________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 744 ) सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य को राजगद्दी पर बिठाया भग० 15, 2. उपभोग करना, प्रयोग करना, तथा काशिराज की दो कन्याओं के साथ उसका / (सम्पत्ति, भूमि आदि को अधिकार में करना-विक्रम विवाह कराया, एवं अपने पुत्र तथा पौत्रों (कौरव 331, मनु० 8 / 146, याज्ञ० 2 / 24 3. शारीरिक पांडवों) का अभिभावक बना रहा। महाभारत के उपभोग करना (आ०) सदयं बुभुजे महाभुजः-रघु० युद्ध में वह कौरवों की ओर से लड़ा, परंतु शिखंडी 8 / 7, 4 / 7, 1541, 1814, सुरूपं वा कुरूपं वा पुमानिकी सहायता से अर्जुन ने युद्ध में भीष्म को घायल त्येव भुञ्जते-मन०९।१४, 4. हुकूमत करना, शासन कर दिया, तब उसे 'शरशय्या पर रक्खा गया। करना, प्ररक्षा करना, रखवाली करना (पर०)... राज्य परन्तु अपने पिता से इच्छामृत्यु का वरदान पाने के न्यासमिवाभुनक-रघु०१२।१८, एकः कृत्स्ना(धरित्री) कारण वह तब तक प्रतीक्षा करता रहा जब तक कि नगरपरिघप्रांशुबाहु नक्ति०--श० 2114, 5. भोगना, उत्तरायण में न प्रविष्ट हो, जब सूर्य ने वसन्त विषुव सहन करना, अनुभव करना-वृद्धो नरो दुःखशतानि को पार किया तब कहीं उसने अपने प्राण त्यागे / भुडवते-सिद्धा. 6. बिताना, (समय) यापन करना वह अपने संयम, बुद्धिमत्ता, संकल्प की दृढ़ता तथा --प्रेर० (भोजयति-ते) खिलाना, भोजन कराना, ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति के कारण अत्यंत इच्छा (बुभुक्षति-ते) खाने की इच्छा करना आदि / प्रसिद्ध हो गया)। सम-जननी गंगा का विशेषण, अनु--उपभोग करना, (बरे या भले का) अनुभव -पञ्चकम् कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा करना, (बुरे फल) भुगताना--मेघमुक्तविशदां सतक के पांच दिन (यह पाँच दिन भीष्म के लिए चन्द्रिकाम् (अन्वभुंक्त)-रघु० 19 // 39, कु०७५, पावन माने जाते हैं)। ---सूः (स्त्री०) गंगा नदी उप---, 1. मजा लेना, चखना--तपसामुपभुजाना: का विशेषण। फलानि --कु० 6 / 10, 2. शारीरिक रूप से मजे लेना भीष्मक: [भीष्म+कन्] 1. शन्तनु का गंगा से उत्पन्न (यथा-स्त्रीसंभोग) 3. खाना या पीना-अोपपुत्र 2. विदर्भ के राजा का नाम, जिसकी पुत्री भुक्तेन बिसेन --कु० 3 / 37, पयः पुत्रोपभुंश्व-रघु० रुक्मिणो को कृष्ण उठा लाया था। 2 / 65, 1467, भट्टि० 8 / 40, 4. भोगना, सहन भुक्त (भू. क० कृ०) [भुज्+क्त] 1. खाया हुआ 2. उप- करना, झेलना-मनु० 1218, 5. अधिकार में करना भुक्त, प्रयुक्त 3. भोगा, अनुभव किया 4. अधिकृत रखना, परि---1. खाना 2. उपयोग करना, आनन्द किया, (विधि में) अधिकार में लिया-दे० भुज, लेना-न खल च परिभोक्तुं नैव शक्नोमि हातुम-श० ---क्तम् 1. उपभोग करने या खाने की क्रिया 2. जो 5 / 19 कि० 5 / 5, 8157, सम्-1. खाना 2. उपखाया जाय, आहार 3. वह स्थान जहाँ किसी ने भोग करना 3. शारीरिक रूप से मजे लेना / खाया है। सम०-उच्छिष्टम,---शेषः,- समुज्झितम् भुज् (वि.) [भुज+क्विप्] (समास के अन्त में) खाने किये हए भोजन का अवशिष्ट, जठन, उच्छिष्ट अंश, वाला, मजे लेने वाला, भोगने वाला, राज्य करने --भोग (वि.) 1. जिसने कुछ भोगा है, या आनन्द वाला, शासन करने वाला, स्वधाभुज, हुतभुज, पाप उठाया है, उपभोक्ता 2. जो प्रथक्त किया गया है, क्षिति° मही° आदि, (स्त्री०) 1. उपभोग 2. लाभ, उपभुक्त, नियुक्त,--सुप्त (वि०) भोजन करके | हित। सोया हुआ। भुजः [भुज+क] 1. भुजा-ज्ञास्यसि कियदभजो मे रक्षति भुक्तिः (स्त्री०) [भुज+क्तिन] 1. खाना, उपभोग करना मौर्वीकिणाङ्क इति--श० 1113 रघु० 1134, 2074, 2. (विधि में) अधिकृत सामग्री, सुखोपभोग --पंच० 2 / 5, 2. हाथ 3. हाथी का संड 4. झुकाव, वक्र, 3194, याज्ञ० 2 / 22 3. खाना 4. ग्रह की दैनिक मोड़ 5. गणितविषयक आकृति का एक पाव, यथा गति / सम०-प्रदः एक प्रकार का पौधा, मूंग,-वजित विभुज त्रिकोण' 6. त्रिकोण आधार / सम० (वि०) जिसके उपभोग करने की अनुमति नहीं है। - --अन्तरम्,–अन्तरालम् हृदय, छाती---रघु० 3 / 54 भुग्न (भू० क० कृ०) [भुज+क्त, तस्य नः] 1. झुका 19 / 32, मालवि० ५।१०,--आपोड: भुजपाश में हुआ, विनत, प्रवण-वायुभुग्न, रुजाभुग्न आदि जकड़ना, बाहों में लिपटाना, कोटरः बगल,-ज्या 2. टेढ़ा, वक्र,-भट्टि० 1138, विक्रम० 4132 3. टूटा आधार की लम्बरेखा, दण्डः-बाहुदंड, दलः,-लम् हुआ (भग्न का अर्थ)। हाथ,बन्धनम् लिपटना, आलिंगन करना-घटय भुज् i (तुदा० पर० भुजति, भुग्न) 1. झुकाना 2. मोड़ना, भुजबन्धनम्--गीत०१०, कु० ३।३९,-बलम्-वीर्यम् टेढ़ा करना। ii (रुधा० उभ० भुनक्ति, भुक्ते) भुजा की सामर्थ्य, पुट्ठों की ताकत,-मध्यम् छाती 1. खाना, निगलना, खा पी जाना (आ०)-शयनस्थो -----रघु० 1373, मूलम् कंधा, शिखरम्-शिरस् न भुंजीत-मनु० 4174, 31146, (नपुं०) कंधा,-सूत्रम् आधार लंबरेखा। For Private and Personal Use Only