________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ७४ ) मभिमरः [अभि+म+अच] 1. हत्या, नाश, वध करना 2. | -आसीताभिमुखं गुरो:-मनु० २।१९३, तिष्ठन्मुनेर
युद्ध, संघर्ष 3. अपने ही पक्ष द्वारा विश्वासघात, अपने ही भिमुखं स विकीर्णधाम्न:--कि० २।५९, नेपथ्याभि
पक्ष वालों से भय 4. बंधन, कैद, बेड़ी या हथकड़ी। मुखमवलोक्य,---श०१, कणं ददात्यभिमुखं मयि भाषअभिमवः [अभि+मृद्+घञ.] 1. मलना, रगड़, 2. कुच- माणे---०१३१।
लना, लूटखसोट, (शत्रु द्वारा) देश का उच्छेद, उजा- | अभियाचनम-याचना अभि-याच्यु च, नङ वा, स्त्रियां डना 3. युद्ध, संग्राम 4. मदिरा, शराब ।
टाप च] मांगना, प्रार्थना, अनरोध, नम्र निवेदन । अभिमन (वि०) [अभि+म+ल्युद] कुचलने वाला, | अभियातिः, यातिन ----(पं0-ती) शत्रता की भावना के
दमन करने वाला, नम कुचलना, दमन करना। साथ पहुंचने वाला- शत्रु, दुश्मन, रधु० १२०४३। अभिमर्श:-र्शनम् [अभि+मश् (प)+घञ, ल्युट् वा] अभियात-पायिन् (वि.) अभि+या+तच, णिनि वा] अभिमर्ष:-र्षण 1. स्पर्श, संपर्क 2. अभ्याघात, हिंसा, निकट जानेवाला, आक्रमण करने वाला।
बलात्कार, संभोग,--कृताभिमर्शामनुमन्यमान:--. अभिगानम् अभि+मा+ल्पद] 1. उपागमन 2. चढ़ाई ५।२०, इन्द्रियासक्ति के कारण किया गया आलिंगन करना, धावा बोलना,आक्रमण करना,----रणाभियानेन अथवा सतीत्व भ्रष्ट करना या बलात्कार,-पराभिमझे ---दश० १०, युद्ध के लिए प्रस्थान । न तवास्ति कु० ५।४३ (मल्लि. परधर्षणम्) मनु० | अभियक्त (भः क० कृ०) (वि.) [अभि+ यजक्त ८।३५२, याज्ञ० २।२८४ ।
i.(क) व्यस्त, लगा हुआ, लीन, जुटा हुआ (ख) परिअभिमर्शक-धक (वि.) [अभिमश्()+-वल, णिनि
श्रमी, धैर्यवान्, दुहराकल्प वाला, तुला हुआ, दत्तचित्त, अभिमशिन-बिन वा] 1. स्पर्श करने वाला, संपर्क में आने
सावधान, .. इदं विश्वं पाल्यं विधिवदभियुकतेन मनसा वाला, 2. बलात्कार करने वाला, त्वत्कलवाभिमर्षी
--उत्तर० ३.३०, 2. सुविज्ञ, दक्ष,---यात्रार्थेवभिवैरास्पदं धनमित्रः-दश० ६३ ।
युक्तानां पुरुपाणां-त्रुमारिल 3. (अतः) विद्वान्, अभिमादः [अभि+म+घा] नशा, मादकता।
सुप्रतिष्ठित, सुयोग्य न्यायाधीग, पण्डित (पं० ---इसी अभिमानः [अभि+मन+घञ] 1. गौरव, स्वाभिमान, | अर्थ में) न हि शक्यते दैवमन्यथाकर्तुमभियतेनापि
सम्माननीय या योग्य भावना, -सदाभिमानकधना: -~~-का०६२, 4. आक्रान्त, लिस पर हमला कर दिया हि मानिन:-शि० ११६७, 2. अहंकार, घमंड, दर्प, गया हो,-अभियुक्तं त्वयनं ते गन्त रस्त्यामतः परे.अहंमन्यता, बत् घमंडी, गर्वीला 3. सभी पदार्थों को शि० २।१०१, मुद्रा० ३।२५, 5. जिस पर अभियोग आत्मा से संकेतित करना, अहंकार की क्रिया, व्यक्तित्व, लगाया गया हो, जिस पर दोषों का आरोपण किया 4. कल्पना, अवधारणा, अटकल, विश्वास, सम्मति गया हो, अभ्गारोपित, - मृच्छ० ९।९, अभियोजित, 5. स्नेह, प्रेम 6. इच्छा, कामना 7. चोट पहुँचाना, प्रतिबादी,-अभियक्तोऽभियोगस्य यदि कुर्यादपलवमहत्या करना, चोट पहुँचाने का प्रयत्न करना। सम० नारद०6. नियुक्त । -शालिन् (वि.) घमंडी---शम्य (वि०) गर्न या घमंड | अभियोक्म (वि०) अभि-|-युज+तच्] आक्रमण करन से रहित, विनीत ।
वाला, हमला करने वाला, दोपारोपण करने वाला, अभिमानिन् (वि.) [अभि+मन+णिनि] 1. आत्मानि (पुं०-क्ता) 1. शत्रु, आक्रमणकारी, आशान्ता
मानी 2. अहंमन्य, घमंडी, गर्वीला, दम्भी 3. सभी 2. (विधि में) आरोगक, वादी, मुद्दई, अभियोजक, पदार्थों को आत्मा से संकेतित मानने याला ।
मनु०८1५२, ५८, याज्ञ० २१९५, 3. पिथ्याभियोगी। अभिमुख (वि०)[स्त्री०-खी] 1. जो किसी की ओर मुख । अभियोगः [अभि+ यूज् +घञ] 1. लगात, लगन, मेल
किये हुए हो, की ओर, किसी की ओर मड़ा हुआ, सामने, जोल,-गुरुचर्या-तपस्तन्यमन्त्रयोगाभियोगजाम-मा०९। -अभिमुखे मयि संहृतमोक्षितम् कार २।११, 2. पास ५१, चौर० ११, 2. घना लगाव, धीरज, प्रबल, आने वाला, समीप जाने वाला, निकट पहुँचने वाला, प्रयास,...संत: स्वयं परहितेय कृताभियोगाः ---भत० --विक्रम० २।९ 3. विचार करते हुए, प्रवृत्त, उद्यत २२७३, 2. (क) किसी चीज को सीखने की लगन, (कुछ करने के लिए)-अस्ताभिमुखे सूर्य-मद्रा० - कस्यां कलायाभियोगो भात्यो: ---मालवि० ५,(ख) २११९, प्रसादाभिमुखो वेधाः प्रत्युताच दिवौकसः कु० सीखना, विद्वत्ता,--अभियोगश्च शब्दादेरशिष्टानाम् १।१६, ५६०; उत्तर० ७१४, मा० १०११३. 4. अभियोगश्चेतरेषाम् भवरस्वामी 4. सामाभण हमला, अनुकुल, अनुकूलतापूर्वक सम्पन्न 5. मुंह ऊपर को चढ़ाई (किसी देश या नगर गर),--शुभितं उठाये हुए,-खं-खे (अव्य०) को ओर, दिशा में वनगोचराभियोगात् कि० १३।१०, २।४६, 5. सामना करते हुए, के सामने, की उपस्थिति में, के (विधि में) आरोप, दोषारोपण, पूर्वपक्ष-अभियोगनिकट (कर्म० या संव० के साथ अथवा समास में) | मनिस्तीर्य नैनं प्रत्यभियोजयेत्---यात. १५ ।
For Private and Personal Use Only