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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 1271 ) पात: किसी एक 1. 64, दशिन विसषि का आयोजन तकम् [ तक्+रक ] छाछ, मठ्ठा। सम-पूर्षिका, 3. त्वचा, खाल। सम० - उडूब पंख,-करणम् राबड़ी, उबाली हुई छाछ,. -पिण्डः छाछ (को कपड़े (तनूकरणम्) पतला करना,-पी ओछे मन वाला। में से छानने के पश्चात् रहा अवशेष), पपड़ी। तन्तुकरणम् (नपुं०) कातना, तार निकालना। तटः [तट्+अच्] 1. ढलान, कगार, किनारा 2. क्षितिज / तन्तुकार्यम् (नपुं०) जाला। सम-मः नदी किनारे का वृक्ष, पातः किनारे तन्त्रम् [ तन्त्र+अच् ] 1. खड्डी 2. धागा 3. सतत श्रेणी का तोड़ कर गिराना, भः किनारे की धरती। 4. रस्म, व्यवस्था, संस्कार आदि धार्मिक कार्यों का तटिनीपतिः [10 त०] नदियों का स्वामी, समुद्र / नियमित आदेश 5. मुख्य बात 6. प्रधान सिद्धान्त, तपरीणः [ तण्डुर+ख ] कीड़ा, कृमि, कीट। नियत 7. ऐसे कृत्यों का समूह जो अनेक प्रधान कार्यों तत्त्रस्यन्यायः (पुं०) मीमांसा शास्त्र का एक नियम में समान हो-यत्सकृत्कृतं बहनामुपकरोति तत्तन्त्र जिसके अनुसार किसी यज्ञ का नाम उसकी अभिव्यक्ति मित्युच्यते-मै० सं० 11 // 21 पर शा. भा० के अनुकूल रक्खा जाता है। 2. विश्व की व्यवस्था यतः प्रवर्तते तन्त्रम् - महा० वत्तम् (नपुं०) शरीर महा० 121267 / 9 / सम० १४.२.११४,-नः विशेषज्ञ, युक्तिः किसी एक -अम्यासः वास्तविकता का बार बार अध्ययन एवं तस्वाभ्यासात्-सां. का. 64, वशिन् (वि.) तत्रिभाण्डम् (नपुं०) . तभारतीय वीणा। असलियत को जानने वाला, भावः प्रकृति, वास्त- तन्त्रिल (वि.) [तन्त्र+इलच् ] प्रशासनकार्य में कुशल विक सत्ता,--संख्यानम् सांख्य सिद्धान्त का विशेषण त्वं तन्त्रिल: सेनापती राज्ञः प्रत्ययितः- मच्छ -भाग० 3 / 24 / 10 / 6 / 16 / 17 / तभावादिन् (वि.) [तया+वाद+इनि] वैसा होने का | तपः (तप+ऋतु:) ग्रीष्म ऋतु-तपर्तुमूर्तावपि मेदसां दावा करने वाला भरा--नै० 1141 / तद (सर्व० वि०) 1. किसी अनुपस्थित वस्तु या व्यक्ति | तपस् (नपुं०) [ तत्+असुन् ] 1. गर्मी, अ, प्रकाश का उल्लेख करने वाला सर्वनाम। सम० अन्य 2. पीडा, कष्ट 3. तपस्या 4 दण्ड / सम..-मर्षीय (वि०) उसको छोड़ कर कोई दूसरा, अपेक्ष (वि०) (वि.) तपश्चरण के लिए अभिप्रेत--सपोऽर्थी उसका खयाल करने वाला,-कालीन (वि.) उसी ब्राह्मणी धत्त गर्भम्-महा०११।२६।५,--कुश (वि.) काल से सम्बन्ध रखने वाला,-बेश्य (वि.) उसी तपश्चरण के कारण दुर्बल,-मुल. (वि.) तपस्या देश से सम्बन्ध रखने वाला,-धम्यं (वि०) उमी। से उत्पन्न,-वृद्ध (वि०) कठोर तपस्या के फलस्वरूण गुण में भाग लेने वाला,-..भव (वि.) उसी संस्कृत बूढ़ा। से जन्म लेने वाला, प्राकृत का एक भेद-तदभवस्त-| सप्त (वि०) [ तप्--क्त] 1. गर्म किया हुआ, जला समो देशोत्यनेकः प्राकृतक्रमः-काव्या० १,-रूपः हुआ 2. पिघला हुआ 3. पीडित, कष्टप्रस्त 4. अभ्य(वि०) उसी प्रकार के रूप वाला,-सदियः उसका स्त / सम-कुम्भः, कृपः एक नरक का नाम, माता, किसी विशेष क्षेत्र में प्रामाणिकता रखने वाला, ---तप्त (वि.) बार बार उबाला मा, बार बार --संख्याक (वि.) उस अंक के समान / गरम किया हुआ,-मुना किसी गर्म पातु की छाप तबाधितषम्तन्यायः (पुं०) मीमांसा का एक नियम | से शरीर पर किसी दिव्य शस्त्र के रूप में अधिकार जिसके अनुसार उत्कर्ष की उक्ति में मारम्भ से चिह्न अंकित करना,--रूपम्,-: रूपकम् शुख की लेकर वह सब विवरण सम्मिलित होता है जिसके | हुई चांदी, बालकाः वाल के गर्म कण / लिए वह दिया जाता है और साथ ही अपकर्ष की | तापिन् (वि.) [ ताप+इनि] पीडा पहुंचाने वाला उक्ति अन्त तक उस सभी विवरण पर लागू है -कि० 042 / / तरङ्गमालिन् (पुं०) समुद्र / तवपपवेशम्यायः (पुं०) ऊपर बताये गये 'तत्प्रख्यन्याय' | तरङ्गवती नदी, दरिया। के समान / सरलकरण (वि०) [ब० स०) चञ्चल तथा पुर्वल ततत्वम् (नपुं०) सङ्गीत में आवाज को लम्बा करना, ज्ञानेन्द्रियों वाला। - सङ्गीत की गति धीमी करना। | तरुकोटरम् (नपुं०) [ 10 त०] वृक्ष की कोटर सनु (वि.) [तन्-+-उन्] 1. पतला, दुबला, कृश | या खोखर। 2. सुकुमार 3. बढ़िया, नाजुक 4. थोड़ा, छोटा, तस्तूलिका | चमगीदा। स्वल्प,-(स्त्री०) 1. शरीर, व्यक्ति 2. प्रकृति | तरुधूलिका) उक्ति अन्त त दिया जाता है। ये तत्प्रख्यन्याय For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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