SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1080
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मी, पक्षपाता, तर्क० सप्तम से। ( 1071 ) वैरागी, चौथे आश्रम में स्थित ब्राह्मण-ज्ञेयः स : बहुधा मृत्यु से बारहवें दिन ही किया जाने लगा नित्यसन्यासी यो न द्वेष्टि न कांक्षति - भग० 5 / 3 / / 3. भोजन का त्याग करने वाला, त्यक्ताहार, सपीतिः (स्त्री०) [ सह एकत्र पीतिः पानम्-पा+क्तिन् ] __~~भट्टि० 776 / साथ साथ पीना, मिलकर पीना, सहपान / सप् (भ्वा० पर० सपति) 1. सम्मान करना, पूजा करना | सप्तक (वि.) (स्त्री-का, की) [ सप्तानां समूहः 2. संबंध जोड़ना। सप्तन-कन् ] 1. जिसमें सात सम्मिलित हों 2. सात सपक्ष (वि.) [सह पक्षेण-व० स०] 1. पंखों वाला, 3. सातवां,--कम् सात वस्तुओं का संग्रह (कविता डैनों वाला 2. पक्षवाला, दलवाला 3. एक ही पक्ष आदि का)। या दल का 4. बन्धु, समान, सदृश--(आलं.) दलद्- सप्तकी ( सप्तभिः स्वरः इव कायति शब्दायते -- सप्तन् द्राक्षानियंद्रसभरसपक्षा भणितयः—भामि० 2 / 77 +के+क+डोष स्त्री की करधनी या तगड़ी। 5. जिसमें अनुमान का पक्ष या साध्य विषय विद्यमान ! सप्ततिः (स्त्री०) [सप्तगणिता दशतिः- नि०] सत्तर, हो, क्षः 1. समर्थक, अनुगामी, पक्षपाती, हिमायती तम् (दि०) सत्तरवाँ / 2. सजातीय, रिश्तेदार-मालवि० 4 3. (तर्क० | सप्तधा (अव्य०) [सप्तन्+घाच् ] सात गुण, सात में) साध्यपक्ष का दृष्टांत, समान उदाहरण-निश्चित- प्रकार से। साध्यवान् सपक्षः / तर्क०।। सप्तन् (सं० वि० [सदैव बहुवचनान्त-कर्त० व कर्म० सप्त सपत्नः [ सह एकार्थे पतति पत्+न, सहस्य सः] श: [सप्+तनिन् सात। सम० अङ्ग (वि.) दे० विरोधी, प्रतिद्वन्द्वी-रघु० 98 / नी० सप्तप्रकृति, अचिस् (वि.) 1. सात जिह्वा या सपत्नी [ समानः पतिः यस्याः ब० स० डीप, न आदेशः लो वाला 2. बुरी आंख वाला, अशभ दृष्टि वाला, 1. प्रतिद्वन्द्वी या सहपत्नी, प्रतिद्वन्द्वी गृहिणी, सोत (पुं०) 1. अग्नि 2. शनि, अशीतिः (स्त्री० सतासी, (एक ही पति की दूसरी पली)--दिशः सपन्नी भव -अश्रम् सतकोन, अश्वः सूर्य,-.-'वाहनः सूर्य,-अहः दक्षिणस्याः रघु०६।६३, 14186 / मात दिन अर्थात् एक हप्ता, आत्मन् (पुं०) ब्रह्म सपत्नीक (वि.) [ सपत्नी+कप्] पत्नी सहित।। का विशेषण,- ऋषि (सप्तर्षि) (पुं० ब० द.) सपत्राकरणम् [ सह पत्रेण सपत्र+डाच्+कृ---ल्युट ] 1. सात ऋषि, अर्थात् मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, 1. इस प्रकार बाण मारना जिससे कि बाण का पुख- पुलह, ऋतु और वसिष्ठ 2. सप्तर्षि नामक नक्षत्रपुंज दार भाग शरीर में घुस जाय 2. अत्यंत पीडाकारक (सात तारों का समूह जो उपर्युक्त सात ऋषि कहे -तु० निष्पत्राकरण / / जाते है), - चत्वारिंशत् (स्त्री०) सैतालिस,--जिह्वः, सपत्राकृतिः (स्त्री०) [सपत्र+डाच्+-+क्तिन् ] ----ज्यालः आग,---तन्तुः यज्ञ शि० 1416, त्रिशत् वेदना, पीडा, अत्यंत कष्ट या सन्ताप / (स्त्री०) सैंतीस,-वशन वि०) सत्रह,-दीधितिः अग्नि सपदि (अव्य०) [ सह ।-पद्+इन्, सहस्य सः] तुरन्त, * द्वीपा पृथ्वी का विशेषण, धातु (पुं० ब० व०) क्षण भर में, फौरन, तत्काल सपदि मदनानलो शरीर के संघटक सात मूलतत्त्व अर्थात् अन्नरस, दहति मम मानसस् गीत० 10, कु० 3176, 6 / 4 / रुधिर, मांस, चर्बी, हड्डी, मज्जा, वीर्य, नवतिः सपर्या [ सपर+या+अ+टाप्] 1. पूजा, अर्चना, (स्त्री०) सत्तानवे,--नाडीचक्रम् ज्योतिष का एक सम्मान--सोऽहं सपर्याविधिभाजनेन-रषु० 5 / 22, रेखाचित्र जिसके द्वारा वर्षाविषयक भविष्यकथन 2 / 22, 11 // 35, 13146, शि. 1114 2. सेवा, किया जाता है,-पर्णः ( इसी प्रकार सप्तच्छदः, परिचर्या / सप्तपत्रः ) एक वृक्ष का नाम, पदी विवाह में सात सपाव (वि०) [ सहपादेन-ब० स०] 1. परों वाला | पग चलना (दूल्हा और दुलहिन विवाह संस्कार के 2. एक चौथाई बढ़ा हुआ। अवसर पर सात पग मिलकर चलते हैं--इसके बाद सपिण्डः [ समानः पिंडो मूलपुरुषों निवापो वा यस्य --ब० विवाहसम्बन्ध अटूट हो जाता है), प्रकृतिः (स्त्री० स०] समान पितरों को पिंडदान देने वाला, एक ब० व०) राज्य के सात संघटक अंग--स्वाम्यमात्यसमान पितरों को पिण्डदान देने के कारण संबंधी, सुहृत्कोशराष्ट्रदुर्गबलानि च अमर०, दे० 'प्रकृति' भी, बन्धु याज्ञ० 1152, मनु०२।२४७, 5159 / ------भवः सिरस का पेड़, भूमिक, भौम (वि०) सपिण्डीकरणम् सपिण्ड -च्चि++ल्युट ] समान पितरों सातमंजिल ऊँचा (जैसे कि महल), रात्रम् सात के सम्मान में किया जाने वाला विशेष श्राद्ध का रात का समय, विंशतिः (स्त्री०) सत्ताइस, विध अनुष्ठान, (यह श्राद्ध किसी बन्धबांधव की मृत्यु के (वि०) सातगुना, सात प्रकार का,-शतम् 1. सात एक वर्ष पश्चात् किया जाता है, परन्तु आजकल | सौ 2. एक सौ सात, (तो) सात सौ श्लोकों का संग्रह, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy