SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 893
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोक तीन है स्वर्गपृथ्वी और पाताल लोक; अधिक विस्तृत वर्गीकरण के अनुसार लोक चौदह है; सात तो पृथ्वी से आरम्भ करके ऊपर क्रमशः एक दूसरे के ऊपर अर्थात् 'भूर्लोक भवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, और सत्य या ब्रह्मलोक, तथा अन्य सात पृथ्वी से नीचे की ओर एक दूसरे के नीचे अर्थात् अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल) 2. भूलोक, पृथ्वी इहलोके 'इस संसार में' (विप० परत्र) 3. मानव जाति, मनुष्य जाति, मनुष्य- लोकातिग, लोकोत्तर इत्यादि 4. प्रजा, राष्ट्र के व्यक्ति (विप० राजा) स्वसुखनिरभिलाषः खिद्यसे लोकहेतोः -- श० 5 / 7, रघु० 418 . समुदाय, समूह, समिति आकृष्टलीलान् नरलोकपालान् रघु०६।१, शशाम तेन क्षितिपाललोकः .-7 / 3 6. क्षेत्र, इलाका, जिला प्रान्त 7. सामान्य जीवन, (संसार का) सामान्य व्यवहार --लोकवत्त लीलाकैवल्यम् .. ब्रह्म० 21133, यथा लोके कस्यचिदाप्तषणस्य राज्ञः शारी० (इसी ग्रन्थ के और अन्य स्थल) 8. सामान्य लोक प्रचलन (विप० वैदिक प्रयोग या वाग्धारा- वेदोक्ता बैदिका: शब्दाः सिद्धा लोकाच्च लौकिकाः प्रियतद्धिता दाक्षिणात्या; यथा लोके वेदे चेति प्रयोक्तव्ये यथा लौकिकवैदिकेष्विति प्रयुञ्जते - महा० (और अन्य अनेक स्थानों पर)-अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः-भग० 15 / 18 1. दृष्टि, दर्शन 10. 'सात' या चौदह की संख्या। सम० - अतिग (वि.) असाधारण, अतिप्राकृतिक, -अतिशय (वि.) संसार के लिए श्रेष्ठ, असाधारण,---अधिक (वि०) असाधारण, असामान्य, सर्व पंडितराजराजितिलकेनाकारि लोकाधिकम् -भामि० 4 / 44, कि० 247,- अधिपः 1. राजा 2. सर, देव,-अधिपतिः संसार का स्वामी.-अनरागः 'मनुष्य जाति से प्रेम विश्वप्रेम, साधारण हितषिता, परोपकार, अन्तरम् 'परलोक' दूसरी दुनिया, भावी जीवन - रघु० 1169, 6 / 45, लोकान्तरं गम,- प्राप मरना, अपवादः सब लोगों में बदनामी, सार्वजनिक "निन्दा लोकापवादो बलवान्मतो मे रघु०१४।४०, –अम्यवयः लोककल्याण,--अयन: नारायण का नामांतर, ---अलोकः एक काल्पनिक पहाड़ जो इस पथ्वी को घेरे हुए है और निर्मल जल के उस समद्र से परे स्थित है जिसने सात महाद्वीपों में से अन्तिम प को घेर रक्खा है, इस लोकालोक से परे धोर अन्धकार है, और इस ओर प्रकाश है इस प्रकार यह पहाड़ इस दृश्ययान संसार को अन्धकार के प्रदेश से विभक्त करता है-प्रकाशश्चाप्रकाशश्च लोकालोक इवाचल:- रघु० 1168, (आगे की / व्याख्या के लिए दे० मा० 1079 पर डा. भाण्डारकर का नोट), ( को)दृश्यमान और अदृष्ट लोक, आचारः सामान्य प्रचलन, सार्वजनिक या साधारण प्रथा, लोकव्यवहार, आत्मन (10) विश्व की आत्मा, .. आदिः 1. संसार का आरंभ 2. संसार का रचयिता,-आयत (वि.) नास्तिकतासंबंधी, अनात्मवाद संबंधी, (--तः) भौतिकवादी, नास्तिक, चार्वाक दर्शन का अनुयायो,( तम) भौतिकवाद नास्तिकता, (इसके बर्णन को सर्वदर्शनसंग्रह के प्रथम अध्याय में देखिये),-आयतिकः नास्तिक, अनात्मवादी,-ईशः 1. राजा (संसार का प्रभु) 2. ब्रह्मा 3. पारा, उक्तिः (स्त्री०) 1. कहावत, लोकोक्ति 2. सामान्य चर्चा, लोकमत, उत्तर (वि०) असाधारण, असामान्य, अप्रचलित लोकोत्तरा च कृति: - भामि० 1169, 70, उत्तर० 27, (. र:) राजा, एषणा स्वर्ग की इच्छा, कण्टकः कष्ट देने वाला या दुष्ट पुरुष, मानवजाति का अभिशाप दे० कण्टक, कथा सर्वप्रिय कहानी, * कर्त, कृत (पं०) संसार का रचयिता, - गाथा परंपरा से लोगों में गाया जाने वाला गान, चक्षुस् (नपुं०) सूर्य, चारित्रम् लोकव्यवहार, जननी लक्ष्मी का विशेषण, जित (पं.) 1. बद्ध का विशेषण 2. संसार का विजेता, ----(वि.) संसार को जानने वाला, ज्येष्ठः बद्ध का विशेषण,-तत्वम् मनुष्यजाति का ज्ञान, तन्त्रम् जनतंत्र, तुषारः कपूर, त्रयम्, त्रयी सामूहिक रूप से तीनों लोक,- उत्खातलोकत्रयक ण्ट कैऽपि ___ रघु० 14 / 73, द्वारम् स्वर्ग का दरवाजा,--धातुः संसार का विशेष प्रकार का विभाजन, धातु (पुं०) शिव का विशेषण, नाथः 1. ब्रह्मा 2. विष्णु 3. शिव 4. राजा, प्रभु 5. बुद्ध, नेत (पुं०) शिव का विशेषण, ---...पः, पाल: दिक्पाल ललिताभिनय तमद्य भर्ता मरुतां द्रष्टुमना: सलोकपालः विक्रम० 2118, रघु० 2275, 289, 17178, (लोक पाल गिनती में आठ हैं-दे० अष्ट दिक्पाल) 2. राजा, प्रभ,-पक्तिः (स्त्री०) मनुष्यजाति का आदर, साधारण आदरणीयता, पतिः 1. ब्रह्मा का विशेषण 2. विष्णु का विशेषण 3. राजा, प्रभु,-पथः, पद्धतिः (स्त्री०) साधारण व्यवहार, दुनिया का तरीका,—पितामहः ब्रह्मा का विशेषण, प्रकाशनः सूर्य,—प्रवादः किंवदन्ती अफ़वाह, सर्वसाधारण में प्रचलित बात, प्रसिद्ध (वि०) सुज्ञात, विश्वविख्यात,-बन्धुः,--बान्धवः सूर्य,-बाह्य, वाह्य (वि.) 1. समाज से बहिष्कृत, बिरादरी से खारिज 2. दुनिया से भिन्न, सनकी, अकेला (-- ह्यः) जातिच्युत व्यक्ति, मर्यादा मानी हुई या प्रचलित प्रथा,- मात (स्त्री०) लक्ष्मी का For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy