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( २५८ ) कल्कनम् [ कल्क्+णिच् + ल्युट् ] घोखा देना, प्रतारणा, | मृतकल्पः, प्रतिपन्नकल्पः आदि । सम०-अन्तः सृष्टि मिथ्यापना।
की समाप्ति, प्रलय--भर्त० २।१६, स्थायिन् (वि०) कल्किः , कल्किन् (पुं०) [कल्क+णि+इन्, कल्क। कल्प के अन्त तक ठहरने वाला, आदिः सृष्टि में
इनि ] विष्णु का अन्तिम और दसवाँ अवतार (संसार सभी वस्तुओं का पुनर्नवीकरण, कारः कल्पसूत्र का का उसके शत्रुओं से उद्धार करने वाला तथा दुष्टों रचयिता, क्षयः सृष्टि का नाश, प्रलय- उदा०-पुरा का हनन करने वाला) [ विष्णु के अवतारों का कल्पक्षय वृत्त जातं जलमयं जगत्-कथा० २।१०, उल्लेख करते हुए जयदेव कल्कि नामक अन्तिम अव- -तरुः, द्रुमः,-पादपः, वृक्षः 1. स्वर्गीय वृक्षों में तार का इस प्रकार निर्देश करता है—म्लेच्छनिवह- से एक या इन्द्र का स्वर्ग, रघु० २७५, १७।२६, कु० निधने कलयसि करवालम्, धमकेतूमिव किमपि करा- २।३९, ६।४१ 2. इच्छानुरूप फल देने वाला काल्पलम्, केशव घृतकल्किारीर जय जगदीश हरे-गीत० निक वृक्ष कामना पूरी करने वाला वक्षनाबद्ध कल्प१२१०।]
द्रमतां विहाय जातं तमात्मन्यसिपत्रवृक्षम्--रघु० कल्प (वि.) [ कृप्+अच्, घा वा ] 1. व्यवहार में १४१४८, नै० १११५ 3. (आलं०) अत्यन्त उदार
लाने योग्य, सशक्त संभव 2. उचित, योग्य, सही पुरुष-सकलाथिसार्थकल्पद्रुमः-पंच०१,-पाल: शराब 3. समर्थ, सक्षम (संबं०, अपितुमुन्नन्त के साथ अथवा बेचने वाला, लता,-लतिका 1. इन्द्र की नन्दनसमास के अन्त में)-धर्मस्य, यशस: कल्प:--भाग० कानन की लता--भर्तृ० ११९०, 2. सब प्रकार की अपना कर्तव्य आदि करने में समर्थ, स्वक्रियायामकल्पः इच्छाओं को पूर्ण करने वाली लता-नानाफल: त०, अपना कर्तव्य पूरा करने में असमर्थ, इसी प्रकार
फलति कल्पलतेव भूमि:---भर्तृ० २।४६, तु० ऊ. -स्वभरणाकल्पः आदि,- ल्प: 1. धार्मिक कर्तव्यों का 'कल्पतर' से,—सूत्रम् सूत्रों के रूप में यज्ञ-पद्धति । विधि-विधान, नियम, अध्यादेश 2. विहित नियम, कल्पक: [क्लप+वल 11. संस्कार 2. नाई। विहित विकल्प, ऐच्छिक नियम--प्रभुः प्रथमकल्पस्य | कल्पनम् [क्लप् + ल्युट ] 1. रूप देना, बनाना, क्रमबद्ध योऽनुकल्पेन वर्तते--मनु० ११३० अर्थात् उस विहित करना 2. सम्पादन करना, कराना, कार्यान्वित करना विधि का अनुसरण करने में समर्थ जिसको दूसरे सब 3. छंटाई करना, कांटना 4. स्थिर करना 5. सजावट नियमों की अपेक्षा अधिमान्यता दी जाती है, प्रथम के लिए एक दूसरी पर रक्खी हुई वस्तु,-ना कल्पः-मालवि० १, अर्थात् बहुत अच्छा विकल्प,-एष 1. जमाना, स्थिर करना---अनेकपितृकाणां तु पितृतो व प्रथमः कल्पः प्रदाने हव्यकव्ययो:--मनु० ३।१४७ भागकल्पना-याज्ञ० २।१२०, २४७, मनु० ९।१६ 3. (अतः) प्रस्ताव, सुझाव, निश्चय, संकल्प----उदारः 2. बनाना, अनुष्ठान करना, करना 3. रूप देना. कल्प:-श०७ 4. कार्य करने की रीति, कार्य विधि, व्यवस्थित करना--मच्छ० ३।१४ 4. सजाना, विभूरूप, तरीका, पद्धति (धर्मानुष्ठानों में)-क्षात्रेण कल्पे- षित करना 5. संरचन 6. आविष्कार 7. कल्पना, नोपनीय---उत्तर० २, कल्पविकल्पयामास बन्या- -विचार कल्पनापोढः---सिद्धा-कल्पनाया अपोढः मेवास्य संविधाम्---रघु० ११९४, मनु० ७।१८५
8. विचार, उत्प्रेक्षा, प्रतिमा (मन में कल्पना की हुई) 5. सृष्टि का अन्त, प्रलय 6. ब्रह्मा का एक दिन या ---शा० २१७ 9. बनावट, मिथ्या रचना 10. जाल१००० युग, मनुष्यों का ४३२०००००० वर्ष का साजी 11. कपट-योजना, कूटयु क्ति 12. (मीमां० द. समय, तथा सृष्टि की अवधि का माप; श्रीश्वेतवाराह में)-अर्थापत्ति। कल्पे (वह कल्प जिसमें अब हम रहते हैं)--कल्प | कल्पनी [ कल्पन+ ङीप् ] कंची। स्थितं तनुभृतां तनुभिस्ततः किम्--शा० ४२ कल्पित (वि०) [ कृप्+णिच् +क्त ] व्यवस्थित, निर्मित, 7. रोगी की चिकित्सा 8. छ: वेदांगों में से एक-नामतः संरचित, बना हुआ, दे० कलप (प्रेर०)। -जिसमें यज्ञ का विधि-विधान निहित है तथा जिसमें कल्मष (वि०) [ कर्म शुभकर्म स्यति नाशयति-पृषो. यज्ञानुष्ठान एवं धार्मिक संस्कारों के नियम बतलाये साधुः ] 1. पापी, दुष्ट 2. मलिन, मैला,-षः,-बम गये हैं, दे० 'वेदांग' के नी० १. संज्ञा और विशेषणों के 1. लांछन, गन्दगी, उच्छिष्ट 2. पाप, स हि गगनअंत में जुड़ कर निम्नांकित अर्थ बतलाने वाला शब्द | विहारी कल्मषध्वंसकारी-हि० १।२१, भग० ४१३०, --"अपेक्षाकृत कुछ कम" 'प्राय: ऐसा ही' 'लगभग ५।१६, मनु० ४।२६०, १२।१८, २२ । बराबर' (हीनता की अवस्था के साथ २ समानता कल्माष (वि.) (स्त्री०-पी) [कलयति, कल+क्विप, को प्रकट करना)-कुमारकल्पं सुषुवे कुमारम्--रघु. तं माषयति अभिभवति, माष्-+-णिच् +अच, कल् ५.३६, उपपन्नमेतदस्मिन्नविकल्पे राजनि-श०२, चासो माषश्च-कर्म० स. 11. रंगबिरंगा, चित्तीप्रभातकल्पा शशिनेव शर्वरी-रघु. ३२२, इसी प्रकार | दार, काला और सफेद,-पः 1. चित्रविचित्र रंग
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