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आटीकनम् [आटोक् + ल्युट ] बछड़े को उछल-कूद। आण्डीर (वि.) [आण्डमस्ति अस्य-ईरन्] 1. बहुत अंडे आटीकरः [आटी-:-कृ+-अय् ] साँड ।
रखने वाला, 2. वयस्क, पूर्णवयस्क (जैसे कि सांड)। आटोपः [आ+तुप्+घञ पृषो० टत्वम् ] 1. घमंड, आतङ्कः [आतङ्क घा, कुत्वम् 1. रोग, शरीर को
स्वाभिमान, हेकड़ी, साटोपम्--घमंड के साथ, राज- बीमारी-दीर्घतीवाभयग्रस्त ब्राह्मणं गामथापि वा, कीय या शाही ढंग से (रंगमंच के निर्देश के रूप में दृष्ट्वा पथि निरातङ्क कृत्वा वा ब्रह्महा शुचिः-याज्ञ० प्रायः प्रयुक्त) 2. सूजन, फैलाव, विस्तार, फुलाना ३.२४५ 2. पोड़ा, आधि, व्यथा, वेदना-किन्नि. -~-लो०--'फटाटोपो भयङ्कर:--शि० ३।७४।
मितोऽयमातङ्कः-श० ३, आतङ्क स्फूरितकठोरगर्भआडम्बरः [ आ डम्ब्-अरन् ] 1. घमंड, हेकड़ी 2. गुर्वी-उत्तर० १२४९, विक्रम० ३१३, डर, आशंका
दिखावा, संपत्ति, वाहरी ठाट-बाट--विरचितनारसिंह- .. पुरुषायुपजोविन्यो निरातङ्गा निरोतय:--रघ० रूपाइम्बरम्-का०५, निर्गणः शोभते नव विपुलाडम्बरो १।६३, भीति, वास 4. ढोल या तबले की आवाज। ऽपि ना-भामि० १११५, 3. आक्रमण के संकेतस्वरूप आतञ्चनम् [आ--तञ्च+ ल्युट्] 1. जमाना, गाढ़ा करना, बिगुल का बजना 4. आरंभ 5. प्रचण्डता, रोष, आवेश 2. जमा हुआ दूध 3. एक प्रकार को छाछ 4. प्रसन्न 6. हर्ष, प्रसन्नता 7. बादलों की गरज, हाथियों करना, सन्तुष्ट करना 5. भय, संकट 6. गति, वेग । को चिंघाड़ 8. युद्धभेरी 9. युद्ध का कोलाहल या | आतत (वि०) |आ+तन्+क्त 1. फैलाया हुआ, विस्ताशोर-गल।
रित 2. ताना हुआ (जैसे कि धनुष की डोरी) । आडम्बरिन् (वि.) [आडम्बर+इनि | हेकड़, घमंडी।।
| आततायिन (वि० या-संज्ञा) [आततेन विस्तीर्णन शस्त्राआढकः --कम् [आ। ढोक---घज, पषो०] अनाज की दिना अयितुं शीलमस्य-तारा०] 1. किसी का वध
माप, चौथाई द्रोण - अष्टमुष्टिर्भवेत् कुचिः कुंचयोऽप्टो करने के लिए प्रयत्नशील, साहसी गरुं वा बाल वृद्धौ तु पुष्कलम्, पुष्कलानि च चत्वारि आढक: परि- बा ब्राह्मणं वा बहुश्रुतं, आततायिनमायान्तं हन्यादेवाकीतितः ।
विचारयन् । मन० ८।३५०-१, भग० २३६, 2. आढच (वि०) [आ+ध्य+क, पृषो०-तारा०] 1. धनी, जघन्य पाप करने वाला जैसे कि चोर, अपहरणकर्ता,
धनवान् –आढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदशो हत्यारा, आग लगाने वाला महापातकी आदि-अग्निदो मया-भग० १६.१५, पंच ५।८, 2. (क) सम्पन्न, गरदश्चैव शस्त्रोन्मत्तो धनापहः, क्षेत्रदारहरश्चैतान् समृद्ध, सम्पन्नतायुक्त, (करण. या समास के अंतिम षड् विद्यादाततायिनः--शुक्र०।। पद के रूप में)-सत्य पंच ३.९, विल्कुल सच्चा | आतपः (आ- तप्- घश] 1. गर्मी (सूर्य, अग्नि आदिकी)
-बंशसंपल्लावण्याझ्याय-दश० १८ (ख) मिश्रित, धप, -आतपायोज्झितं धान्यं -महा०, धूप में डाला सिञ्चित, गन्धाढय:, स्रज उत्तमगन्धाढ्या:-- महा0 3. हा: प्रचंड -ऋतु० ११११ 2. प्रकाश । सम०-अत्ययः प्रचुर, पर्याप्त। सम० .. चर (वि.) [स्त्री०- री] सूर्य को गर्मी (धूप) का गुजरना, या बीत जाना, सूर्यास्त जो कभी ऐश्वर्यशाली रहा हो ।
----आतपात्ययसंक्षिप्तनीवारासु-रघु० ११५२,-अभाव: आढयङ्करण (वि.) [स्त्री०---णी] समृद्ध करना,--णम् छाया, उदकम् मरीचिका,..त्रम्,-त्रकम् छाता समृद्ध करने का साधन, धन ।।
-----तमातपक्लान्तमनातपत्रं-रघु० २।१३, ४७, पद्म आढचम्भविष्णु,-- भावुक (वि.) [आढयं-भू + इष्णुख, ४१५ राज्यं स्वहस्तधृतदण्डमिवातपत्रम् --श० ५।६,
उका वा धन सपन्न या प्रतिष्ठित होने वाला। -लङ्घनम् गर्मी या धूप में रहना, लू लग जाना आणक (वि.) [अणक+अण] नीच, ओछा, अधम-कम --आतपलङ्घनादलबदस्वस्थशरीरा शकुन्तला---श० विशेष आसन में होकर मैथुन करना, रतिबंध--आणक ३, ---वारणम् छाता छतरी-नृपतिककुदं दत्वा यूने सुरतं नाम दम्पत्योः पार्श्वसंस्थयोः ।
सितातपवारणम्-रघु० ३।७०, ९।१५,---शुष्क (वि.) आणव (वि०) (स्त्री०-वी) [अणु+अण्] अत्यन्त धूप में सुखाया हुआ। छोटा,-वम् अत्यंत छोटापन या सूक्ष्मता।
आतपनः [आ-त+णिच् + ल्यट] शिव । आणिः (पुं० स्त्री०) [अण्+इण्] 1. गाड़ी के धुरे की | आत (ता) रः [आतरति अनेन आ-+त+अप, घा वा]
कील, अक्षकील 2. घुटने के ऊपर का भाग 3. हृद, दरिया की उतराई, मार्गव्यय, भाड़ा। सीमा 4. तलवार की धार ।
आतर्पणम् [आ+तृप+ल्युट्] 1. सन्तोष 2. प्रसन्न करना, आण्ड (वि.) [अण्डे भवः—अण] अंडे से पैदा होने वाला | सन्तुष्ट करना, 3. दीवार या फर्श पर सफेदी करना
(जैसे कि पक्षी),--: हिरण्यगर्भ या ब्रह्मा की उपाधि (उत्सव आदि के अवसर पर)। ---उम् 1. अंडों का ढेर, पशु-पक्षियों का समूह, पक्षि- आतापि (यि) न् [आ+तप् (ताय)+णिनि] एक पक्षी, • शावक 2. अंडकोष, फोता।
चील।
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