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मालवि० ११४, मनु० ७।७९ 2. विष्णु का विशेषण 3. दस प्रजापतियों में एक--मालवि०१।३५ 4. प्रज्ञा, बुद्धि 5. शक्ति, योग्यता। सम - उत्तमः राजसूय यज्ञ,--बहू,---विष् (पुं०) राक्षस, पिशाच,... ध्वंसिन् (पुं०) शिव का विशेषण (शिव ने ही दक्ष के यज्ञ को नष्ट किया था), -पतिः यज्ञ का अनुष्ठाता, पशुः यज्ञीय घोड़ा, पुरुषः विष्णु का विशेषण, भुज (पुं०) देवता, देव,---राज् (पुं०) 1. यज़ों का स्वामी यथा
श्वमेधः ऋतुराट्-मनु० ९।२६० 2. राजसूय यज्ञ । कथ् (म्वा० पर०-ऋथति, ऋथित) क्षति पहँचाना, चोट
पहुँचाना, मार डालना। ऋयकशिक: (ब० व०) एक देश का नाम- अथेश्वरेण
ऋथकंशिकानाम्... रघु० ५।३९ मनु० ५।२। कथनभ [ ऋथ् + ल्युट ] वध, हत्या। कथनकः [ क्रथन+कन् ] ऊँट । कन्द (म्वा० पर०-क्रन्दति, ऋन्दित) 1. चिल्लाना, रोना,
आंसू वहाना-कि क्रन्दसि दुराक्रन्द स्वपक्षक्षयकारक -पंच० ४।२९, कंदत्यतः करुणमप्सरसां गणोऽयम् -विक्रम० ११२, चक्रन्द विग्ना करीव भूयः-रघु० १४।६८, १५।४२, भट्टि० ३।२८, ५।५ 2. पुकारना, दया की पुकार करना (कर्म० के माथ) फन्दत्यविग्तं सोऽथ भ्रातृमातृमुतानथ-मार्क० (चरा० पर० या प्रेर०) 1. लगातार चिल्लाना 2. रुलाना । आ-, चिल्लाना, चीखना, चरमराना, चीत्कार करना-तणाग्रलग्नस्तुहिनैः पतद्भिराक्रन्दतीवोपमिशीनकाल:-कल० ४१७, भटि० १५।५० 2. पुकार करना (प्रेर०) एह्येहीति शिखण्डिना पटुतरैः केकाभिराक्रन्दित:-मच्छ०
५।२३। कन्दनम्, ऋन्दितम् [ कन्द - ल्युट,क्त वा ] 1. आर्तनाद,
रोना, विलाप करना-हातातेति ऋन्दितमाकर्ण्य विषण्णः
-रघु० ९।७५ 2. पारस्परिक ललकार, चनौती। कम् (भ्वा० उभ०, दिवा० पर०-क्रामति-क्रमते, काम्यति,
कान्त) 1. चलना, पदार्पण करना, जाना-कामत्यनुदिते सूर्य बाली व्यपगतक्रमः-रामा०, गम्यमान न तेनासीदगतं कामता पुर:-भटि० ८१२,२५ 2. चले जाना, पहुँचना (कर्म के साथ)-देवा इमान् लोकानक्रमन्तशत० 3. जाना, पार करना, पार जाना-सुग्वं योजनपञ्चाशत्क्रमेयम्-गमा० 4.दना, छलांग माग्ना-क्रम वबन्ध अमिनु सकोपः (हरिः)-भटि० २१९, ५।५१, 5. ऊपर जाना, चढ़ना 6. अधिकार में रखना, वश में करना, अधिकार में लेना, भरना-क्रान्ता यथा चेतसि विस्मयन-रघु० १४११७ 7. आगे बढ़ना, आगे निकल जाना-स्थितः मर्वोन्नतेनार्वी क्रान्त्वा मेरुरिवात्मना -रघु० १११४ 8. उत्तरदायित्व लेना, संप्रयास करना, योग्य या सक्षम होना, शक्ति दिखलाना (संप्र. या ।
तुमुन्नन्त के साथ)-व्याकरणाध्ययनाय क्रमते-सिखा०, धर्माय क्रमते साधुः-वोप० व्युत्पत्तिरावजितकोबिदापि न रञ्जनाय क्रमते जडानाम-विक्रमांक १११६, हत्या रक्षांसि लवितुमक्रमीन्मारुतिः पूनः, अशोकबनिकामेव -भटि० ९।२८ १. बढ़ना या विकसित होना, पूरा क्षेत्र मिलना, स्वस्थ होना (अधि० के साथ)-कृत्येषु क्रमन्ते-दश० १७०, क्रमन्तेऽस्मिशास्त्राणि-या-ऋक्ष क्रमते बुद्धिः-सिद्धा०, क्रममाणोऽरिसंसदि-भटि०८ २२ '10. पूरा करना, निष्पन्न करना 11. मैथुन करना, (पा. १३१३८ क्रम-आ० में 'सातत्य' 'विघ्नों का अभाव' 'शक्ति या प्रयोग' 'विकास, वृद्धि' तथा 'जीतना, पार पहुँचना' आदि अर्थ को प्रकट करती है) अति- 1. पार करना, पार जाना-सप्तकक्षान्तराण्यतिकम्य-का० ९२ 2. परे जाना, लांघना-मेघ०५७, ४० 3. बढ़ जाना, आगे निकल जाना-मनु० ८।१५१ 4. उल्लंघन करना, अतिक्रमण करना, आगे कदम रखना-अतिक्रम्य सदाचारम-का० १६० 5. अवहेलना करना, पृथक् करना, उपेक्षा करना-प्रथितयशसां प्रवन्धाननिक्रम्य-मालवि० १, कि वा परिजनमतिक्रम्य भवान्सन्दिष्ट:-मालवि० ४, या कथं ज्येष्ठानतिक्रम्य यवीयान् राज्य महंति-महा० 6. गुजरना, (समय का) बीतना-अतिक्रान्ते दगाहे-मनु०५७६, यथा यथा यौवनमतिचक्राम-का०५९, अधि-, चढ़ना, अET-, अधिकार करना, भरना, ग्रहण करना-अध्याक्रान्ता वसतिरमनाध्याथम सर्वभोग्य-श० २१४ अनु-, 1. अनुगमन करना 2. आरम्भ करना 3. अन्तर्वस्तु देना, अ.वा-, एक के पश्चात दूसरे के दर्शन करना, अप-, छोड़ जाना, चले जाना, अभि-, 1 जाना, पहुँचना, प्रविष्ट होना-अभिचक्राम काकुत्स्थः शरभङ्गाश्रमं प्रतिरामा० 2. घूमना, भ्रमण करना 3. आक्रमण करना अव-, वापिस हटना आ-, 1. पहँचना, की ओर जाना 2. आक्रमण करना, दमन करना, जीतना, परास्त करना-पक्षिशावकानाक्रम्य-हि० १, पौरस्त्यानेवमाक्रामन्-रघु० ४।३४, भर्तृ० ११७० 3. भरना, प्रविष्ट होना, अधिकार में करना-बं केशवोऽपर इवाक्रमित प्रवृत्तः-मच्छ० ५।२।९।१२ 4. आरम्भ करना, शुरू करना 5. उन्नत होना, उदय होना (आ०) यावत्प्रतापनिधिराक्रमते न भानु:-रघु० ५।७१ 6. चढ़ना, सवारी करना, अधिकार में करना, उद्-, 1. ऊपर होना, परे जाना, उपर जाना-ऊर्ध्व प्राणापत्कामन्ति --मनु० २११२० 2. अवहेलना करना, उपेक्षा करना -आप प्रमाणमुत्क्रम्य धर्म न प्रतिपालयन्-महा०, धर्ममुत्क्रम्य 3. परे कदम रखना-रघु० १५।३३, उप-, 1. की ओर जाना, पहुँचना 2. धावा बोलना, आक्रमण करना 3. बर्ताव करना, उपचार करना, (वैद्य
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