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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 635 ) पेलिः, पेलिन् (पुं०) [ पेल् + इन्, पेल+इनि ] घोड़ा। के लिए पुनीत,-कम् मृत पुरखाओं या पितरों के पेश (ष, स) ल (वि.) [पिश् (ष्, स्)+अलच् ] . सम्मान में अनुष्ठित श्राद्ध / 1. मृदु, मुलायम, सुकुमार-रघु० 9 / 40,11 / 45, पतमत्यः [ पितृमती+ण्य ] 1. अविवाहिता स्त्री का पुत्र मेघ० 93 2. दुबला-पतला, क्षीण (कमर आदि) 2. किसी प्रसिद्ध पुरुष का पुत्र (पितृमतः पुत्रः) / ----रघु० 13334 3. मनोहर, सुन्दर, लावण्ययुक्त / पैतृष्वसेयः, पैतृत्वधीयः [ पितृष्वस+ढक, छण् वा ] फूफी अच्छा-भामि० 22 4. विशेषज्ञ, चतुर, कुशल या बुवा का बेटा। -भर्त० 3156 5. चालाक, छली। पत्त (वि०) (स्त्री०-ती), पंत्तिक (वि.) (स्त्री०-की) पेशिः,-शी पिश+इन, पेशि+ङीष ] 1. मांस का पिंड पित्त+अण, ठा वा] पित्तीय, पित्तसंबंधी। ' 2. मांस राशि 3. अंडा 4. पुट्ठा-याज्ञ० 3 / 100 | पत्र (वि.) (स्त्री०-श्री) [पित+अण् ] 1. पिता या 5. गर्भाधान के पश्चात् शीघ्र बाद का कच्चा गर्भ- पुरखाओं से संबन्ध रखने वाला, पैतृक, पुश्तैनी पिण्ड 6. खिलने के लिए तैयार कली 7. इन्द्र का 2. पितरों के लिए पुनीत,-त्रम तर्जनी और अंगूठे वज्र (पुल्लिग भी) 8. एक प्रकार का वाद्ययंत्र / / का मध्यवर्ती हाथ का भाग (इस अर्थ में 'पत्र्यम्' भी)। सम०-कोशः (षः) पक्षी का अंडा / | पलव (वि.) (स्त्री०-वी) [ पीलु+अण् ] पीलु वृक्ष पेषः [पिष्+घन ] पीसना, चूरा करना, कुचलना---शि० . की लकड़ी से बना हुआ~मनु० 2 / 45 / / 11145 / पेशल्यम् [पेशल+ष्या मदुता, सुशीलता, सुकुमारता। पेषणम् [ पिष+ल्यूट ] 1. चूर्ण बनाना, पीसना 2. खलि- पैशाच (वि०) (स्त्री०-ची) [पिशाच-+अण् ] राक्षसी, हान का वह स्थान जहाँ अनाज की बालों पर दायें नारकीय,...चः हिन्दु-धर्मशास्त्र में वर्णित आठ प्रकार चलाई जाती है 3. सिल और लोढी, पीसने का कोई के बिवाहों में से आठवाँ या निम्नतम श्रेणी का विवाह भी उपकरण। (इसमें किसी सोई हुई प्रमत्त या पागल कन्या का, पेषणिः ( स्त्री० ) पेषणी, पेषाकः [ पिष्+अनि, उसकी स्वीकृति के बिना उसका कौमारहरण किया पेषणि +ङीष्, यिष्+आ–कन् ] चक्की, सिल, जाता है.--सुप्तां मत्तां प्रमत्तां वा रहो यत्रोपगच्छति खरल। स पापिष्ठो विवाहानां पैशाचश्चाष्टमोऽधमः-मनु० पेस्वर (वि०) [ पेस्+वरच ] 1. जाने वाला, घूमने 3 / 34, याज्ञ. 1161 2. एक प्रकार का राक्षस या वाला 2. नाशकारी। पिशाच,-ची किसी धार्मिक संस्कार के अवसर पर 4 (म्वा० पर० पायति) सूखना, मुरझाना। तैयार किया गया नैवेद्य 2. रात 3. एक प्रकार की पेंगिः [ पिंग+ इश् ] यास्क का पैतृकनाम / अंडबंड भाषा जो रंगमंच पर पिशाचों द्वारा बोली पैंजूषः [ पिंजूष+अण् ] कान / जाय, प्राकृत भाषा का एक निम्नतम रूप। पैठर (वि.) (स्त्री०-री) [ पिठर+अण् ] किसी पात्र | पैशाचिक (वि०) (स्त्री०-की) [ पिशाच+ठक् ] नार___ में उबाला हुआ। कीय, राक्षसी। पैठीनसिः (पुं०) एक प्राचीन ऋषि जो एक धर्मशास्त्र | पैशुनम्, न्यम् [ पिशुनस्य भावः कर्म वा, पिशुन--प्यन का प्रणेता है। वा ] 1. चुगली, बदनामी, इधर की उधर लगाना, पेंडिक्यम, पंडिन्यम् [पिंड-- ठन्+ष्यञ, पिण्ड+इन् कलंक--मनु०७।४८, 1155, भग० 1602 2. बद +व्या ] भिक्षा पर जीवन निर्वाह करना, भिक्षा- माशी, ठग्गी 3. दुष्टता, दुर्भावना / वृत्ति / पेष्ट (वि.) (स्त्री०-ष्टी) [ पिष्ट-+अण् ] आटे का पतामह (वि.) (स्त्री०-ही) [ पितामह+अण् ] 1. दादा या पीठी का बना हुआ। या पितामह से संबंध रखने वाला 2. उत्तराधिकार पैष्टिक (वि.) (स्त्री०-की) [पिष्ट+ठन ] आटे या में पितामह से प्राप्त 3. ब्रह्मा से गृहीत, ब्रह्मा से अधि- पीठी का बना हुआ-कम् 1. कचौड़ियों का ढेर ष्ठित, या ब्रह्मा से सम्बन्ध रखने वाला - रघु० 15 / / 2. अनाज से खींची हुई मदिरा। 60, हाः (ब०व०) पूर्वपुरखा, बाप दादा। पैष्टी [ पैष्ट-डीष् ] अनाज को सड़ाकर उससे तैयार पंतामहिक (वि०) (स्त्री०-की) [ पितामह+ठक ] की हुई मदिरा-तु० गौडी। पितामह से संबन्ध रखने वाला। | पोगंड (वि.) [ पौः शुद्धो गंड एकदेशो यस्य-तारा०] पैतृक (वि.) (स्त्री०-की) [पित+ठन ] 1. पिता से 1. बच्चा, अवयस्क, अपूर्ण विकसित 2. कम या विकृत सम्बन्ध रखने वाला 2. पिता से प्राप्त या आगत, अंग वाला 3. विकृत, विरूप,-डः बालक जिसकी परखाओं से संबध, पिता की परंपरा से प्राप्त-रघु० आयु 5 से सोलह वर्ष के भीतर की हो, तु० 8 / 6,18 / 40, मनु०९।१०४, याज्ञ०२।४७ 3.पितरों 'अपोगंड। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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