________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 981 ) वमुल्यम् [ विमुख+ष्या ] 1. मुंह मोड़ना, पलायन, | वरल्पम् [विरल+व्यञ् ] 1. न्यूनता, विरलता 2. ढीलाप्रत्यावर्तन 2. अरुचि, जुगुप्सा। पन 3. मृदुता। बमेयः [विमेय+अण् ] बदला, विनिमय।। वैरागम् दे० 'वराग्यम्। वयनम्, वैययम् [व्यग्र+अण, व्या वा 11. व्यग्रता, वैरागिकः, वैरागिन् (पुं०) [ विराग+ठक, विराग+अण बेचैनी, घबराहट 2. अनन्य भक्ति, तल्लीनता +इनि ] वह संन्यासी जिसने अपनी सब इच्छाओं . महावी० 7 / 38 / और वासनाओं का दमन कर लिया है। वयय॑म् [ व्यर्थ+ष्या | व्यर्थता, अनुत्पादकता। वैराग्यम् [विरागस्य भावः-व्या ] 1. सांसारिक वासवैयषिकरण्यम् [ व्यधिकरण+ष्यत्र / भिन्न स्थानों में | नाओं व इच्छाओं का अभाव, सांसारिक बंधनों से होने का भाव, दे० 'व्यधिकरण। उदासीनता, विरक्ति- भग० 6 / 35, 1368 2. असंबंयाकरण (वि.) (स्त्री०-णी) [ व्याकरणमधीते वेत्ति तृप्ति, अप्रसन्नता, असंतोष-कामं प्रकृतिवैराग्यं सखः वा--अण् ] व्याकरणविषयक, व्याकरणसंबन्धी,-णः शमयितुं क्षमः - रघु०१७।५५ 3. अरुचि, नापसन्दगी व्याकरण जानने वाला वैयाकरणकिरातादपशब्द- 4. रंज, शोक, अफसोस / मृगाः क्व यांतु संत्रस्ता:-सुभा०। सम-पाशः वैराज (वि.) (स्त्री०-जी) [विराज्+अण् ] ब्रह्माजिसे व्याकरण का अच्छा ज्ञान न हो, - भार्यः संबंधी-उत्तर० 2 / / जिसकी पत्नी व्याकरण को जानने वाली हो। | वराट (वि०) (स्त्री० -- टी) [विराट+अण् ] विराट वैयाघ्र (वि.) (स्त्री० . प्री) [व्याघ्र+अ ] | संबंधी,-ट: एक प्रकार का मिट्टी का कीड़ा, इन्द्रगोप / 1. चीते की तरह का 2. चीते की खाल से ढका हुआ | वैरिन् (वि.) [वैर+इनि ] विरोधी, शत्रुतापूर्ण (पुं०) -प्रः चीते की खाल से ढकी हुई गाड़ी। शत्रु,-शौर्य वैरिणि ववमाश निपतत्वर्थोऽस्तु नः केवलम् वयात्यम् | वियात+व्या ] 1. साहस, अविनय, निलं- --भर्तृ० 2 / 39, भग० 3 / 27, रषु० 12 / 104 / ज्जता- अन्यदाभूषणं पुंसां क्षमा लज्जव योषिताम, | बलप्यम् [ विरूप+ष्यश्] 1. विरूपता, कुरूपता ---रषु. पराक्रमः परिभवे वैयात्यं सुरतेष्विव-शि / 12 / 40 रूपों की विभिन्नता या वैविध्य / 2144 2. उजड्डपन, अक्खड़पन / वैरोचनः, वैरोचनिः, वैरोचिः [विरोचनस्यापत्यम् अण्, वैयासिकः [ व्यासस्य अपत्यम, व्यास+इन, अकड इञ वा, विरोच+घञ्] विरोचन के पुत्र बलि आदेशः, यकारात् पूर्व ऐच ] व्यास का पुत्र। राक्षस के विशेषण। वैरम [ वीरस्य भावः-अण् ] 1. विरोध, शत्रुता, दुश्मनी वलक्षण्यम् | विलक्षणस्य भावः-ष्य 11. आश्चर्य वैमनस्य, द्रोह, प्रतिपक्ष, कलह-.-दानेन वैराग्यपि 2. वैपरीत्य, विरोध 3. अन्तर, भेद / यान्ति नाशनम् -- सुभा०, अज्ञातहदयेष्वेवं वैरीभवति लक्ष्यम् [विलक्ष+व्या] 1. उलझन, गड़बड़ी सौहृदम् --श० 523, 'वैरभाव में परिणत हो 2. अस्वाभाविकता, कृत्रिमता - वैलक्ष्यस्मितम् 'कृत्रिम जाता है,' विधाय वरं सामर्षे नरोऽरौ य उदासते, या बलपूर्वक की गई मुस्कान 3. लज्जा 4. वपरीत्य, प्रक्षिप्योदचिषं कक्षे शेरते तेऽभिमारुतम् शि० 2 / व्युत्क्रम। 42 2. घृणा, प्रतिहिंसा 3. शूरवीरता, पराक्रम / लोम्यम् [ विलोम+व्या ] विरोध, व्युत्क्रम, वैपरीत्य / सम०-अनुबन्धः शत्रुता का आरंभ,-अनुबन्धिन् / वल्व (वि.) दे० 'बैल्व' / (वि०) शत्रता की ओर ले जाने वाला,-आतङ्कः अवधिकः [विवध+ठक] 1. फेरी वाला, आवाज लगा कर अर्जनवृक्ष,--आनण्यम्,---उतारः,-निर्यातनम्,-प्रति- बेचने वाला 2. (बहंगो में रख कर) भार ढोने वाला। क्रिया,-प्रतीकारः-यातना,-शुदिः (स्त्री०), साधनम् | वेवण्यम [ विवर्णस्य भावः--व्या ] 1. रंग या चेहरे की शत्रुता का बदला, बदला देना, प्रतिहिंसा,-करः, आभा का परिवर्तन, फीकापन, निष्प्रभता 2. विभि कारः, - कृत् (पुं०) शत्रु, -भावः शत्रुतापूर्ण नता, विविधता 3, जाति से विचलना / रवैया---रक्षिन् ( वि० ) शत्रुता का निवारण करने वैवस्वतः / विवस्वतोऽपत्यम् अण्-1. सातवां मनु०, जो वाला। वर्तमान युग का अधिष्ठाता है, मन के नीचे दे० वैरक्तम्,-क्त्यम् [विरक्त+अण, प्या वा] 1. सांसा- --- वैवस्वतो मनु म माननीयो मनीषिणाम् - रघु० रिक आसक्तियों के प्रति उदासीनता, इच्छा का / 1 / 11, उत्तर० 6 / 18 2. यम - रघु० 15 / 45 अभाव 2. अप्रसन्नता, नापसन्दगी, अरुचि / 3. शनिग्रह,-तम् विवस्वान् के पुत्र सातवें मनु, द्वारा बरगिकः [ विरग विरागं नित्यमर्हति ठक 1 जिसने / अधिष्ठित वर्तमान युग या मन्वन्तर / अपनी सब इच्छाओं एवं वासनाओं का दमन कर दिया | वैवस्वती [ वैवस्वत+डीप्] 1. दक्षिण दिशा 2. यमुना है, संन्यासी, वैरागी। नदी। प. शत्रुता ले जाने वाला तिनम्, प्रतिवर्ण्यम् परिवर्तन, तसे विचलमातवां मन् For Private and Personal Use Only