SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (भू० क० कृ०),--त: 1. घोड़ा 2. पैर, पग । सम० विहित समस्त कार्य 2. किसी व्यवसाय के समस्त -----दशिन् (वि०) सर्वज्ञ । विवरण, कारः 1. अभिकर्ता, कार्यकर्ता 2. शिक्षारंभ कान्तिः (स्त्री० [क्रम+क्तिन ] 1. गति, प्रगमन करने वाला, नौसिखिया, नवच्छात्र 3. इकरारनामा, 2. कदम, पग 3. आगे बढ़ने वाला 4. आक्रमण करने प्रतिज्ञापत्र, द्वेषिन (पु०) (पाँच प्रकार के साक्षियों वाला, अभिभूत करने वाला 5. नक्षत्र की कोणीय में से एक) वह साक्षी जिसका साक्ष्य पक्षपातपूर्ण हो, दूरी 6. क्रांतिवलय, सूर्य का भ्रमण मार्ग। सम० -निर्देशः गवाही, साक्ष्य,--पटु (वि०) कार्यदक्ष, -- कक्षः,-मण्डलम्, -- वृत्तम्, सूर्य का भ्रमण मार्ग, —पथः औषधोपचार की रीति,---पदम क्रियावाचक ---पातः वह बिंदु जहाँ क्रांतिवलय विवत् रेखा से शब्द, ...पर (वि०) अपने कर्तव्य-पालन में परिश्रम मिलता है,-वलयः 1. सूर्य का भ्रमण मार्ग 2. उष्ण शील, --- पादः अभियोक्ता या वादी के द्वारा अपने दावे कटिबंधीय क्षेत्र, उष्ण कटिबंध । को पुष्टि में दिए गये प्रमाण, दस्तावेज तथा गवाहियाँ काय (यि) क: [को+ण्वुल – क्रय-+ठक् ] 1. क्रेता, आदि जो कानुनी अभियोग का तीसरा अंग है,-योगः खरीददार 2. व्यापारी, सौदागर । 1. क्रिया के साथ संबंध 2. तरकीब और साधनों का क्रिमिः [ क्रम् + इन्, इत्वम् ] 1. कीड़ा 2. कीट-दे० कृमि । प्रयोग, लोपः आवश्यक धार्मिक अनुष्ठानों का परिसम-जम् अगर को लकड़ी,--शैलः बांबो। त्याग, क्रिपालोपात् वृषलत्वं गता..... मनु० १०१४३, क्रिया [ कृश, रिङ आदेशः, इयङ] 1. करना, कार्या --वशः आवश्यकता, क्रियाओं का अवश्यंभावी प्रभाव, न्विति, कार्य-सम्पादन, निष्पादन करना, उपचार, - वाचक,- बाचिन् (वि.) कर्म को प्रकट करने धर्म-प्रत्यक्तं हि प्रणयिषु सतामोप्सितार्थक्रियेव वाला, क्रिया से बना संज्ञा शब्द,-वादिन् (पुं०) -- मेघ० ११४ 2. कर्म, कृत्य, व्यवसाय, जिम्मेदारी वादी, अभियोक्ता,-विधिः कार्य करने का नियम, ---प्रणयिक्रिया-विक्रम०४।१५, मनु० २।४ 3. चेष्टा, किसी धर्म कृत्य को सम्पन्न करने की रीति-मनु० शारीरिक चेष्टा, श्रम 4. अध्यापन, शिक्षण --क्रिया ९।२२०, -- विशेषणम 1. क्रिया की विशेषता प्रकट हि वस्तूपहिता प्रसीदति-रघ० ३।२९ 5. (नृत्य करने वाला शब्द 2. विधेय विशेषण,---संक्रान्ति गायन आदि), किसी कला पर आधिपत्य, ज्ञान (स्त्रो०) दूसरों को ज्ञान देना, अध्यापन-मालवि. -शिष्टा क्रिया कस्यचिदात्मसंस्था -- मालवि० १।१६ १११९, ----समभिहारः किसी कार्य की आवृत्ति । 6. आचरण (विप० शास्त्र-सिद्धान्त) 7. साहित्यिक त्रियावत् (वि.) [क्रिया+मतुप् ] कर्म में व्यस्त, किसी रचना-शृणुत मनोभिरवहितः क्रियामिमा कालिदास- कार्य के व्यवहार को जानने वाला—यस्तु क्रियावान् स्य ---विक्रम ११२. कालिदासस्य क्रियायां कथं पुरुषः स विद्वान् --हि० श६७। । परिषदो बहमानः-मालवि० १ 8. शुद्धि-संस्कार, की (क्रया० उभ० ----क्रीणाति, क्रीणीते, कीत) 1. खरीदना धार्मिक संस्कार १. प्रायश्चित्तस्वरूप संस्कार, मोल लेना,- -महता पुण्यपण्येन क्रोतेयं कायनोस्त्वया प्रायश्चित्त 10. (क) श्राद्ध (ख) औद्रदेहिक -शा० ३१, क्रीणीष्व मज्जीवितमेव पण्यमन्यत्र संस्कार 11. पूजन 12. औषधोपचार, चिकित्सा-प्रयोग, चेदस्ति तदस्तु पुचम-नै० ३.८७ ८८, पंच० १११३ इलाज-शीतक्रिया...मालवि० ४, शीतल उपचार मनु० २१७४ 2. विनिमय, अदलाबदलो-कच्चित्सह13. (व्या० में) क्रिया के द्वारा अभिहित कर्म स्रर्खाणामेकं क्रोणासि पण्डितम् . महा०, आ-, 14. चेष्टा या कर्म 15. विशेषतः वैशेषिक दर्शन में खरीदना, निस् .., कुछ देकर पिंड छुड़ाना, दाम देकर प्रतिपादित सात द्रव्यों में से एक-दे० कर्मन् फिर से खरीद लेना, निस्तार करना, परि---, (आ०) 16. (विधि में) साक्ष्यादिक मानवसाधनों से तथा 1. मोल लेना-संभोगाय परिक्रीत: कास्मि तब नाप्रिअन्य परीक्षाओं द्वारा अभियोग की छानबीन करना यम्--भट्रि०८७२ 2. किराये पर लेना, कुछ समय 17. प्रमाण-भार। सम० - अन्वित (वि०) शास्त्रोक्त के लिए मोल लेना (निर्धारित मल्य में करण तथा सन्कमों को करने वाला, - अपवर्गः 1. किसी कार्य की सम्प्र० के साथ)-शतेन शताय वा परिक्रीतः - सिद्धा० संपति या इतिश्री, कार्यसम्पादन--क्रियापवर्गेष्वनुजीवि- 3. वापिस करना, बदला देना, चकाना-कृतेनोपकृतं सात् कृताः- कि०२४४ 2. कर्मकाण्ड से मुक्ति, वायोः परिक्रीणानमत्थितम् ---भट्रि० ८८, वि . , छुटकारा,--अभ्युपगमः विशेष प्रकार का करार या 1. बेचना (इस अर्थ में आ०).....गवां शतसहस्रण प्रतिज्ञा-पत्र, --क्रियाभ्य पगमात्त्वेतत बीजार्थं यत्प्रदीयते विक्रीणीषे सुतं यदि-रामा०, विक्रीणीत तिलान् शुद्धान -- मनु० ९।५३, अवसन्न (वि०) गवाहों के बयान -मनु० १०१९०, ८१९७, २२२, शा० १११२ के कारण मुकदमा हार जाने वाला व्यक्ति,....इन्द्रियम् 2. विनिमय, अदलाबदली-नाकस्माच्छाण्डिलीमाता दे० 'कर्मेन्द्रिय', --कलापः 1. हिन्दु-धर्मशास्त्र द्वारा | विक्रीणाति तिलैस्तिलान्-पंच० २०६५ । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy