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एछनम् [उञ्छ-+ ल्युट ] खेत में पड़े अनाज के दानों को। बार तो 'आहो' 'आहोस्वित' या 'स्वित्' को 'उत' एकत्र करना।
से जोड़ दिया जाता है (ग) साहचर्य, संयोग ('और' उटम् [उ+टक ] 1. पत्ता 2. घास। सम०-जः- जम् । 'भी' शब्दों द्वारा समुच्चयात्मकता का बोध कराने
--(उटेभ्यो जायते) झोंपड़ी, कुटिया, आश्रम वाला)-उत्त बलवानुताबल: (घ) प्रश्नवाचकता-- (पर्णशाला)-उटजद्वारविरूढं नीवारबलिं विलोक- -उत दण्ड: पतिष्यति 2. प्रति-इसके विपरीत, दूसरी यतः-श० ४।२०, रघु० ११५०, ५२।
ओर, बल्कि- सामवादाः सकोपस्य तस्य प्रत्युत उडुः (स्त्री०) उडु (नपुं०) [ उड्+कु बा०] 1, नक्षत्र, दीपका:- शि० १५५ 3. किम् ...,कितना अधिक,
तारा-इन्दुप्रकाशांन्तरितोडुतुल्या:-रकु० १६१६५, 2. कितना कम दे० किम्, उत-उत या-या-एकमेव दरं जल (केवल नपुं० में) । सम०--चक्रम-राशि- पुसामृत राज्यमुताश्रमः -- गण । चक्र,-पः,पम् लट्ठों का बना बेड़ा,-तितीर्पर्दस्तरं | उतथ्यः (?) अंगिरा का पुत्र, तथा बृहस्पति का बड़ा मोहादुडुपेनास्मि सागरम्-रघु० ११२, केनोडुपेन भाई।-अनुजः, -अनुजन्मन् (पुं०) बृहस्पति, देवपरलोकनदी तरिष्ये-मच्छ० ८।२३ (---पः) चंद्रमा ताओं का गुरु,- तथ्यमुतथ्यानुजवज्जगादाग्रे गंदाग्रजम्---मृच्छ० ४१२४-पतिः,-राज् चन्द्रमा--जितमुडु- - शि० २।६९ । पतिना-रत्ना० ११५, रसात्मकस्योडुपतेश्च रश्मयः उत्क (वि.)[उद-स्वार्थे कन्] 1 इच्छुक, लालायित, उत्क-कु० ५२२-पथः आकाश, अन्तरिक्ष ।
ठित (समास में)-अद्रिसुतासमागमोत्क:-कु० ६।९५ उडम्बरः [उं शम्भुं वृणोति-उ++खच, मुम् उत्कृष्ट: मानसोत्का:-मेघ० ११, कई बार तुमुन् के साथ-शि०
उम्बर:--प्रा० स० दस्य डत्वम् ] 1. गूलर का वृक्ष ४।१८, 2. विद्यमान, दुःखी, शोकान्वित 3. उन्मना । (औदुम्बर), 2. घर की देहली या ड्योढ़ी 3. हिजड़ा। उत्कञ्चुक (वि.) [ब० स०] बिना अंगिया पहने या बिना 4. एक प्रकार का कोढ़ (-रम् भी),-रम् 1. गूलर
कवच धारण किये हुए। का फल 2. तांबा।
उत्कट (वि.) [उद्+कटच्] 1. बड़ा, प्रशस्त-उत्तर० उड़पः-उड़पः ।
४।२९ 2. शक्तिशाली, ताकतवर, भीषण 3. अत्यउड्डयनम् [ उद्+ डी+ल्युट | ऊपर उड़ना, उड़ान लेना धिक, ज्यादह-अत्युत्कटः पापपुण्यरिहव फलमश्नुते
-गतो विरुत्योड्डयने निराशताम्--नं. १।१२५।। हि० १४८५, 4. भरपूर, समद्ध 5. मदिरासेवी, मदमत्त, उड्डामर (वि०) [प्रा० स०] 1 रुचिकर, श्रेष्ठ 2. उन्मत, मदोत्कट 6. श्रेष्ठ, उत्तम 7. विषम,-ट: 1.
प्रबल, भयावह ---उड्डामरव्यस्तविस्तारिदो:खण्डपर्या- हाथी के मस्तक से बहनेवाला मद 2. मदयुक्त हाथी। सितक्ष्माधरम् --मा० २।२३।
उत्कण्ठ (वि.) [उन्नतः कण्ठो यस्य] 1. गर्दन ऊपर को उड्डीन (भू० क० कृ०) [ उद्+-डी---क्त ] उड़ा हुआ, उठाये हए, (अतः) तत्पर, तैयार, करने के लिए
ऊपर उड़ता हुआ,-नम् 1. ऊपर उड़ना, उड़ान लेना उत्सुक (समास में)- आज्ञापनोत्कण्ठः . श. २, 2. पक्षियों की एक विशेष उड़ान ।
रथस्वनोत्कण्ठमगे वाल्मीकीये तपोवने-रघु०१५।११ उड्डीयनम् [ उड्ड: स इव आचरति-क्यङ, उड्डीय 2. (अत:) चिन्तातुर, उत्सुक,-ठः,ठा संभोग करने +ल्युट ] उड़ान।
की एक रीति । उड्डीशः [ उद्+डी+क्विपु-उड्डी तस्य ईशः ] शिव। उत्कण्ठा [उद+कण्ठ-+अ+टाप्] 1. चिन्तातुरता, बचनीउड़ः [उड+रक] देश का नाम, वर्तमान उड़ीसा, दे० ओड्र। यास्यत्यद्य शकुन्तलेति हृदयं संस्पृष्टमुत्कण्ठया--श० उण्डेरकः ? ] आटे का लडड, गोला, रोटी-तथैवोंडेरक
४।५, 2. प्रिय वस्तु या प्रियतम पाने की लालसा स्रजः--याज्ञ० १११२८। ।
-दृष्टि रविकं सोत्कण्ठमुदीक्षते--अमरु २४, 3. खेद, उत् (अव्य०) [ उ+क्विपू] (क) सन्देह (ख) प्रश्न शोक, किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति का लप्त हो वाचकता (ग) सोचविचार और (घ) तीव्रता।
जाना- गाढोत्कण्ठा ..मा० १२१५, मेघ० ८३ ।। उत (अव्य०)[उ-+ क्त] 1. निम्नांकित भावनाओं को अभि- उत्कण्ठित (भू० क० कृ०)[उद्+कण्ठ+क्त] 1. चिन्ता
व्यक्त करने वाला अव्यय -(क)सन्देह, अनिश्चितता तुर, व्यथित होनेवाला, शोकान्वित 2. किसी प्रिय अनुमान (या),-तत्किमयमातपदोषः स्यादुत यथा में वस्तु या व्यक्ति के लिए लालायित,–ता अपने अनुमनसि वर्तते----श० ३, स्थाणुरयमत पुरुषः- गण.
पस्थित प्रेमी या पति से मिलने की प्रबल लालसा (ख) विकल्प, प्राय: 'कि' का सहवर्ती (या),-किमिदं रखने वाली नायिका, आठ नायिकाओं में से एकगभिरुपदिष्टमुत धर्मशास्त्रेषु पठितमत मोक्षप्राप्ति- सा० द० १२१ में दी गई परिभाषा--आगन्तुं कृतयुक्तिरियम्-का० १५५, कु०६।२३, 'उत' के स्थान चित्तोऽपि देवान्नायाति यत्प्रियः, तदनागमदुःखार्ता
विरहोत्कण्ठिता तु सा ।
ला (या),
पम्- काशास्त्रषु
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