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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पयात्मानम् - विक्रम०१, प्र--(आ०) 1. कूच करना, / 7144, समुद् , 1. खड़ा होना, उठना 2. मिल कर बिदा होना ---पारसीकांस्ततो जे प्रतस्थे स्थलवमना खड़े होना 3. मृत्यु से उठना, फिर जीवित होना, -रघु०४।६० 2. दृढ़ता पूर्वक खड़े रहना 3. प्रस्थापित होश में आना 4. उदय होना, फूटना, समुप-1. निकट होना 4. पहुँचना, निकट आना (प्रेर०) 1. पीछे हटाना आना, पास जाना, पहुँचना 2. आक्रमण करना 2. भेजना, तितर-बितर करना तो दंपती स्वां प्रति 3. आ पड़ना, घटित होना 4. सट कर खड़े होना, राजधानी प्रस्थापयामास वशी वशिष्ठः-रघु० 2170, संप्र , (आ०) कूच करना, बिदा होना, संप्रति-, प्रति--, 1. दढ़ता पूर्वक खड़े रहना, प्रस्थापित होना 1. लटकना, आश्रित होना, निर्भर होना 2. दढ़ होना, 2. सहायता किया जाना 3. आश्रित या निर्भर रहना स्थिर होना। 4. ठहरना, डटे रहना, स्थित रहना, प्रत्यय---, स्थाणु (वि०) [ स्था-+नु, पृषो० णत्वम् ] 1. दृढ़, (आ.) विरोध करना, शत्रवत् व्यवहार करना, अटल, स्थिर, टिकाऊ, अचल, गतिहीन, गुः 1. शिव आक्षेप करना ( किसी तर्क का) अत्र केचित् प्रत्यव- का विशेषण-- सःस्थाणुः स्थिरभक्तियोगसुलभो निःश्रेतिष्ठन्ते शारी०, भामि० 277, (प्रेर०) अपने यसयास्तु वः विक्रम० 1 / 1 2. टेक, पोल, स्तम्भ आपको सचेत या स्वस्थ करना, वि-, (आ०) कि स्थाणुरयमुत पुरुषः 3. खूटी, कील 4. धूपघड़ी 1. अलग खड़े होना 2. स्थिर रहना, डटे रहना, बस का शंकु 5. बी, नेजा 6. दीमकों का घोंसला, बामी जाना, अचल रहना 3. फलना, विकीर्ण होना, विप्र , 7. औषधि या सुगन्ध द्रव्य, जीवक (0, नपुं०) (आ०) 1. कूच करना 2. फैलना, व्यव, (आ०) शाखा रहित तना, नंगा डंठल, मुंडा पेड़, डूंठ / 1. अलग-अलग रक्खा जाना 2. क्रमबद्ध किया जाना सम० छेदः वह जो वृक्षों के तने काटता है, जो 3. निश्चित होना, स्थिर होना, स्थायी होना - वच तने को छील कर साफ़ करता है-स्थाणुच्छेदस्य नीयमिदं व्यवस्थितम् --कु० 4 / 21 4. आश्रित होना, केदारमाहुः शल्यवतो मगम-मन० ९।४४,-भ्रमः निर्भर होना, (प्रेर०) 1. क्रमबद्ध करना, प्रबंध किसी थूणी या पोल को कुछ और ही समझ लेना / करना, समंजित करना 2. निश्चित करना, स्थापित | स्थाण्डिलः [स्थाण्डिल+अण्] 1. वह संन्यासी जो बिना करना 3. पृथक् करना, अलग-अलग रखना, सम् / विस्तर के भूमि पर या यज्ञीय भूखंड पर सोता है (आ०) 1. बसना, रहना, परस्पर निकटवर्ती होना 2. साघु या धार्मिक भिक्षु / –तीक्ष्णाद्विजते मदो परिभवत्रासाम्न संतिष्ठते स्थानम् [स्था+ल्युट् ] 1. खड़ा होना, रहना, ठहरना, .. - मुद्रा० 35 2. खड़े होना 3. होना, विद्यमान नरन्तर्य, निवास स्थान-उत्तर० 3 / 32 2. स्थिर या होना, जीवित होना 4. उटे रहना, आज्ञा मानना, अटल होना 3. स्थिति, दशा 4. जगह, स्थल, सिद्धान्त का निर्वाह करना-दारिद्रयात्पुरुषस्य बान्धव- (भवन आदि के लिए) भूमि, संस्थिति अक्षमालाजनो वाक्ये न संतिष्ठते मृच्छ० 1136 5. पूरा मदत्वास्मात्स्थानात्पदात्पदमपि न गन्तव्यम्-का० होना सद्यः सतिष्ठते यज्ञस्तथा शौचमिति स्थितिः 5. संस्थान, स्थिति, अवस्था 6. संबन्ध, हैसियत -मनु० 5 / 98 (यज्ञपुण्येन युज्यते-कुल्लू०) 6. समाप्त पितस्थाने' (पिता के स्थान में या पिता की हो जाना, विघ्न पड़ जाना-भट्रि० 811 7. निश्चेष्ट हैसियत से) 7. आवास, घर निवासस्थान स एव खड़े रहना, स्थिर हो जाना ( पर०) क्षणं न (नक्र:) प्रच्युतः स्थानाच्छुनापि परिभूयते--पंच. संतिष्ठति जीवलोकः क्षयोदयाभ्यां परिवर्तमान:-हरि० 3046 8. देश, क्षेत्र, जिला, नगर 9. पद, दर्जा, 8. मरना, नष्ट होना (प्रेर०) 1. स्थापित करना, प्रतिष्ठा-अमात्यस्थाने नियोजित: 10. पदार्थ-गणाः बसाना 2. रखना 3. स्वस्थचित्त होना, सचेत होना पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्गं न च वय:-उत्तर०४।११ देवि संस्थापयात्मानम् - उत्तर० 4 4. अधीन करना, 11. अवसर, बात, विषय, कारण पराभ्यूहस्थाना. नियंत्रण में रखना-मनु० 9 / 2 5. रोकना, प्रतिबद्ध न्यपि तनुतराणि स्थगयति मा० 1314, स्यानं करना 6. मार डालमा, समधि-, प्रधानता करना, जरापरिभवस्य तदेव पुंसाम-सुभा०,इसी प्रकार कलह, शासन करना, प्रशासन करना, अधीक्षण करना, कोप, विवाद आदि 12. उचित या उपयुक्त जगह समव (आ०) 1. स्थिर रहना, अचल रहना --.स्थानेष्वेव नियोज्यन्ते भृत्याश्चाभरणानि च . पंच० 2. निश्चेष्ट रहना 3. तत्पर रहना (प्रेर०) 1. नींव 1172 13. उचित या योग्य पदार्थ-स्थाने खल डालना 2. रोकना,-समा-- 1. सहना, अभ्यास सज्जति दृष्टिः मालवि० 1, दे० 'स्थाने' भी करना-तपो महत्समास्थाय 2. व्यस्त करना, सम्पा- 14. अक्षर का उच्चारणस्थान (यह आठ है..-अष्टौ दन करना 3. प्रयोग में लाना, काम में लगाना स्थानानि वर्णानामुरः कण्ठः शिरस्तथा जिह्वामूलं 4. अनुसरण करना, पालन करना मन० 412, / च दन्ताश्च नासिकोष्ठौ च ताल च-शिक्षा०१३ गन्तव्यम् तस्थाने' अवस्था For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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