________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( २९५ )
६।१००, रघु० १४१५७ 2. निराकरण करना (मत : -कि सत्त्वानि विप्रकरोषि-श० ७, कु० २।१ आदि का) 3. छोड़ना, त्यागना 4. पूर्ण रूप से नष्ट 2. बुरा करना, दुर्व्यवहार करना - श० ४, १७ कर देना, ध्वंस करना 5. बुरा भला कहना, नीच 3. प्रभावित करना, परिवर्तन लाना,कमपरमवशं न समझना, तुच्छ समझना, न्यक, अपमान करना, विप्रकुर्युः कु० ६।९५, व्या- 1. प्रकट करना, अनादर करना, परा--, (पर०) अस्वीकार करना, साफ करना नामरूपे व्याकरवाणि-छा० 2. प्रतिअवहेलना करना, निरादर करना, खयाल नहीं करना पादन करना, व्याख्या करना 3. कहना, वर्णन करना ... तां हनुमान् पराकुर्वनगमत् पुष्पकम् प्रति भट्रि० --तन्मे सर्व भगवान् व्याकरोतु महा०, सम्८1५०, परि (परिकरोति) 1. घेरना 2. (परिष्क- (संकुरुते) (क) करना (पाप, अपराध)--ये पक्षारोति) विभूषित करना, सजाना ग्थो हेमपरिष्कृतः परपक्षदोपसहिताः पापानि संकुर्वते -मृच्छ० ९।४ --महा०, (आलं.) निर्मल करना, चमकाना, शुद्ध (ख) निर्माण करना, तैयार करना (ग) करना करना (शब्दों का), पुरस्---, सम्मुख रखना . राजा संपन्न करना 2. (संस्कुरुते) (क) अलंकृत करना, शकुन्तलां पुरस्कृत्य वक्तव्यः . . श० ४, हते जरति शोभा बढ़ाना--ककुभं समस्कुरुत माघवनीम--शि० गाङ्गेये पुरस्कृत्य शिखण्डिनम् वेणी० २०१८-दे० ९।२५ (ख) निर्मल करना, चमकना-वाण्येका समलपुरस् के नीचे, प्र- 1. करना, सम्पन्न करना करोति पुरुष या संस्कृता धार्यते--भर्त० २११९, शि० आरंभ करना (अधिकतर उसी अर्थ में प्रयुक्त होता १४.५० (ग) वेदमंत्रों के उच्चारण से अभिमंत्रित है जिसमें 'कृ')-जानन्नपि नरो देवात्प्रकरोति विहि- करना--मनु ० ५।३६, (घ) वेदविहित संस्कारों से तम् - पंच० ४।३५, भट्टि०२।३६, ऋतु०१६ मनु० (किसीपुरुप को) पवित्र करना, शुद्ध करने वाले ८/५४,६०, ८१२३९, अमरु १३ 2. बलात्कार करना,
शास्त्रोक्त विधियों का अनुष्ठान करना,-- संचस्कारोअत्याचार करना, अपमान करना, भट्टि० ८।१९
भयप्रीत्या मैथिलेयौ यथाविधि रघु० १५।३१, 3. सन्मान करना, पूजा करना, प्रति- 1. बदला देना, याज्ञ० २।१२४, साची---, एक ओर मुड़ना, परोक्ष वापिस देना, लौटाना -पूर्व कृतार्थों मित्राणां नार्थ । रूप से सड़ना--साचीकृता चारुतरेण तस्थौ -कु० प्रतिकरोति य:-रामा० 2. उपचार करना,-व्याधि- ३।६८, रघु०६।१४। मिच्छामि ते ज्ञातुं प्रतिकुर्यां हि तत्र वै....-महा०, | 3. वापिस देना, ज्यों का त्यों कर देना, पुनः स्थापित | कृरुणः (र.) [कृ+कण-+अच, कृ++ट] एक करना---मनु० ९।२८५ 4. प्रतिशोध करना रघु० प्रकार का तीतर। १२।९४, प्रमाणी -- 1. भरोसा करना, विश्वास कृक (क) लाश: [कृक+लस --अण् । छिपकली, करना 2. प्रमाण पुरुष मानना, आज्ञा मानना शासनं गिरगिट । तरुभिरपि प्रमाणीकृतम् श० ६ 3. आँख गड़ाना, कृकवाकुः [कृक--वन्-ऋण, क् आदेशः] 1. मुर्गा 2. मोर वितरण करना, बर्ताव करना या व्यवहार करना 3. छिपकिली सम०-ध्वजः कार्तिकेय का विषेशण।
देवेन प्रभुणा स्वयं जगति यद्यल्य प्रमाणीकृतम् कृकाटिका | कृ+अट : अण्- कृकाट किन् : टाप, ---भत० २।१२१, प्रादुस्, प्रकट करना, प्रदर्शन इत्वम् 1. योवा का सोया उठा हुआ भाग 2. गर्दन करना, दिखलाना, जाहिर करना-२० प्रादुस् के का पिछा नाग। नी०, प्रत्युप- - 1. प्रतिफल देना, (आभार) प्रत्यर्पण कृच्छ (वि.) [कृतो+रक. छ आदेशः ] 1. कष्ट देने करना, वि-, बदलना, परिवर्तन करना, प्रभावित
वाला, पीडाकर मनु० ६७८2. बुरा, विपद्ग्रस्त, करना--विकारहेतौ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि
अनिष्टकर 3. दुष्ट, पापी 4. संकटग्रस्त, पीडित, त एव धीराः कु०११५९, रघु०१३।४२ 2. आकृति --च्छ,,--च्छम, 1. कठिनाई, कष्ट, कठोरता, विपद्, बिगाड़ना, विरूप करना --विकृताकृतिः मन०९।५२ संकट, भव--कृच्छ महत्तीर्ण:--रघु० १४॥६, 3. उत्पन्न करना, पैदा करना, सम्पन्न करना मनु० १३१७७ 2. शारीरिक तप, तपस्पा, प्रायश्चित्त १७५, नास्य विघ्नं विकुर्वन्ति दानवाः-महा० +. विघ्न मनु० ४।२२२. ५।२१, ११।१०५-- च्छम, कृच्छण, डालना, हानि पहुँचाना, क्षति पहुँनाना (आ०) कृच्छात् बड़ी कठिनाई के साथ, दुःख पूर्वक, बड़े कष्ट -हीनान्यनुपकर्तृ णि प्रवृद्धानि विकुर्वते रघु० १७। के साथ ----लब्धं कृच्छेण रक्ष्यते -हि० १११८५, । ५८ 5. उच्चारण करना --विकुर्वाग: स्वरानद्य सम-प्राण (वि०) 1. जिसका जीवन खतरे में है
-भट्टि० ८।२० 6. (पत्नी की भांति) विश्वास- 2. कष्टपूर्वक सांग लेने वाला 3. कठिनाई से जीवनघातक होना, विनि , प्रहार करना, क्षति पहुँचाना, यापन करने वाला,--साध्य (वि.) 1. कठिनाई से विप्र- 1. सताना, कष्ट देना, तंग करना, हानि पहुँचाना ठीक हो सके, (रोगी या रोग) 2. कष्टसाध्य ।
For Private and Personal Use Only