'। -कि० ४।३७ 2. अवयों का संघातजिसने पूर्णता नितंबः [ निभृतं तम्यते कामुकः, तमु कांक्षायाम् ] 1.
आजाय ---जैसा 'शरीरनिचय' में 3. निश्चितता। । चूतड़, (स्त्री का) पिछला उभरा हुआ भाग, श्रोणि निचायः [ नि+चि+घ ] ढेर ।
प्रदेश, कुल्हा,-यातं यच्च नितंबयोर्गुरुतया मंदं निचिकिः दे० नचिकी।
विलासादिव-श० २।१, रघु० ४।५२, ६।१७, मेघ निचित (४० क० कृ०) [ नि+चि+क्त ] 1. ढका ४१, भर्त० १५, मालवि० २१७ 2. (पर्वत का)
हुआ, आच्छादित, फैला हुआ, निचितं खमुपेत्य नीरदः ढलान, पर्वतश्रेणी, पार्श्व या पहल—सनाकवनितं ----घट०१शि०१७।१४ 2. भरा हुआ, पूरित 3. नितंबरुचिरं (गिरम्) कि० ५।२७, सेव्या नितंबा: उठाया हुआ।
किम भूधराणां किं वा स्मरस्मेरविलासिनीनाम निचुल: [ नि --चुलक ] 1. एक प्रकार का नरकुल 2. भर्त०१९, विक्रम० ४।२६, भट्टि० २१८, ७५८
एक कवि, कालिदास का मित्र-स्थानादस्मात् । 3. खड़ी चट्टान 4. नदी का ढलवां किनारा 5. कंधा। सरसनिचुलादुत्पतोदङ्मुखः खम्-मेष० १४, (यहाँ सम०—बिबम् गोलाकार कूल्हा, ऋतु० १।४ । मल्लि.-निचुलो नाम महाकविः कालिदासस्य सहा- नितंबवत (वि.) [ नितंब-मतुप ] सुन्दर कूल्हों वाला ध्यायः, परन्तु यह व्याख्या बड़ी संदिग्ध है) 3. ऊपर
--ती स्त्री चारु चुचुंब नितंबवती दयित-गीत से शरीर ढकने का कपड़ा, चादर, तु० निचोल। १, विक्रम ० ४।२६। निचुलकम् [ निचुल-कन् ] वक्षत्राण, चोली, अंगिया।
नितंबिन (वि.) [ तितंब+इनि ] सुन्दर कूल्हों वाला,
वि निचोल: [ निचल+घञ ] 1. अवगुण्ठन, चूंघट, पर्दा सुडौल चूतड़ वाला- (बहुधा 'जघन' के लिए प्रयुक्त)
ध्वांत नीलनीचोलचारु-गीत० ११, शीलय नील- तु० मालवि० २।३, कि० ८।१६, रघु० १९।२६, 2. निचोलम्-५ 2. बिस्तरे की चादर 3. डोली का अच्छे पाश्वांगों वाला (पहाड़ आदि)-नी 1. बड़े आवरण।
और सुन्दर कूल्हों वाली स्त्री-कि० ८।३, शि० निचोलकः [ निचोल+के+क] 1. बनियान, चोली 2. ७।६८, कु० ३१७ 2. स्त्री।
सिपाही की जाकट जो उरस्त्राण का काम दे। नितराम (अव्य०) [ नितिरप-+अमु ] 1. पूर्णरूप से, निच्छबिः [ प्रा० ब० ] एक प्रदेश जिसे आज कल तिरहुत । सर्वथा, पूरी तरह से.-प्राणांस्त्यजामि कितरां तदकहते हैं।
वाप्तिहेतोः --चौर० ४१, भर्तृ० ११९६ 2. अत्यंत, निच्छिविः (पं०) एक वात्य जाति, पतित जाति (ब्रात्य अत्यधिक, बहुत ज्यादह-तुर्दति चेतो नितरां प्रवाक्षत्रिय की सन्तान) दे० मनु०१०।२२।।
सिनां—ऋत. १४, अमरु १०, शोषितसरसि निदाघे निज (जहो. उभ० --- नेनेक्ति, नेनिक्ते, प्रणेनेक्ति, नितरामेवोद्धतः सिंधः---पंच० १४१०४, नितरां
निक्त) धोना, निर्मल करना, स्वच्छ करना--सस्नुः नीचोऽस्मीति-भामि०१९ 3. निरंतर, सदा, लगापयः पपुरनेनिज़रंबराणि-शि० ५।२८2. अपने तार 4. सर्वथा 5. निश्चय ही। आपको धोना, निर्मल करना, स्वच्छ होना (आ०) नितलम् [ नितरां तलम् अधोभागः यस्मिन् ] पाताल के 3. पोषण करना, अव---, प्रक्षालन करना, पानी छिड़- सात प्रभागों में से एक, दे० पाताल । कना, निस्-, धोना, निर्मल करना, स्वच्छ करना नितांत (वि.) [नि+तम्+क्त+दीर्घः ] असाधारण,
--रघु० १७।२२, याज्ञ०, १११९१, मनु०५।१२७ । अत्यधिक, बहत अधिक, तीव्र-नितांतकठिन रुजं मम निज (वि.) [नि+जन् --ड] 1. अन्तर्जात, स्वदेशजात, न वेद सा मानसीम-विक्रम० २।२,-तम् (अव्य०)
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