SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 892
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 883 ) लेतः,-तम् (पुं०, नपुं०) आँसू / / दे० तत्स्थानीय (प्रतीत होता है कि मम्मट ने इस लेप् (भ्वा० आ० लेपते) 1. जाना, हिलना-जुलना | अलंकार को 'विशेष' के साथ मिलाया है-दे० काव्य. 2. पूजा करना। 10, 'विशेष' के नीचे तथा भाष्य)। सम०-उक्त (वि.) लेपः [लिप | घा] 1. लीपना, पोतना, मालिश करना. सुझावमात्र, संकेतित, वक्रोक्ति द्वारा सूचित / ----याज्ञ० 11188 2. उबटन, मल्हम, अनुलेप 3. पल- लेश्या (स्त्री०) प्रकाश, रोशनी। स्तर करना (सफ़ेदी करना या चूना पोतना) | लेष्टुः [लिष्+तुन ढेला, मिट्टी का लौंदा। सम०-भेवनः 4. हाथों की पोंछन 3. हाथों में चिपके भोजन का वह उपकरण जिससे ढेले फोड़े जाते हैं। अवशेष) जब कि श्राद्ध में सबसे पहले तीन पुरुषाओं | लेसिकः (पुं०) गजारोही, हाथी पर चढ़ने वाला। पितृ, पितामह और प्रपितामह-को श्राद्ध में लेहः [लिह+-घा] 1. चाटना, आचमन, जैसा कि 'मधुनो आहुतियाँ प्रस्तुत करने के पश्चात्; (प्रपितामह के / वेहः'-भट्टि० 6682 में 2. चखना 3. चाट, चटनी पश्चात्; यह पोंछन तीन पूर्वपूरुषों को प्रस्तुत की 4. भोज्य पदार्थ / जाती है अर्थात् चौथी पांचवीं और छठी पीढ़ी के लेहनम् [लिह+ल्युट चाटना, जिह्वा से आचमन करना। पितृतुल्य पूर्वपुरुषों को)-लेपभाजश्चतुर्थाद्याः पित्राद्याः लेहिनः [लिह+इकन्] सुहागा / पिण्ड भागिनः 5. धब्बा, दाग, दूषण, कालष्य 6. नैतिक लेद्य (वि०) [लिहण्यत् चाटे जाने या चाट कर खाये अपवित्रता, पाप 7. भोजन। सम० करः पलस्तर जाने के योग्य, जीभ से लपलप पीने के योग्य,-ह्यम् करने वाला, सफ़ेदी करने वाला, ईंट की चिनाई 1. कोई भी चाटकर खाई जाने वाली वस्तु (जैसे कि करने वाला,--भागिन, भुज् (पुं०) चौथी, पांचवीं ___ कोई भोज्यपदार्थ), चाट 2. भोजन, और छठी पीढ़ी के पितृसंबंधी पूर्वपुरुष मनु० | लैडम [ लिङ्गस्य इदम्-लिङ्ग-+अण् ] अठारह पुराणों 41216 / में से एक पुराण का नाम / लेपकः [लिप्+पवुल ] पलस्तर करने वाला, राज, सफेदी | लैद्धिक (वि.) (स्त्री० की)[ लिङ्ग-+-ठण् ] 1. किसी करने वाला। "चिह्न या निशान पर निर्भर या तत्संबंधी 2. अनुमित, लेपनः [ लिप् + ल्युट ] धूप, लोवान,-नम् 1. मालिश करना -कः प्रतिमाकार, मूर्तिकार / / पोतना, लीपना ..या० 11188 2. पलस्तर, मल्हम | लोक i (म्वा० आ० लोकते, लोकित) देखना, नज़र डालना, 3. चूना, सफ़ेदी 4. मांस, मोटाई। प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना, अब देखना, निगाह डालना लेप्य (वि०) [लिप्+ण्यत् ] लीपे या पोते जाने के योग्य, -नोलूकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् ---प्यम् 1. लीपना. पोतना 2. ढालना, मूर्ति बनाना, -भर्तृ० 2 / 93, आ-,देखना, निगाह डालना, प्रत्यक्षज्ञान आदर्श या प्रतिरूपण बनाना। सम०---कृत् (पुं०) प्राप्त करना- भट्टि० 2 / 24 / / 1. प्रतिमाकार 2. ईंट का रहा लगाने वाला, - (स्त्री) ii (चुरा० उभ० या प्रेर० लोकयति-ते, लोकित) वह स्त्री जिसने उबटन का लेप किया तथा तैलादिक 1. देखना, निगाह डालनी, निहारना, प्रत्यक्षज्ञान से शरीर सुवासित किया हुआ है। प्राप्त करना 2. जानना, जानकार होना 3. चमकना लेप्यमयो [लेप्य मयट् +डीप् ] गुड़िया, पुतली। 4. बोलना, अव-, 1. देखना, निहारना, निगाह लेलायमाना [लेला इवाचरति क्यच् +-शानच्+टाप्] डालना --परिक्रम्यावलोक्य (नाटकों में) 2. मालूम ____ अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक। करना, जानना, निरीक्षण करना-अवलोकयामि लेलिहः [लिह---यङ, लुक द्वित्वादि, ततः अच्] सर्प, सांप। कियदवशिष्टं रजन्याः-श०४ 3. परखना, मनन लेलिहानः [ लिह / यङ्, लुक, द्वित्वादि, ततः शानच् ] करना, विमर्श करना—कु० 8150, रघु० 8174, ____ 1. सर्प, साँप 2. शिव का विशेषण / आ ---, 1. देखना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना, निहारना, लेशः [लिश्न-घश] 1. थोड़ा सा टुकड़ा, अंश, कण, अणु, निगाह डालना 2. खयाल करना, विचार करना, अत्यन्त तुच्छ मात्रा, क्लेश) पाठा० स्वेद)-लेशरभिन्नम् ध्यान देना-तणमिव जगज्जालमालोकयामः... भर्तृ० -श० 2 / 4, श्रमवारिलेशः --कू० 3138, इसी प्रकार 3166 3. जानना, मालम करना 4. अभिवादन करना, भक्ति', गण आदि 2. समय की माप (दो कलाओं बधाई देना, वि-., 1. देखना, निहारना, निगाह के बराबर 3. (अलं० में) एक प्रकार का अलंकार जिस डालना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना विलोक्य वृद्धोक्षमें इष्ट का अनिष्ट के रूप में तथा अनिष्ट का इष्ट के मधिष्ठितं त्वया महाजनः स्मेरमुखो भविष्यति कु० रूप में वर्णन विद्यमान होता है, रस० में इसकी परि- 5 / 70, रघु० 2 / 11, 6 / 59 2. तलाश करना, ढूंढना। भाषा --गुणस्यानिष्टसाधनतया दोषत्वेन दोषस्येष्ट-लोकः [लोक्यतेऽसौ लोक+घन] 1. दुनिया, संसार, साधनतया गुणत्वेन च वर्णनं लेशः; उदाहरणों के लिए। विश्व का एक प्रभाग (स्थूलरूप यदि कहा जाय तो For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy