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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 775 ) किसी सिद्धि को प्राप्त करने वाला,--हीन (वि०) / गाङ्गमम्भः-उत्तर० 7 / 16, रघु० 10 / 3 2. संहार वेदमंत्रों से रहित अथवा विरुद्ध / करना, नष्ट करना 3. मिश्रित पेय 4. रई का डंडा मन्त्रणम्,--णा [ मन्त्र + ल्युट 1 विचार, परामर्श / ('मंथा' भी) 5. सूर्य 6. सूर्य की किरण 7. आँख मन्त्रवत् (वि०) [ मन्त्र+मतुप् ] मंत्रों से युक्त-रघु० का मैल, ढीढ, मोतियाबिंद 8. घर्षण से अग्नि सुल३।३१। गाने का उपकरण। सम० अचल,-अद्रिः, --गिरिः, मन्त्रिः =मन्त्रिन्, दे०। -पर्वतः, शल: मन्दर पर्वत (जो रई के डंडे के मन्त्रित (भू० क० कृ०) [ मन्त्र+क्त ] 1. जिसका परा- रूप में प्रयुक्त हुआ)---भामि० श५५,-उदकः, मर्श लिया जा चुका है 2. जिस पर सलाह ली गई, -उदधिः क्षीर सागर,----गुणः बिलोने के रस्सी, नेता, परामर्श लिया गया है 3. कहा हुआ, बोला हुआ -जम् मक्खन,-दण्डः, वण्डकः रई का डंडा।। 4. मंत्र पड़ा हुआ, अभिमंत्रित 5. निश्चित, निर्धारित / मन्थनः [मन्थ+ल्यट] रई का डंडा,-नम् बिलोना, क्षुब्ध मन्त्रिन् (पुं०) [ मन्त्र--णिनि ] मन्त्री, सलाहकार, राजा करना, विलोडित करना, इधर उधर हिलाना का मन्त्री रघु० 8117. मनु० 8 / 1 / सम०--धुर 2. घर्षण द्वारा आग सुलगाना,-नी मथनी, बिलौनी। (वि०) मंत्रालय के भार को संभालने में समर्थ,-पतिः, सम०--घटी बिलौनी, मथनी। -----प्रधानः, - प्रमुखः ... मुख्यः, --वरः,-श्रेष्ठः प्रधान | मन्थर (वि०) मन्थ् +अरच्] 1. शिथिल, मन्द, बिलंबमन्त्री, मुख्यमंत्री, प्रकाण्ड श्रेष्ठ या प्रमुख मन्त्री, कारी, सुस्त, अकर्मण्य--गर्भमन्थरा-श०४, प्रत्यभि-श्रोत्रिय: वेदों में निष्णात मन्त्री।। ज्ञानमंथरो भवेत् तदेव, दरमन्थरचरणविहारम्-गीत० मन्थ, मथ (भ्वा० ऋया० पर० मन्थति, मथति, मध्नाति, ११--शि० 6 / 40, 7 / 18, 5 / 62, रघु० 19 / 21 मथित, कर्म वा० मथ्यते) 1. बिलोना, मथना (प्रायः 2. जड़, मूढ़, मूर्ख-मंथरकौलिक: 3. नीच, गहरा, द्विकर्मक)-सुधां सागरं ममन्थः-या देवासुरैरमतमम्बुनि खोखला, मंदस्वर 4. विस्तृत, विशाल, चौड़ा, बड़ा धिर्ममन्थे-कि० 5 / 30 2.क्षुब्ध करना, हिलाना घुमाना, 5. झुका हुआ, टेढ़ा, वक्र,—र: 1. भंडार, कोष 2. सिर ऊपर नीचे करना तस्मात् समुद्रादिव मध्यमानात् के बाल 3. क्रोध, गुस्सा 4. ताजा मक्खन 5. रई का -रघु० 1679 3. पीस डालना, अत्याचार करना, डंडा 6. रुकावट, बांधा 7. गढ़ 8. फल 9. गुप्तचर, सताना, कष्ट देना दुःखी करना-मन्मथो मां मन्थ सूचक 10. वैशाख मास 11. मन्दर पर्वत 12. हरिण, निजनाम सान्वयं करोति-दश०, जातां मन्ये शिशिर बारहसिंघा,—रा कैकेयी की कुब्जादासी जिसने अपनी मथितां पद्मिनीं वान्यरूपाम्—मेघ० 83 4. चोट स्वामिनी को, राम के राज्यभिषेक के अवसर पर, पहुँचाना, क्षति पहुंचाना 5* नष्ट करना, मार डालना, अपने दो पूर्वदत्त वरदान (एक से राम का चौदह संहार करना, कुचल डालना - मथ्नामि कौरवशतं वर्ष के लिए निर्वासन, दूसरे से भरत का राज्यारोहण) समरे न कोपात् वेणी० 1115, अमन्थीच्च परानी राजा से मांगने के लिए उकसाया, रम् कुसुम्भ / कम्-भट्टि० 15 / 46, 14 / 36 6. फाड़ डालना, सम० ---विवेक (वि.) निर्णय करने में मन्द, विवेकविस्थापित करना, उद्-, 1. प्रहार करना, मारना, शक्ति से शून्य---मा० 1118 / नष्ट करना-मीमांसाकृतमुन्ममाथ सहसा हस्ती मन्थरः [मन्थ् / अरु] चंवर डुलाने से उत्पन्न हवा / मुनि जैमिनिम्-पंच० 233, धैर्यमन्मथ्य-मा० मन्थानः मन्थ्+आनच] 1. रई का डंडा, मथानी 2. शिव 1118, 'नष्ट करके या उखाड़ कर' 2. हिलाना, का विशेषण। अशान्त करना 3. फाड़ना, काटना या छीलना-रघ मन्थानकः [मन्थान+कन् | एक प्रकार का घास / 2037, निस्,-1. बिलोना, हिलाना, घुमाना--अमत- मन्थिन् (वि.) [मन्थ्+णिनि] 1. बिलोने वाला, मंथन स्यार्थे निर्मथिष्यामहे जलम् .. महा02. रगड़ से आग करने वाला 2. कष्ट देने वाला, तंग करने वाला पैदा करना 3. खरोंचना, पोटना 4. पूर्णतः नष्ट करना, ---(पुं०) वीर्य, शुक्र,-नी बिलौनी, मथनी। कुचल डालना, प्र-, 1. बिलोना (समुद्रः) प्रमथ्य- | मण्द् (भ्वा० आ० मन्दते-बहधावैदिक प्रयोग) 1. पीकर मानो गिरिमेव भूयः -रघु० 13 // 14 2. तंग करना, वृत्त होना 2. प्रसन्न होना, हर्षयुक्त होना 3. ढीलाअत्यन्त कष्ट देना, दुःखी करना, सताना 3. प्रहार ढाला होना, शिथिल होना 4. चमकना 5. शनैः 2 करना, खरोंचना, आघात करना 4. फाड़ डालना, चलना, टहलना, घूमना / / काट देना 5. उजाड़ देना 6. मार डालना, नष्ट करना / मन्द (वि०) [मन्द+अच] 1. धीमा, विलंबकारी, अक- मा० 4 / 9, 2 / 9 / मण्य, सुस्त, मंद, मटरगश्ती करने वाला---(न०) मन्थः मन्थ करणे घा] 1. बिलोना, इधर उधर हिलाना, भिन्दन्ति मन्द गतिमश्वमुख्यः--कू० 1111, तच्चरितं आलोडित करना, क्षुब्ध करना --मन्थादिव क्षुभ्यति गोविन्दे मनसिजमन्दे सखी प्राह-गीत०६ 2. निरु For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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