________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 755 ) 2. उपभोग के योग्य, अधिकार में करने के योग्य / पर रहने वाला या विद्यमान / 3. भोगने के योग्य, अनुभव करने लायक 4. संभोग भौरिकः [भूरि सुवर्णमधिकरोति-- ठक्] राजकीय कोश में सुख के योग्य, -ज्यम् 1. आहार, खाना-त्वं भोक्ता | सुवर्णाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष / अहं च भोज्यभूतः-पंच०२, कु० 2 / 15, मन० 3 / 240 भौवनः दे० भौमन / 2. खाद्य सामग्री का भंडार, खाद्य पदार्थ 3. स्वादिष्ट | भौवादिक (वि.) (स्त्री-की) [भ्वादि-ठक् | भ्वादि भोजन 4. उपभोग। सम० कालः भोजन करने का अर्थात् भू से आरम्भ होने वाली धातुओं से सम्बन्ध समय,- संभवः आमरस, शरीर का प्राथमिक रस / रखने वाला। भोज्या [ भोज्य - टाप् ] भोज की एक रानी--रघु०६।५९ (भ्वा० आ, दिवा० पर० भ्रंशते, भ्रश्यति, भ्रष्टः 72, 13 / (अधिकर० अपा० के साथ) 1. गिरना, टपकना, उलट भोटः एक देश का नाम, (कहते हैं कि 'तिब्बत' का ही यह जाना,-हस्ताभ्रष्टमिदं बिसाभरणम् - श० 3 / 26 __ नाम है) / सम०-अंगः 'भूटान' कहलाने वाला प्रदेश / 2. गिरना, विचलित होना, अलग छूट जाना भोटीय (वि.) [ भोट-+-छ / तिब्बतवासी। -- यूथाभ्रष्ट: --हि०४, रघु० 14 / 16 3. वञ्चित भोमीरा (स्त्री०) मूंगा. विद्रुम / / होना, खो देना-बभ्रंशेऽसौ घृतेस्तत:---भट्रि० भोस् (अन्य०) | भाडोस् ] संबोधन सूचक अव्यय / 14171, पंच 11084137 4. बच निकलना, भाग जिसका अनुवाद होता है 'अरे, ओ, अहो, ओह, आहे' जाना, -संग्रामाद् बभ्रंशुः केचित्-भट्टि० 141105, कः कोऽत्र भोः श०२, (स्वर या सघोष व्यंजन परे 15 / 59 5. क्षीण होना, मझाना, घटना 6. ओझल होने पर पदांत विसर्ग का लोप हो जाता है) अयि, होना, नष्ट होना, अलग होना-मालवि० 118, 12, भो महर्षिपुत्र-श० 7, कभी-कभी इसको दोहराया जाता प्रेर० भ्रंशयति-ते / गिराना, पछाड़ देना 2. वञ्चित है भो भोः शंकरगहाधिवासिनो जानपदाः ..मा० 3, करना, परि - , 1. गिरना, टपकना, उलटना, इसके अतिरिक्त 'भोः' का प्रयोग 'शोक' तथा 'प्रश्न- फिसलना 2. बहकना, भटकना 3. अलग हो जाना, वाचकता' के लिए भी होता है। पथभ्रष्ट होना, विचलित होना 4. खोना, वञ्चित भौजङ्ग (वि०) (स्त्री० गी) [भुजङ्ग- अण्] सर्पिल, होना-मनु०१०।२० प्र-, 1. गिरना, टपकना सांप जैसा गम् 'आश्लेषा' नामक नक्षत्र / फिसलना,-प्रभ्रश्यमानाभरणप्रसूनाम्-रघु० 14154 भौटः | भोट +अण् प्रपो० / तिब्बती, तिब्बतबासी। 2. खोदेना, वञ्चित होना-प्रभ्रश्यते तेजसः - मुच्छ० भौत (वि.) (स्त्री----ती) [ भूतानि प्राणिनोऽधिकृत्य 114, प्रेर०. पछाडना, नीचे डालना, नीचे गिरना प्रवृत्तः, तानि देवता वा अस्य अण] 1. जीवित प्राणियों . रघु० 13 / 36, वि--. 1. गिरना, टपकना से संबन्ध रखने वाला 2. मुलभूत, भौतिक 3. पैशाचिक 2. बर्वाद होना, क्षीण होना 3. गिरना, भटकना, 4. पागल, विक्षिप्त, ---तः भूतप्रेत व पिशाचों की पूजा पथभ्रष्ट होना 4. खो देना। करने वाला, देवल, पुजारी,---तम् भूत-प्रेतों का समह / / भ्रंशः, सः [भ्रंश भावे घा] 1. गिर पडना, टपक भौतिक (वि.) (स्त्री०-की) [भत-+-ठक 1. जीवित पडना, गिरना, फिसलना, नीचे गिरना--सेहेऽस्य न प्राणियों से संबंध रखने वाला मनु० 3174 2. स्थूल भ्रंशमतो न लोभात-रघु० 1674, कनकवलयतत्त्वों से निमित, भौलिक, भौतिक-पिडेष्वनास्था भ्रंशरिवतप्रकोष्ठ:—मेघ०२ 2. क्षीण होना, घटना, खल भौतिकेपु-रघु० 2 / 57 3. भूत-प्रेतों से संबंध ह्रास होना 3. पतन, नाश, वर्वादी, विध्वंस 4. भाग रखने वाला,...क: शिव का नाम, कम् मोती। जाना 5. ओझल हो जाना 6. खो जाना, हानि, सम०--मठः---विहार, विद्या जादूगरी, अभिचार / वञ्चना--स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशः--भग० 263 भौम (वि०) (स्त्री०) [भूमि-- अण् 1. पार्थिव 2. पृथ्वी इसी प्रकार जातिभ्रंश' 'स्वार्थभ्रंश' 7. भटकने वाला, पर होने वाला, मिट्टो का बना हआ, लौकिक सौमो भ्रष्ट हो जाने वाला, विचलित।। मुनेः स्थानपरिग्रहोऽयम् ----रघु० 13136, 15 / 59 भ्रंशयः [भ्रंश अथच] दे० 'प्रभ्रंशथु'।। 3. मिट्टी का, मिट्टी से निर्मित 4. मंगल से संबद्ध, भ्रंश (स) न (कि०) (स्त्री--नी) भ्रिंश-कल्यट] —मः 1. मंगलग्रह 2. नरकासुर का विशेषण 3. जल 1. नीचे फेंक देने वाला,-नम 1. गिर पड़ने की क्रिया 4. प्रकाश / सम० --दिनम्, वारः, वासरः मंगल- 2. गिरना. वञ्चित होना, खो देना। वार, -शि०१५।१७, रत्नम् मंगा। भ्रंशिन् (वि.) श् / णिनि] 1. नीचे गिरने वाला, भौमनः [भमन ---अण | देवों के शिल्पी विश्वकर्मा का नाम / पानशील' 2 जीर्ण होने वाला 3. भटकने वाला, भौमिक (वि.) (स्त्री० ... को) [भूमि--ठक यत् वा 4. यदि होने वाला, नष्ट होने वाला। भौम्य (वि.) पाथित. लौकिक, पत्री - भंस्---दे० 'भ्रंश' / For Private and Personal Use Only