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( २५७ ) शिखिनम-विक्रम० ५.१३, पंच०२१८० ऋतु०१।१६, कलिङ्गाः (ब० व०) [कलि+गम् +ड] एक देश और २११४ 4. स्त्री की मेखला या करधनी (प्राय: 'कांची' उसके निवासियों का नाम; उत्कलादर्शितपथः कलिङ्गाऔर 'रशना' आदि के साथ) भर्तृ० ११५७, ६७, ऋतु० भिमुखो ययौ--- रघु०४।३८, (तंत्रों में इसकी स्थिति ३।२०, मच्छ० १२२७ 5. आभूषण 6. हाथी के गले इस प्रकार बताई गई है-जगन्नाथात्समारभ्य कृष्णाका रस्सा 7. तरकस 8. बाण 9. चन्द्रमा 10. चलता- तीरान्तगः प्रिये, कलिङ्गदेशः संप्रोक्तो वाममार्गपरायणः । पुरजा, बुद्धिमान् 11. एक ही छंद में लिखी गई कलिजः [क+ल । अण नि० साधु०] चटाई, परदा । कविता,—पी घास का गट्ठर ।
कलित (वि.) [कल Fक्त ] थामा हुआ, पकड़ा हुआ, कलापकम् [ कलाप+कन् ] एक ही विषय पर लिखें गये लिया हुआ, दे० कल।
चार श्लोकों का समह (जो व्याकरण की दृष्टि से | कलिन्दः [कलि+दा+खच, मम ] 1. वह पर्वत जिससे एक ही वाक्य हो) (चतुर्भिस्तु कलापकम् ) उदाहरण ___ यमुना नदी निकलती है 2. सूर्य । सम०-कन्या, के लिए दे०, कि० ३।४१, ४२, ४३. ४४ 2. वह ऋण -जा, तनया, नन्दिनी यमुना नदी की उपाधियाँ जिसका परिशोध उस समय किया जाय जब मोर। -कलिन्दकन्या मथुरां गतापि-रघु० ६१४८, कलिन्दअपनी पूंछ फैलावे,—क: 1. एक जत्था या गट्ठर जानीर-भामि०२।१२०, गीत० ३,-गिरिः कलिन्द 2. मोतियों की लड़ी 3. हाथी की गर्दन के चारों ओर नाम का पर्वत, जा, तनया, नंदिनी यमना नदी लिपटने वाला रस्सा 4. मेखला या करधनी की उपाधियाँ-भामि० ४।३, ४ । (=कलाप) शि० ९:४५ 5. (संप्रदायद्योतक) | कलिल (वि.) [कल +इलच ] 1. ढका हुआ, भरा हुआ मस्तक पर तिलकविशेष ।
2. मिला, घुला-मिला-तत एवाक्रन्दकलिलः कलकल:कलापिन् (पुं०) [कलाप+ इनि ] 1. मोर-कलाविलापि महावी० १3. प्रभावित, बशर्ते कि,—अकल्ककलिल:
कलापिकदम्बकम् शि० ६।३१, पंच० २६८०, रघु० शि० १९।९८ 4. अभेद्य, अछेद्य, लम् 1. बड़ा ढेर, ६।९ 2. कोयल 3. अंजीर का वृक्ष (प्लक्ष)।
अव्यवस्थित राशि-विशसि हृदय क्लेशकलिलं-भर्तृ० कलापिनी कलापिन् + डीप ] 1. रात 2. चाँद।
३।३४ 2. गड़बड़, अव्यवस्था-यदा ते मोहकलिलं कलायः [ कला+अय---अण ] मटर, शि० १३।२१ । बुद्धिय॑तितरिष्यति-भग० २।५२। कलाविकः [ कलम आविकायति विशेषेण रौति-कल कलुष (वि०) [ कल+उषच् ] मलिन, गन्दा, कीचड़ से +-आ+वि+के+क] मुर्गा।
भरा हुआ, मैला-गंगा रोध:पतनकलुषा गृहृतीव कलाहकः [कलम् आहुन्ति-कल+आ+ हन्+3+कन् ] प्रसादम्-विक्रम० ११८, कि० ८।३२, घट० १३ 2. एक प्रकार का बाजा।
श्वासावरुद्ध, बेसुरा, भरीया हुआ-कण्ठः स्तम्भितबाकलिः [ कल- इनि ] 1. झगड़ा, लड़ाई-भिड़ाई, असहमति, ष्पवृत्तिकलुषः-श० ४१६ 3. धुंधला, भरा हुआ
मतभेद- शि० ७।५५. कलिकामजित्-रघु० ९।३३, ६।४ 4. क्रुद्ध, अप्रसन्न, उत्तेजित-- भावावबोधकलुषां अमरु १९ 2. संग्राम, युद्ध 3. सृष्टि का चौथा यग, दयितेव रात्रौ- रघु० ५।६४ (मल्लि. 'कलुष' का कलियुग (इस यग की आय ४३२००० मानव वर्ष है अर्थ 'अयोग्य' और 'अक्षम' मानता है) 5. दुष्ट, पापी, तथा ईसापूर्व ३१०२ वर्ष की १३ फरवरी को इसका बुरा 6. क्रूर, निन्दनीय रघु० १४१७३ 7. अन्धकार आरंभ हुआ था) मनु० ११८६, ९।३०१,-कलिवानि युक्त, अन्धकारमय 8. निठल्ला, आलसी,—षः भैंसा, इमानि आदि० 4. मूर्तरूप कलियग (इसने नल को -षम् 1. गन्दगी, मैल, कीचड़-विगतकलुषमम्भः यातना दी थी) 5. किसी वर्ग का निकृष्टतम व्यक्ति -ऋतु० ३।२२ 2. पाप 3. क्रोध । सम०-योनिज 6. विभीतक या बहेड़े का वृक्ष 7. पासे का पहल जिस हरामी, वर्णसंकर--- मनु० १०५७, ५८।। पर एक का अंक अंकित है 8. नायक 9. बाण
कलेवरः,-रम् [कले शुक्रे वरं श्रेष्ठम्-अलुक स० ] ---(स्त्री०) बिना खिला फूल । सम०--कारः,
शरीर,-यावत्स्वस्थमिदं कलेवरगहम-भर्तृ० ३३८८, -----कारकः,-क्रियः नारद का विशेषण, --द्रमा,
हि० ११४७, भग०८१५, भामि० १११०३, २१४३ । -वृक्षः विभीतक या बहेड़े का वृक्ष,-युगम् कलिकाल,
कल्कः,-ल्कम [ कलक] 1. चिपचिपी गाद जो तेल लोहयुग-मनु० ११८५ ।।
आदि के नीचे जम जाती है, कीट 2. एक प्रकार की कलिका, कलि: (स्त्री०) कलि+कन +टाप् ] 1. अन- लेई या पेस्ट याज्ञः श२७७ 3. (अतः) गंदगी,
खिला फूल कली,-चूतानां चिरनिर्गतापि कलिका मैल 4. लीद, विष्ठा 5. नीचता, कपट, दंभ शि० बध्नाति न स्वं रजः- श०६।६, किमाम्रकलिकाभङ्ग- १९४९८6. पाप 7. घुटा पिसा चूर्ण-तां लोध्रकल्केन मारभसे-श०६, ऋतु०६।१७, रघु०९।३३ 2. अंक, हृताङ्गतलाम् ....कु. ७।९। सम-फलः अनार का रेखा।
पौधा।
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