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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३१० ) की भांति) चिकित्सा करना, स्वस्थ करना, 4. प्रेम करना, प्रेम से जीत लेना - सर्वेरुपाये रुपक्रम्य सीताम - रामा० 5. अनुष्ठान करना, प्रस्थान करना 6. ( आ ) आरम्भ करना, शुरू करना - प्रसभं वक्तुमुपक्रमेत कः - कि० २०२८, रघु० १७३३, निस्, 1. चले जाना, चल देना, बिदा होना 2. निकलना, प्रकाशित होना - भट्ट० ७०७१, परा-, ( आ० ) 1. साहस प्रदर्शित करना, शक्ति या शूरवीरता दिखाना, बहादुरी के साथ करना - बकवच्चिन्तयेदर्थान् सिंहवच्च पराक्रमेत् - मनु० ७११०६, भट्टि ८ २२,९३ 2. वापिस मुड़ना 3. चढ़ाई करना, आक्रमण करना, परि-, 1 इधर उधर घूमना, चक्कर लगाना - परिक्रम्यावलोक्य च ( नाटकों में) 2. पकड़ लेना, प्र - ( आ० ) 1. आरम्भ करना, शुरू करना - प्रचक्रमे च प्रतिवक्तुमुत्तरम् - रघु० ३।४७, २०१५, कु० ३1२ 2. कुचलना, ऊपर पैर रख कर चलना - भट्टि० १५/२३ 3. जाना, प्रस्थान करना, प्रति, वापिस आना वि- (आ० ) 1. में से चलना, विष्णुस्त्रेधा विचक्रमे - तीन पग रक्खे भट्टि० ८ २४ 2. छापा मारना, पराजित करना, जीतना 3. फाड़ना, खोलना ( पर०), व्यति-, 1. उल्लंघन करना 2. समय बिताना, व्युद् दे० उत्-, सम्- 1. आना या एकत्र होना 2. पार जाना, पार करना, में से जाना 3. पहुँचना, जाना 4. पार चले जाना, स्थानान्तरित होना 5. दाखिल होना, प्रविष्ट होना कालो ह्ययं संक्रमितुं द्वितीयं सर्वोपकारक्षममाश्रमं ते रघु० ५ १०, समा-, 1. अधिकार करना, कब्जे में लेना, भरता सममेव समाक्रान्तं द्वयं द्विरदगामिना, तेन सिंहासनं पित्र्यमखिलं चारिमंडलम् - रघु० ४।४ 2. छापा मारना, जीतना, दमन करना म: [ क्रम् + घञ्ञ ] 1. कदम, पग - त्रिविक्रमः सागरः - लन्ण क्रमेणैकेन लम्बितः - महा० 2. पैर 3. गति, प्रगमन, मार्ग, क्रमात् क्रमेण दौरान में, क्रमशः, कालक्रमेण उत्तरोत्तर, समय पाकर, भाग्यक्रमः, भाग्य का उलट जाना- रघु० ३।७, ३०, ३२4. प्रदर्शन आरंभ -इत्यमत्र विततक्रमे ऋतौ शि० १४/५३ 5. नियमित मार्ग, क्रम, श्रेणी, उत्तराधिकारिता, निमित्तनमित्तिकयोरयं क्रमः श० ७।३० मनु० ७/२४, २९१८५ २ १७३३।६९ 6. प्रणाली, रीति नेत्रक्रमेणोपरुरोध सूर्यम् - रघु० ७।३९ 7. ग्रसना, पकड़ क्रमगता पशोः कन्यका - मा० ३।१६ 8 ( दूसरे जन्तु पर आक्रमण करने से पूर्व की जानवर की ) स्थिति 9. तैयारी, तत्परता भट्टि० २1१ 10 व्यवसाय, साहसिक कार्य 11. कर्म या कार्य, कार्यविधि-कोऽप्येष कान्तः क्रमः -- अमरु ४३।३३ 12. वेदमंत्रों को सस्वर उच्चारण करने की विशेष रीति - क्रमपाठ 13. शक्ति, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामर्थ्य, मम् गारा । सम० अनुसारः, अन्वयः, नियमित क्रम, समुचित व्यवस्था, आगत आयात ( वि० ) वंशपरम्पराप्राप्त, आनुवंशिक, ज्या ग्रह की लंबरेखा, क्षय, भंगः अनियमितता । क्रमक ( वि० ) [ क्रम् + वुन् ] क्रमबद्ध, प्रणाली के अनुसार, - कः वह विद्यार्थी जो किसी नियमित पाठ्यक्रम का अध्ययन करता है । क्रमण: [ क्रम + ल्युट् ] 1. पैर 2. घोड़ा, णम् 1. कदम 2. पग रखना 3. आगे बढ़ना 4. उल्लंघन *मतः ( अन्य ० ) [ ऋम् + तसिल् ] क्रमशः, उत्तरोत्तर | क्रमश: ( अव्य० ) [ क्रम + शस् ] 1. ठीक क्रम में, नियमित रूप से उत्तरोत्तर क्रमानुसार 2. क्रम से, मात्रा के अनुसार रघु० १२।५७, मनु० १/६८, ३।१२ । क्रमिक (वि० ) [ क्रम + ठन् ] 1. उत्तरोत्तर, सिलसिले वार 2. वंशपरंपरागत, पैतृक, आनुवंशिक । क्रमुः, क्रमुकः [ क्रम्+उ, कन् च ] सुपारी का पेड़-आस्वा दितार्द्र क्रमुकः समुद्रात्- शि० ३।८१, विक्रमांक ० १८९८ । *मेल:, क्रमेलकः [ क्रम् + एल् + अच्, कन् च ] ऊँट -निरीक्षते केलिवनं प्रविश्य क्रमेलकः कण्टकजालमेव विक्रमांक ० १४२९, शि० १२ १८, नं० ६।१०४ । *य: [ की + अच् ] खरीदना, मोल लेना । सम० - आरोहः मंडी, मेला, क्रीत ( वि०) मोल लिया हुआ, लेख्यम् - बैनामा, बिक्रयनामा, दानपत्र (गृहं क्षेत्रादिकं क्रीत्वा तुल्य मूल्याक्षरान्वितम्, पत्रं कारयते यत्तु क्रयलेख्यं तदुच्यते बृहस्पति), विक्रयौ ( द्वि० व० ) व्यापार, व्यवसाय, खरीद-फरोख्त मनु० ८1५ ७/१२७, विक्रयिकः व्यापारी सौदागर | ऋणम् [ क्री + ल्युट् ] खरीदना, मोल लेना । क्रयिकः [ क्रय + ठन् ] 1. व्यापारी, सौदागर 2. क्रेता, मोल लेने वाला । ऋव्य (वि० ) [ श्री + यत्, नि० ] मंडी में विक्रय के लिए रक्खी हुई वस्तु, बिकाऊ ( विप० ' क्रय' जिसका अर्थ है ' मोल लिये जाने के उपयुक्त' । ऋव्यम् [ क्लव्+ यत्, रस्य ल: ] कच्चा मांस, मुरदार ( शव या लाश ) स्थपुटगतमपि क्रव्यमव्यग्रमत्ति- मा० ५।१६ । सम० – अद्-अद, भुज् (वि०) कच्चा मांस खाने वाला, मनु० ५।१३१, (पुं० ) 1. शेर, चीता आदि मांसभक्षी जन्तु, उत्तर० 2. राक्षस, पिशाच - रघु० १५।१६ । ऋशिमन् (पुं० ) [ कृश + इमनिच् ] पतलापन, कृशता, दुबलापतलापन । १/४९ काकचिकः [ क्रकच - + ठक् ] आराकश । कान्त ( वि० ) [ क्रम् + क्त ] गया हुआ, आरपार गया हुआ For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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